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क्या है ISRO का SPADEX मिशन? ‘स्पेस डॉकिंग’ में भारत बन पायेगा चौथा देश? जानें इस मिशन का पूरा हाल

इस महीने के अंत में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो अपने नए अंतरिक्ष अभियान को लॉन्च करने जा रहा है, जो एक और महत्वपूर्ण इतिहास बनाने की दिशा में एक कदम है।
10:40 AM Dec 22, 2024 IST | Vyom Tiwari

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। शनिवार को इसरो ने अपने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (SPADEX) उपग्रहों की पहली झलक दिखाई। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लॉन्च पैड पर रखा गया है। इसरो के अनुसार इस एक्सपेरीमेंट का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में दो यानों की डॉकिंग (एक यान का दूसरे से जुड़ना) और अंडॉकिंग (दो जुड़े यानों का अलग होना) के लिए जरूरी तकनीक विकसित करना है।

क्या है SPADEX मिशन?

इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर यह जानकारी साझा की। इसरो ने एक पोस्ट में बताया, ‘हमने प्रक्षेपण यान को एक साथ जोड़ दिया है, और अब सैटेलाइट्स को स्थापित करने और लॉन्च की तैयारियों के लिए इसे लांचिंग पैड पर ले जाया गया है।’ इसरो के अनुसार, 'स्पैडेक्स' (SPADEX) मिशन, पीएसएलवी द्वारा प्रक्षिप्त दो छोटे अंतरिक्ष यानों का उपयोग करके अंतरिक्ष में डॉकिंग की तकनीक का प्रदर्शन करेगा।

भारतीय अंतरिक्ष केंद्र के निर्माण में होगा महत्वपूर्ण 

इसरो ने बताया कि यह नई तकनीक भारत के चंद्र मिशन, चंद्रमा से सैंपल लाने, और भारतीय अंतरिक्ष केंद्र (BAS) के निर्माण और संचालन के लिए महत्वपूर्ण है। जब अंतरिक्ष में एक से अधिक रॉकेट लॉन्च करके साझा मिशन के उद्देश्य पूरे करने होते हैं, तो ‘डॉकिंग’ तकनीक की जरूरत होती है। अगर इस मिशन में सफलता मिलती है, तो भारत अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा।

इसरो ने बताया कि स्पैडेक्स (SPADEX) मिशन के तहत दो छोटे अंतरिक्ष यान, जिनका वजन करीब 220 किग्रा है, को पीएसएलवी-सी60 रॉकेट द्वारा एक साथ और स्वतंत्र रूप से 55 डिग्री के झुकाव के साथ 470 किमी की ऊंचाई पर स्थित वृत्ताकार कक्षा में भेजा जाएगा। इन यानों का स्थानीय समय चक्र लगभग 66 दिन का होगा।

PSLV-C60 दिखाएगा ‘स्पेस डॉकिंग’

इस महीने के अंत तक पीएसएलवी-सी60 के जरिए इस मिशन को लॉन्च किया जाएगा। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ पहले ही कह चुके हैं कि पीएसएलवी-सी60 मिशन ‘स्पेस डॉकिंग’ का प्रयोग दिखाएगा, जिसे ‘स्पैडेक्स’ नाम दिया गया है। इसे संभवत: दिसंबर महीने में ही पूरा किया जा सकता है।

‘स्पेस डॉकिंग’ कैसे करती है काम? 

‘स्पेस डॉकिंग’ एक ऐसी तकनीक है, जिससे अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट को जोड़ सकते हैं। इस तकनीक की मदद से एक अंतरिक्ष यान से दूसरे यान में जाना संभव होता है। इसका महत्व खासतौर पर अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन में है, क्योंकि डॉकिंग से अंतरिक्ष यान खुद-ब-खुद स्टेशन से जुड़ सकता है। यह तकनीक भारत को अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने और चंद्रयान-4 जैसे अभियानों में भी मदद करेगी।

 

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