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मेवाड़ राजघराना: 71वीं राजगद्दी पर विवाद, कौन होगा असली हकदार?

मेवाड़ राजवंश की 71वीं राजगद्दी पर विवाद गहरा गया है, जिसमें महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह और उनके चचेरे भाई विश्वराज सिंह के बीच लड़ाई छिड़ गई है।
12:59 PM Nov 26, 2024 IST | Vibhav Shukla

Udaipur royal family property row: राजस्थान के उदयपुर स्थित मेवाड़ राजवंश (Mewar Dynasty) इन दिनों सुर्खियों में है। कारण है इस राजवंश की 71वीं राजगद्दी पर होने वाला विवाद, जिसमें महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह और उनके चचेरे भाई विश्वराज सिंह के बीच एक गंभीर लड़ाई चल रही है। यह विवाद और गहरा तब हुआ जब सोमवार को राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह को मेवाड़ के 71वें महाराणा के रूप में ताज पहनाया गया।

मेवाड़ राजघराना- Mewar Rajput family tree and history

क्या है राजगद्दी का विवाद?

शुरुआत तब हुई जब सोमवार को विश्वराज सिंह का राजतिलक हुआ और वे मेवाड़ के 71वें महाराणा बने। लेकिन, जैसे ही उनका राजतिलक हुआ, मेवाड़ के राजघराने में खलबली मच गई। लक्ष्यराज सिंह के पिता, अरविंद सिंह का कहना है कि उनका बेटा राजगद्दी का असली हकदार है। और तो और, अरविंद सिंह का आरोप है कि विश्वराज सिंह को राजगद्दी देने का फैसला बिना परिवार की सहमति के लिया गया है।

सिर्फ इतना ही नहीं, राजतिलक के बाद जब विश्वराज सिंह उदयपुर सिटी पैलेस स्थित धूणी माता के दर्शन करने गए, तो वहां के गेट बंद कर दिए गए, जिससे विवाद और बढ़ गया। अब यह मामला सिर्फ परिवार की प्रतिष्ठा से कहीं ज्यादा हो गया है।

इस विवाद की जड़ें 1955 में हैं, जब भगवत सिंह मेवाड़ के महाराणा बने थे। भगवत सिंह ने उस वक्त से ही मेवाड़ की संपत्तियों को बेचने और लीज पर देने का काम शुरू किया, जो उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ FIR दर्ज करवा दी और संपत्तियों को हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बांटने की मांग की।

इसके बाद, 1984 में जब भगवत सिंह ने अपनी वसीयत बनाई, तो उन्होंने छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का एक्जीक्यूटिव बना दिया और महेंद्र सिंह को संपत्ति और ट्रस्ट से बाहर कर दिया। इस फैसले के बाद से ही मेवाड़ राजघराने में अंदरूनी टकराव और बढ़ गया।

अब जब महेंद्र सिंह के बेटे, विश्वराज सिंह का राजतिलक हुआ, तो अरविंद सिंह और उनका परिवार विरोध में आ गया। अरविंद सिंह का कहना है कि मेवाड़ राजघराना एक ट्रस्ट के जरिए चलता है, जिसका संचालन उनके पिता ने उन्हें सौंपा था। ऐसे में उनके और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह का राजगद्दी पर सबसे बड़ा हक है।

मेवाड़ राजघराना के प्रमुख शासक(Mewar kings and their legacy in Rajasthan)

