कैश कांड से सुर्खियों में आए जस्टिस यशवंत वर्मा कौन हैं? जानिए उनके 5 बड़े फैसले
जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम इन दिनों चर्चा में है, लेकिन वजह कोई फैसला नहीं, बल्कि उनके सरकारी आवास से कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी मिलने का मामला है। 14 मार्च 2025 को उनके दिल्ली स्थित बंगले के स्टोर रूम में आग लगी, जिसके बाद अधजले नोटों की खबर ने तहलका मचा दिया। जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए तीन जजों की कमिटी बनाई और उन्हें फिलहाल न्यायिक काम से हटा दिया है। कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट वापस भेजने का प्रस्ताव दिया, जिस पर वहाँ के बार एसोसिएशन ने एतराज जताया है। तो आखिर कौन हैं जस्टिस वर्मा, और उनके करियर के क्या हैं पांच अहम पड़ाव? आइए जानते हैं।
जस्टिस वर्मा: वकील से जज तक का सफर
जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म कानूनी माहौल में हुआ—उनके पिता भी इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) और मध्य प्रदेश की रीवा यूनिवर्सिटी से एलएल बी करने के बाद उन्होंने 1992 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। संवैधानिक, श्रम, कॉर्पोरेट, टैक्सेशन और आपराधिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद वे 2006 से 2014 तक हाई कोर्ट में विशेष अधिवक्ता रहे।
वहीं 2012-13 में वे उत्तर प्रदेश के मुख्य स्थायी अधिवक्ता भी बने। 2014 में वे इलाहाबाद हाई कोर्ट में अतिरिक्त जज बने, 2016 में स्थायी जज, और 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट पहुँचे, जहाँ वे चीफ जस्टिस के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ जज थे। अब तक उनके करियर में 11 साल जज के तौर पर बीते हैं।
कैश कांड: क्या है पूरा मामला?
14 मार्च को जस्टिस वर्मा के दिल्ली बंगले में आग लगी। फायर ब्रिगेड ने आग बुझाई तो स्टोर रूम में अधजले नोटों के ढेर मिले। पुलिस ने तस्वीरें और वीडियो सुप्रीम कोर्ट को सौंपे। जस्टिस वर्मा ने दावा किया कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने वहाँ कैश रखा था, और यह उन्हें बदनाम करने की साजिश है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने मामले को गंभीरता से लिया। एक तीन जजों की कमिटी जांच कर रही है, और कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद वापस भेजने का फैसला किया। इलाहाबाद बार ने इसे "कचरे का डिब्बा" बनाना कहकर विरोध जताया और उनके पिछले फैसलों की समीक्षा की माँग की।
जस्टिस वर्मा के वो पांच अहम फैसले
जस्टिस वर्मा ने अपने कार्यकाल में कई चर्चित मामलों में फैसले सुनाए, जो कानूनी और सामाजिक बहस का हिस्सा बने। यहाँ उनके पाँच बड़े फैसले हैं:
1.डॉ. कफील खान को जमानत (2018)
इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस वर्मा ने गोरखपुर के BRD मेडिकल कॉलेज में 2017 में ऑक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफील खान को जमानत दी। सात महीने हिरासत में रहने के बाद वर्मा ने कहा कि चिकित्सीय लापरवाही का कोई ठोस सबूत नहीं है। इस फैसले ने सरकारी जवाबदेही और मानवाधिकारों पर सवाल उठाए।
2.कांग्रेस की टैक्स याचिका खारिज (2024)
मार्च 2024 में दिल्ली HC में जस्टिस वर्मा और जस्टिस कौरव की बेंच ने कांग्रेस की याचिका खारिज की। इनकम टैक्स ने पार्टी पर 210 करोड़ का जुर्माना लगाया था और खाते फ्रीज करने की कार्रवाई की। वर्मा ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं। यह फैसला राजनीतिक हलकों में गूँजा।
3.ED की शक्तियों पर रोक (2023)
जनवरी 2023 में जस्टिस वर्मा ने फैसला दिया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) मनी लॉन्ड्रिंग के अलावा अन्य अपराधों की जाँच नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि बिना पूर्व अपराध के ED अपने मन से कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती। यह फैसला जांच एजेंसियों की मनमानी पर लगाम के तौर पर देखा गया।
4. दिल्ली शराब घोटाले में मीडिया पर नकेल (2022)
नवंबर 2022 में दिल्ली आबकारी नीति मामले में जस्टिस वर्मा ने आप नेता विजय नायर की याचिका पर सुनवाई की। नायर ने कहा कि न्यूज़ चैनलों ने संवेदनशील जानकारी लीक की। वर्मा ने न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स से जवाब माँगा और लीक के स्रोत की जाँच का आदेश दिया, जिससे मीडिया की जिम्मेदारी पर बहस छिड़ी।
5. रेस्तरां सर्विस चार्ज पर रोक (2022)
जुलाई 2022 में जस्टिस वर्मा ने केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के उस नियम पर रोक लगाई, जो रेस्तरां को सर्विस चार्ज वसूलने से रोकता था। उन्होंने कहा कि चार्ज मेनू में साफ दिखना चाहिए। हालाँकि, 2023 में जस्टिस प्रतिभा सिंह ने इसे पलट दिया और 10% की सीमा तय की।
यह भी पढ़ें:
इलाहाबाद HC की 'ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं' वाली टिप्पणी पर SC की रोक, बताया असंवेदनशील और अमानवीय