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महाकुंभ हादसे पर प्रशासन की नाकामी, पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह बोले - सही तैयारी नहीं थी

महाकुंभ में 29 जनवरी को हुई भगदड़ पर विक्रम सिंह ने प्रशासन की तैयारियों और वीवीआईपी कल्चर पर सवाल उठाए।
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29 जनवरी 2025 को प्रयागराज के महाकुंभ में जो हादसा हुआ, वह हमें 1954 और 1986 के कुंभ हादसों की याद दिलाता है। वही वीवीआईपी कल्चर, वही भीड़ का गलत तरीके से मैनेजमेंट और वही सुरक्षा में कमी। नतीजा – 49 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग लापता। सवाल ये है कि क्या ये हादसा टाला जा सकता था? क्या सरकार ने पिछले हादसों से कुछ सीखा? और सबसे बड़ा सवाल, क्या प्रशासन ने सही तरीके से इस बार तैयारी की थी?

हर हादसे के बाद वही बातें, वही गलतियां

कुंभ के इतिहास में ये कोई पहली बार नहीं है जब भगदड़ मचने से बड़ी संख्या में लोगों की जान गई हो। 1954 में प्रयागराज में हुए कुंभ में भी कुछ ऐसा ही हादसा हुआ था। तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू पर आरोप लगा था कि उनके आने के कारण इतनी बड़ी भीड़ जमा हुई और भगदड़ मच गई। हालांकि, बाद में यह बात सामने आई कि हाथियों के शाही स्नान के दौरान बिदकने के कारण हादसा हुआ। यही वजह रही कि आज के समय में शाही स्नान में हाथियों को प्रतिबंधित कर दिया गया है।

फिर, 1986 में हरिद्वार के कुंभ में भी वीवीआईपी स्नान के दौरान भीड़ इतनी बढ़ गई कि एक बड़े हादसे का सामना करना पड़ा। उस समय के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह पर भी आरोप लगे कि उन्होंने वीवीआईपी को स्नान कराने में इतनी बड़ी व्यवस्था की कि आम श्रद्धालुओं के लिए रास्ते और सुरक्षा में भारी कमी हो गई।

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इतना ही नहीं, 2013 के कुंभ में भी एक हादसा हुआ था, जिसमें 39 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। उस समय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसकी जांच के लिए जस्टिस ओंकारेश्वर भट्ट की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी, जिसने रिपोर्ट में कहा था कि रेलवे और प्रशासन के बीच समन्वय की भारी कमी थी।

फिर वही गलतियां – यही हाल अब 2025 के महाकुंभ में हुआ। सोशल मीडिया पर पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने भी ये सवाल उठाए कि "क्या यह हादसा टाला जा सकता था?" और उनके मुताबिक, "लगता तो यही है कि ऐसे हादसों के लिए तैयारी पूरी थी ही नहीं।"

वीवीआईपी कल्चर और प्रशासन की लापरवाही

विक्रम सिंह का कहना था, "प्रयागराज के कमिश्नर विजय विश्वास पंत किसी पंडे की तरह व्यवहार कर रहे थे। वो चूरन बेचने वाले की तरह बोल रहे थे। उन्हें कोई गंभीरता से क्यों लेगा?" यहां पर वो प्रशासन के अधिकारियों के कामकाजी रवैये पर सवाल उठा रहे थे, जो इतने बड़े आयोजन में सामान्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बजाय वीवीआईपी कल्चर में ही उलझे रहे।

इसके अलावा, उनका कहना था कि "आपके पास इतने बड़े आयोजन के लिए कानून और संस्तुतियां दोनों थीं, लेकिन उनका पालन किया नहीं गया।" यह भी आरोप था कि वीवीआईपी स्नान के लिए सुरक्षा की जो व्यवस्था की गई, उस वजह से आम श्रद्धालुओं की सुरक्षा को नजरअंदाज किया गया।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह

क्या हुआ था, कैसे मच गई भगदड़?

महाकुंभ के दिन लाखों लोग संगम में स्नान करने पहुंचे थे। भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने बहुत से कदम उठाए थे, लेकिन इन उपायों के बावजूद भगदड़ मच गई। विक्रम सिंह ने इस पर कहा, "संगम नोज़ पर पहुंचने के लिए घंटों तक चलकर पहुंचे लोग थे, लेकिन उनके डायवर्जन के लिए कोई प्लानिंग नहीं थी।" यही वजह थी कि भीड़ का दबाव अचानक बढ़ा और भगदड़ मच गई।

कुंभ के इतिहास से यही एक बात बार-बार सामने आती है कि वीवीआईपी कल्चर और प्रशासनिक लापरवाही की वजह से कभी भीड़ का सही तरीके से नियंत्रण नहीं हो पाता। यह हादसा भी उसी का परिणाम था।

अतीत से कुछ नहीं सीखा गया

अगर हम पिछले हादसों पर नजर डालें, तो हर बार उसी बात को दोहराया गया – वीवीआईपी कल्चर और भीड़ के नियंत्रण में भारी चूक। विक्रम सिंह ने कहा, "1954 के हादसे के बाद से जितने भी हादसे हुए, उन सभी कमेटियों ने कहा था कि वीवीआईपी पर पूरी तरह से रोक लगे।" बावजूद इसके, 2025 के महाकुंभ में भी वही गलती दोहराई गई और वीवीआईपी स्नान के लिए विशेष व्यवस्था की गई, जो आम श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए खतरा बन गई।

क्या सरकार ने जिम्मेदारी ली?

महाकुंभ के बाद सरकार ने समिति का गठन किया और जांच शुरू की, लेकिन विक्रम सिंह का कहना था कि सरकार को इस हादसे के बाद मृतकों की संख्या को सार्वजनिक करना चाहिए था। "अगर पोस्टमॉर्टम नहीं हो रहा है तो यह मामला गंभीर है," उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई। उन्होंने यह भी कहा कि "योगी सरकार ने अगर पूर्व की गलतियों से कुछ सीखा होता, तो शायद इस घटना से बचा जा सकता था।"

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यहां तक कि जस्टिस वर्मा और जस्टिस मुखर्जी की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया, जिन्हें पहले के हादसों के बाद सरकारों ने गंभीरता से लिया था। यही वजह है कि विक्रम सिंह ने कहा, "जब दुर्घटना हो गई, तो सरकार को उसे स्वीकार करना चाहिए था और मृतकों की सूची जारी करनी चाहिए थी।"

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