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मुंबई में हीट स्ट्रोक से बेहाल हुए 81 परिंदे, जानिए एक–एक कर आसमान से क्यों गिर रहे पक्षी?

मुंबई की चिलचिलाती गर्मी का असर परिंदों पर, 81 पक्षी हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन से बीमार। जानिए इस गंभीर पर्यावरणीय संकट की कहानी।
05:30 PM Apr 09, 2025 IST | Rohit Agrawal

मुंबई समेत देश में मार्च की तपती गर्मी ने न सिर्फ इंसानों को बेहाल कर दिया है, बल्कि पक्षियों की जिंदगी पर भी आफत ला दी। तापमान 40 डिग्री के पार पहुंचते ही शहर के परिंदे डिहाइड्रेशन और हीट स्ट्रोक से बेसुध होकर जमीन पर गिरने लगे हैं। बाई साकारबाई दिनशॉ पेटिट (BSDP) अस्पताल में पिछले एक महीने में 81 से ज्यादा पक्षियों को भर्ती करना पड़ा। आसमान में उड़ने वाले चील-बाज से लेकर गौरैया-कबूतर तक, हर कोई इस गर्मी की मार झेल रहा है। यह कहानी सिर्फ मुंबई की नहीं, बल्कि देश के उन तमाम हिस्सों की है, जहाँ गर्मी ने इंसान और प्रकृति दोनों को हलकान कर रखा है। आइए, इस मसले को सरल अंदाज में समझते हैं।

हीट स्ट्रोक का शिकार बन गए 81 परिंदे

मार्च का महीना मुंबई के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं रहा। मौसम विभाग की चेतावनी सच साबित हुई और गर्म हवाओं ने शहर को झुलसा दिया। इस बीच, BSDP अस्पताल में पक्षियों की लाइन लग गई। पिछले एक महीने में 81 पक्षी यहाँ इलाज के लिए लाए गए। साल 2024 में मार्च से मई तक 160 पक्षी बीमार पड़े थे, जिनमें 70 कबूतर, 53 चील, 31 कौवे और 2 उल्लू शामिल थे।

इस बार मार्च में ही 37 चील, 22 कबूतर और 17 कौवे बेहाल हो गए। पशु चिकित्सक डॉ. मयूर डांगर बताते हैं कि पानी की कमी और उड़ते वक्त गर्मी की चपेट में आने से ये पक्षी डिहाइड्रेशन का शिकार हो रहे हैं।" इलाज के बाद ज्यादातर को 4-5 दिन में ठीक करके छोड़ दिया गया, लेकिन यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

पानी की तलाश में कैसे हारे परिंदे?

शहर में कंक्रीट का जंगल तो फैलता जा रहा है, मगर पक्षियों के लिए पानी का एक घूंट तक मुश्किल हो गया है। बड़े पक्षी जैसे चील और बाज बड़े जलाशयों पर निर्भर रहते हैं। इस मसले पर डॉ. डांगर बताते हैं कि ये परिंदे कटोरे से पानी नहीं पी सकते। इन्हें तालाब या नदी चाहिए, जो मुंबई में गायब होते जा रहे हैं।" दूसरी ओर, कबूतर और गौरैया जैसे घरेलू पक्षी थोड़े खुशकिस्मत हैं—लोगों के रखे पानी से इनकी प्यास बुझ जाती है। लेकिन गर्मी इतनी बेरहम है कि उड़ते-उड़ते इनके शरीर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जिससे दिमाग और अंगों को नुकसान पहुँचता है। नतीजा? ये बेसुध होकर जमीन पर गिर पड़ते हैं।

रेस्क्यू से रिकवरी तक: कौन बना मसीहा?

इन बेहाल परिंदों को बचाने का जिम्मा ज्यादातर मुंबई के आम नागरिकों और कुछ NGOs ने उठाया। कोई सड़क पर गिरा पक्षी देखता है, तो उसे उठाकर BSDP अस्पताल पहुंचा देता है। यहाँ ड्रॉपर से इलेक्ट्रोलाइट्स और हाइड्रेशन लिक्विड देकर इनकी जान बचाई जाती है। दो-तीन दिन में छोटे पक्षी जैसे कबूतर और कौवे ठीक होकर उड़ान भर लेते हैं।

चील और बाज जैसे बड़े पक्षियों को रिहैबिलिटेशन के लिए वन विभाग या NGOs को सौंपा जाता है। डॉ. डांगर ने कहा कि"पिछले दिनों में डिहाइड्रेशन के मामले 30% बढ़ गए हैं। अगर समय पर इलाज न मिले, तो ये परिंदे मर भी सकते हैं।" मुंबईकरों की इस संवेदनशीलता ने कई पंखों को फिर से हवा दी है।

गर्मी का कहर कब तक?

मौसम विभाग (IMD) और BMC ने मार्च में ही चेतावनी दी थी कि मुंबई में हीट वेव का असर बढ़ेगा। तेज गर्म हवाओं और 36-40 डिग्री तापमान के साथ यह सिलसिला अभी थमने वाला नहीं। डॉ. डांगर का कहना है, "अप्रैल-मई में हालात और बिगड़ सकते हैं। पक्षियों और वन्यजीवन पर इसका असर साफ दिख रहा है।" शहर में पानी के स्रोत बढ़ाने और लोगों से पक्षियों के लिए पानी रखने की अपील की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कोशिशें गर्मी के इस तांडव को रोक पाएंगी, या पक्षियों की यह त्रासदी और गहराएगी? जवाब आने वाले दिनों में ही मिलेगा।

क्या है सबक?

मुंबई की यह कहानी सिर्फ पक्षियों की नहीं, बल्कि उस बदलते पर्यावरण की है, जो इंसान और प्रकृति दोनों को चुनौती दे रहा है। 81 पक्षियों का बीमार पड़ना एक चेतावनी है कि गर्मी का असर अब सिर्फ थर्मामीटर तक सीमित नहीं रहा। अगर जलाशयों को बचाने और पानी की व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया गया, तो ये परिंदे आसमान से गायब होते चले जाएंगे। अभी तो मुंबईकरों की जागरूकता और BSDP की मेहनत से कई पंख बच गए हैं, लेकिन यह जंग अभी खत्म नहीं हुई। गर्मी का यह कहर कब थमेगा, और कितने परिंदे और झेल पाएंगे यह वक्त ही बताएगा!

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