नोट कांड में जस्टिस यशवंत वर्मा फंसे! दिल्ली हाई कोर्ट का एक्शन, क्या अब होगी सख्त सजा?
Justice Yashwant Varma: न्याय के मंदिर में जब खुद न्यायाधीश सवालों के घेरे में आ जाएं, तो पूरा तंत्र हिल जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली उच्च न्यायालय में, जहां न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को तत्काल प्रभाव से न्यायिक कार्यों से हटा दिया गया। यह फैसला कोई साधारण प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि इसके पीछे की कहानी और भी सनसनीखेज है।
दरअसल, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की सिफारिश पर दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने यह बड़ा कदम उठाया। शनिवार (22 मार्च) को CJI संजीव खन्ना ने एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया, (Justice Yashwant Varma) जो जस्टिस वर्मा के आवास पर कथित रूप से बड़ी मात्रा में बरामद नकदी के मामले की तहकीकात करेगी। न्यायपालिका की साख को झकझोर देने वाले इस घटनाक्रम ने कानूनी गलियारों में हलचल मचा दी है।
आखिर क्या है पूरा मामला? क्यों एक सिटिंग जज को न्यायिक कार्यों से हटाने की नौबत आई? क्या यह भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित होगा? जानिए इस सनसनीखेज केस की पूरी कहानी...
दिल्ली उच्च न्यायालय ने लिया बड़ा एक्शन
सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया, "हाल की घटनाओं के मद्देनजर, माननीय न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से न्यायिक कार्य तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाता है, जब तक कि आगे कोई आदेश न हो।" इस निर्णय के बाद उच्च न्यायालय ने एक नया रोस्टर जारी किया, जिसके तहत न्यायमूर्ति वर्मा की पीठ द्वारा सुने जाने वाले मामलों को न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ को सौंप दिया गया। यह व्यवस्था मंगलवार से लागू होगी।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा नहीं कर सकेंगे कोई न्यायिक कार्य
शनिवार को CJI संजीव खन्ना की सिफारिश के आधार पर यह निर्णय लिया गया कि फिलहाल न्यायमूर्ति वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। इस आंतरिक जांच समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं।
दिल्ली HC के मुख्य न्यायाधीश ने की जांच की सिफारिश
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पर लगे गंभीर आरोपों के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने पूरे मामले की गहराई से जांच की सिफारिश की। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी एक रिपोर्ट में, न्यायमूर्ति उपाध्याय ने कहा, "मुझे प्रारंभिक रूप से लगता है कि पूरे मामले की गहराई से जांच की आवश्यकता है।"
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद 14 मार्च की रात को न्यायमूर्ति वर्मा के तुगलक रोड स्थित आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना से शुरू हुआ। दिल्ली फायर सर्विस (DFS) ने रात 11:35 बजे आग बुझा दी, लेकिन दमकल कर्मियों और संभवतः पुलिस को वहां कथित रूप से नकदी के बंडल मिले, जिनमें से कुछ जले हुए थे। घटना के समय न्यायमूर्ति वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल में थे।
न्यायाधीशों ने जांच की मांग की
20 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, स्थानांतरित करने की सिफारिश की। हालांकि, विचार-विमर्श के दौरान, कम से कम दो न्यायाधीशों ने मात्र स्थानांतरण को पर्याप्त नहीं माना और तत्काल आंतरिक जांच की मांग की। एक न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि न्यायमूर्ति वर्मा से तुरंत न्यायिक कार्य वापस ले लिया जाए, जबकि दूसरे ने औपचारिक जांच की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि संस्थागत जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
संसद तक पहुंचा मामला
यह विवाद संसद तक भी पहुंच गया है। 21 मार्च को राज्यसभा में, अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की न्यायिक जवाबदेही पर चर्चा की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे इस मुद्दे पर संरचित चर्चाओं के लिए तंत्र विकसित करने पर विचार करेंगे। धनखड़ ने संकेत दिया कि वे 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) पर फिर से बहस शुरू करने की संभावना पर विचार कर सकते हैं।
आगे क्या होगा?
अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति की रिपोर्ट पर टिकी हैं। यदि न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोप साबित होते हैं, तो उन्हें न केवल स्थानांतरित किया जा सकता है, बल्कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी हो सकती है। यह मामला न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।
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