राजा/महाराणाकाल (साल)रिश्ते/संबंध
महाराणा प्रताप1537–1572महाराणा उदय सिंह के बेटे, मेवाड़ के सबसे प्रसिद्ध शासक
महाराणा उदय सिंह1531–1536गुहिल वंश के 48वें राजा
महाराणा अमर सिंह1572–1597महाराणा प्रताप के बेटे
महाराणा कर्ण सिंह1597–1620महाराणा अमर सिंह के बेटे
महाराणा जगत सिंह1620–1631महाराणा कर्ण सिंह के बेटे
महाराणा राजसिंह1631–1680महाराणा जगत सिंह के बेटे
महाराणा जय सिंह1680–1710महाराणा राजसिंह के बेटे
महाराणा अमर सिंह द्वितीय1710–1734महाराणा जय सिंह के बेटे
महाराणा संग्राम सिंह1734–1743महाराणा अमर सिंह द्वितीय के बेटे
महाराणा शंभू सिंह1743–1754महाराणा संग्राम सिंह के बेटे
महाराणा सज्जन सिंह1754–1778महाराणा शंभू सिंह के बेटे
महाराणा फतह सिंह1778–1797महाराणा सज्जन सिंह के बेटे
महाराणा भूपाल सिंह1930–1955महाराणा फतह सिंह के बेटे
भगवत सिंह1955–1971भूपाल सिंह के बेटे
महेंद्र सिंह1971–2009भगवत सिंह के बेटे
विश्वराज सिंह2009–वर्तमानमहेंद्र सिंह के बेटे
लक्ष्यराज सिंह2009–वर्तमानअरविंद सिंह के बेटे

 

सिसोदिया राजघराना और गुहिल वंश

मेवाड़ राजघराने (Royal Family of Mewar)  का इतिहास बहुत पुराना है और इसे सिसोदिया वंश भी कहा जाता है। सिसोदिया का दावा है कि वे भगवान राम के छोटे पुत्र लव के वंशज हैं। लव को लाहौर का राजा बनाया गया था और तीसरी शताब्दी में राजा कनकसेन ने अपनी पत्नी के नाम पर वलभी नगर बसाया था। इनके चार बेटे थे: चन्द्रसेन, राघवसेन, धीरसेन और वीरसेन।

चन्द्रसेन के वंशजों को 'गुहिल' या 'सिसोदिया' कहा गया और इसी वंश ने मेवाड़ की गद्दी को संभाला।

गुहिल राजवंश की शुरुआत

गुहिल राजवंश की शुरुआत 566 ईस्वी में हुई थी, जब राजा गुहादित्य ने राजगद्दी संभाली। इसके बाद, मेवाड़ के 48वें राजा महाराणा उदय सिंह ने राजगद्दी संभाली, जिन्होंने 1531 से 1536 तक शासन किया। फिर उनके बेटे महाराणा प्रताप ने 1537 से 1572 तक राज किया, जिनके बाद इस राजवंश के कई राजा आए।

भूपाल सिंह से भगवत सिंह तक

1930 से 1955 तक भूपाल सिंह मेवाड़ के महाराणा रहे। उनकी पत्नी वीरद कुंवर थीं, और उन्होंने एक बेटा गोद लिया था, जिसका नाम भगवत सिंह था। भगवत सिंह 1955 से 1971 तक मेवाड़ के महाराणा रहे। उनके दो बेटे महेंद्र सिंह और अरविंद सिंह थे। महेंद्र सिंह के बेटे विश्वराज सिंह अब 71वें महाराणा के रूप में ताज पहन चुके हैं।

राजतिलक को लेकर हुआ विवाद

अब, जब विश्वराज सिंह का राजतिलक हुआ है, तो अरविंद सिंह और उनका परिवार इसका विरोध कर रहा है। अरविंद सिंह का कहना है कि राजगद्दी का अधिकार उनके परिवार का है, क्योंकि मेवाड़ राजघराना एक ट्रस्ट के जरिए चलता है, और उनके पिता ने उन्हें इसका संचालन सौंपा था।

इस परिवारिक और कानूनी संघर्ष ने मेवाड़ के इस ऐतिहासिक राजघराने को एक नई दिशा दी है। इस लड़ाई में अब सिर्फ संपत्ति और राजगद्दी का सवाल नहीं है, बल्कि परंपराओं, अधिकारों और परिवार की प्रतिष्ठा का भी सवाल खड़ा हो गया है।

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