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Jagdeep Dhankhar: सुप्रीम कोर्ट पर क्यों बिफरे उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 142 को क्यों बताया न्यूक्लियर मिसाइल?

Jagdeep Dhankhar: नई दिल्ली: पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी।
05:12 PM Apr 17, 2025 IST | Pushpendra Trivedi

Jagdeep Dhankhar: नई दिल्ली: पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उपराष्ट्रपति ने कहा- हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते कि अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय को मिले विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ चौबीसों घंटे उपलब्ध परमाणु मिसाइल बन गए हैं। दरअसल, अनुच्छेद 142 भारत के सर्वोच्च न्यायालय को पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या निर्णय देने का अधिकार देता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो।

क्यों शुरू हुआ यह मामला?

धनखड़ ने आगे कहा कि लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार सबसे अहम होती है और सभी संस्थाओं को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि कोई भी संस्था संविधान से ऊपर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक डिसीजन लिया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक पर एक महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। इस फैसले के दौरान कोर्ट ने राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह आदेश 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया था।

‘फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है’

11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपालों द्वारा भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति को पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता तय करेगी।

तमिलनाडु सरकार के पक्ष में दिया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा सरकार के 10 महत्वपूर्ण विधेयकों को रोकने को भी अवैध करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह मनमाना कदम है और कानून की दृष्टि से सही नहीं है। राज्यपाल को राज्य विधानसभा की मदद करनी चाहिए थी और सलाह देनी चाहिए थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर एक महीने के भीतर कार्रवाई करें। सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें कहा गया कि राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य के महत्वपूर्ण विधेयकों को रोक रखा है। आपको बता दें कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में काम कर चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी आरएन रवि ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पद संभाला था।

सुपर संसद के रूप में काम नहीं कर सकते न्यायधीशः धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लिए जाने के वास्ते समयसीमा निर्धारित करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसले पर शुक्रवार को चिंता जताई। उन्होंने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक ‘सुपर संसद' के रूप में कार्य करेंगे। धनखड़ ने कहा, ‘‘हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं?

देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा। यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र का सौदा नहीं किया था। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है।''

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