हाईकोर्ट के 769 जजों में सिर्फ 95 ने किया अपनी संपत्ति का खुलासा, जाने पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट के सभी 33 जजों ने हाल ही में अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने का फैसला लिया है। ये कदम पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ी पहल मानी जा रही है। लेकिन जब देश के हाईकोर्ट की बात आती है, तो तस्वीर कुछ और ही नजर आती है।
फिलहाल देश में कुल 25 हाईकोर्ट हैं, जहां 769 जज कार्यरत हैं। लेकिन इनमें से सिर्फ 95 जजों ने ही अब तक अपनी संपत्ति और देनदारियों की जानकारी सार्वजनिक की है। यानी कुल जजों में से केवल 12.35 प्रतिशत ने ही यह जानकारी सबके सामने रखी है।
इस मुद्दे पर हाईकोर्ट के जजों का रुख काफी ठंडा नजर आता है। सुप्रीम कोर्ट के जजों की पहल के बावजूद हाईकोर्टों में इस दिशा में गंभीरता की कमी दिखती है। यही वजह है कि न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं।
कहां कितने जजों ने की संपत्ति की घोषणा
कुछ हाईकोर्ट्स ने अपने जजों की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने में अच्छा काम किया है। इसमें केरल और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा है।
केरल हाईकोर्ट की बात करें तो यहां 44 जजों में से 41 ने अपनी संपत्ति की जानकारी दी है। यानी करीब 93% जजों ने पारदर्शिता दिखाई है। यह पूरे देश में एक मिसाल की तरह है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट भी पीछे नहीं है। यहां 12 में से 11 जजों ने अपनी संपत्ति घोषित की है, जो करीब 91.6% है।
दूसरी तरफ दिल्ली हाईकोर्ट का मामला थोड़ा अलग है। यहां 64 ऐसे जजों की संपत्ति की जानकारी उपलब्ध है, जिनमें से ज़्यादातर अब रिटायर हो चुके हैं, किसी और जगह ट्रांसफर हो गए हैं या सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हो चुके हैं। इनमें कई घोषणाएं फरवरी 2010 तक की हैं, जिससे यह समझ आता है कि वर्तमान जजों की तुलना में पुराने जजों की जानकारी ज़्यादा सामने है।
पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पारदर्शिता की ओर एक अहम कदम बढ़ाया है। 1 अप्रैल 2025 को हुई एक बड़ी बैठक में सभी 33 जज—including देश के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना—ने मिलकर ये फैसला लिया कि वे अपनी संपत्तियों की जानकारी सार्वजनिक करेंगे।
कहां उपलब्ध होगी जानकारी?
अब सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर जजों की संपत्ति से जुड़ी जानकारी मौजूद है। पहले यह पूरी तरह जजों की इच्छा पर निर्भर होता था कि वे अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करें या नहीं।
अगस्त 2023 में संसद की एक स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की थी जिसका नाम था – “न्यायिक प्रक्रियाएं और उनके सुधार।” इस रिपोर्ट में सरकार से कहा गया था कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों के लिए हर साल संपत्ति की जानकारी देना अनिवार्य किया जाए।
समिति का मानना था कि ऐसा करने से न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी। लेकिन अभी तक इस पर कोई पक्का फैसला या क़ानून नहीं आया है।
जजों के लिए अपनी संपत्ति सार्वजनिक करना कोई ज़रूरी नहीं
भारत में बाकी सरकारी कर्मचारियों की तरह जजों के लिए अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करना कोई ज़रूरी कानून नहीं है।
1997 में उस समय के चीफ जस्टिस जे.एस. वर्मा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के जजों की एक बैठक हुई थी। उस मीटिंग में ये तय किया गया कि हर जज को अपनी, अपने जीवनसाथी की और अपने आश्रितों की संपत्ति की जानकारी चीफ जस्टिस को देनी चाहिए। लेकिन ये जानकारी सिर्फ चीफ जस्टिस के लिए थी, आम लोगों के लिए नहीं।
2009 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई जज चाहे तो अपनी संपत्ति की जानकारी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर डाल सकता है, लेकिन ये पूरी तरह उनकी मर्जी पर होगा। इसके बाद कुछ हाईकोर्टों ने भी ऐसा करना शुरू किया, लेकिन ये चलन हर जगह नहीं अपनाया गया।
सिर्फ 7 जजों ने की संपत्ति की घोषणा
दिल्ली हाईकोर्ट में इस वक्त कुल 39 जज काम कर रहे हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 7 जजों ने ही अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक की है। हाल ही में जज यशवंत वर्मा का नाम चर्चा में आया जब उनके घर से नकदी से भरी बोरियां मिलने की खबरें सामने आईं। इसके बाद से पारदर्शिता और भ्रष्टाचार को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने जज वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया है। उन्होंने वहां पदभार तो संभाल लिया है, लेकिन उन्हें अभी तक कोई केस सुनवाई के लिए नहीं दिया गया है।
न्यायपालिका में पारदर्शिता की कमी
देश के हाईकोर्टों में सिर्फ 12.35% जज ही अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करते हैं। इससे साफ है कि न्यायपालिका में पारदर्शिता अब भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस दिशा में एक अच्छा कदम उठाया है, लेकिन हाईकोर्टों में इसे लागू करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए ठोस नीति और सख्त कानूनों की जरूरत महसूस की जा रही है। संसद की एक समिति ने पहले ही यह सुझाव दिया है कि जजों के लिए संपत्ति घोषित करना जरूरी किया जाए।
सरकार उठा सकती है ये जरुरी कदम
अगर सरकार चाह ले, तो इस मुद्दे पर तीन ज़रूरी कदम तुरंत उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, उसे संसदीय समिति की सिफारिशों पर जल्दी से काम शुरू कर देना चाहिए। दूसरा, सभी हाईकोर्ट में एक जैसी नीति लागू होनी चाहिए, ताकि कोई भ्रम न रहे। तीसरी बात, जजों की संपत्ति की जानकारी देना अब स्वैच्छिक नहीं, बल्कि ज़रूरी कर देना चाहिए। कुछ हाईकोर्ट के जजों ने तो अपनी संपत्ति की जानकारी पहले ही दे दी है, तो फिर बाकी जज क्यों पीछे हैं? सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में साफ निर्देश देने चाहिए।