नए पोप के चुनाव में भारत के 6 में से सिर्फ 4 कार्डिनल डालेंगे वोट, जाने दो क्यों रह जाएंगे वंचित ?
पोप फ्रांसिस के 88 वर्ष की उम्र में निधन के बाद वैटिकन में नए पोप के चुनाव(Christian religious leader Pope Francis) की प्रक्रिया शुरू होने को है। सेंट मार्टा चैपल और सेंट पीटर्स में श्रद्धांजलि के बाद, कार्डिनल्स कॉलेज के डीन जियोवनी बैटिस्टा रे (Cardinal Giovanni Battista Re) अंतिम संस्कार आयोजित करेंगे। फिर उसके बाद सिस्टिन चैपल में कॉन्क्लेव बुलाया जाएगा, जहां 138 कार्डिनल्स नए पोप चुनेंगे। जिसमें भारत के छह कार्डिनल्स में से चार इस ऐतिहासिक मतदान में हिस्सा लेंगे, लेकिन दो उम्र की सीमा के कारण बाहर रह जाएंगे। कौन हैं ये चार, और दो क्यों वंचित रहेंगे? आइए, इस कहानी को सरल अंदाज में समझें।
भारत में कुल कितने कार्डिनल्स?
दरअसल 22 जनवरी 2025 तक के आंकड़ों में कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स में 252 कार्डिनल्स हैं, लेकिन नए पोप के चुनाव में सिर्फ 138 वोट दे सकते हैं। कॉन्क्लेव के नियम कहते हैं कि 80 साल से ज्यादा उम्र के कार्डिनल्स मतदान नहीं कर सकते। उसी प्रकार भारत में छह कार्डिनल्स हैं, जिनमें से चार की उम्र 80 से कम है, इसलिए वे वोट देंगे।
जबकि दो कार्डिनल्स 80 साल या उससे ज्यादा उम्र के चलते इस प्रक्रिया से बाहर रहेंगे। यह नियम 1970 में पोप पॉल VI ने बनाया था ताकि कॉन्क्लेव में युवा और सक्रिय नेतृत्व शामिल हो।
वोट देने वाले चार भारतीय कार्डिनल्स कौन?
भारत के चार कार्डिनल्स सिस्टिन चैपल में होने वाले गुप्त मतदान का हिस्सा रहेंगे, जोकि वैटिकन की सियासत में देश का झंडा बुलंद करेंगे। उनका विवरण इस प्रकार है:
1.फिलिप नेरी फेराओ (72): गोवा और दमन के आर्कबिशप, सामाजिक न्याय और जलवायु परिवर्तन के योद्धा। 2022 में कार्डिनल बने, ये ‘एशियन बिशप्स फेडरेशन’ के अध्यक्ष हैं। प्रवासियों और गरीबों के लिए उनकी आवाज कॉन्क्लेव में गूंज सकती है।
2.बेसिलियोस क्लीमिस (64): केरल के सिरो-मलंकरा कैथोलिक चर्च के मेजर आर्कबिशप। 2012 में कार्डिनल बने, ये पारंपरिक और आधुनिक ईसाई मूल्यों के बीच सेतु हैं। उनकी अंतरधार्मिक संवाद की समझ भारत की विविधता को दर्शाएगी।
3.एंथनी पूला (63): हैदराबाद के आर्कबिशप और भारत के पहले दलित कार्डिनल। गरीबी उन्मूलन और समानता के लिए उनका समर्पण फ्रांसिस की विरासत से मेल खाता है। उनकी मौजूदगी कॉन्क्लेव में समावेशिता का संदेश देगी।
4.जॉर्ज जैकब कूवाकड (51): सबसे युवा भारतीय कार्डिनल, केरल के सिरो-मालाबार आर्कबिशप। 2024 में कार्डिनल बने और 2025 में वेटिकन के अंतरधार्मिक संवाद प्रमुख नियुक्त हुए। 2021 में फ्रांसिस की यात्राओं के आयोजक रहे कूवाकड की कूटनीतिक चतुराई कॉन्क्लेव में असर डाल सकती है।
बता दें कि ये चारों 80 साल से कम उम्र के हैं, इसलिए कॉन्क्लेव में वोट देकर 1.4 अरब कैथोलिक्स के अगले नेता को चुनने में भारत की आवाज बनेंगे।
दो कार्डिनल्स क्यों रह जाएंगे वंचित?
दो भारतीय कार्डिनल्स—ओसवाल्ड ग्रेसियस और जॉर्ज एलेनचेरी—उम्र की सीमा के कारण कॉन्क्लेव में वोट नहीं दे सकेंगे। जानिए उनके बारे में...
1.ओसवाल्ड ग्रेसियस (80): बॉम्बे के आर्कबिशप, कैनन लॉ और न्यायशास्त्र के विद्वान। 2007 में कार्डिनल बने, लेकिन 80 साल की उम्र होने के कारण वे मतदान से बाहर हैं। उनकी विद्वता और अनुभव सामान्य बैठकों में चर्च को दिशा दे सकते हैं, मगर वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सकते।
2.जॉर्ज एलेनचेरी (80): सिरो-मालाबार चर्च के मेजर आर्कबिशप एमेरिटस। 19 अप्रैल 2025 को 80 साल पूरे होने के कारण वे कॉन्क्लेव से ठीक पहले वोटिंग की पात्रता खो बैठे। 2012 में कार्डिनल बने एलेनचेरी का अनुभव चर्च के लिए कीमती है, लेकिन उम्र का नियम उन्हें रोकता है।
वहीं कॉन्क्लेव के नियम सख्त हैं कि 80 साल से ज्यादा उम्र के कार्डिनल्स चर्च की सामान्य बैठकों में हिस्सा ले सकते हैं, लेकिन सिस्टिन चैपल में मतपत्र डालने का हक सिर्फ 80 से कम उम्र वालों को है। यह नियम सुनिश्चित करता है कि चर्च का भविष्य युवा नेतृत्व चुने।
कॉन्क्लेव में भारत की भूमिका क्यों अहम?
भारत के चार कार्डिनल्स का वोट सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि 2.8 करोड़ भारतीय कैथोलिक्स की आकांक्षाओं का प्रतीक है। फेराओ और पूला सामाजिक न्याय, क्लीमिस अंतरधार्मिक संवाद, और कूवाकड वैश्विक कूटनीति की आवाज उठा सकते हैं। यूरोप के 48 वोटर कार्डिनल्स सबसे बड़ा ब्लॉक हैं, लेकिन एशिया (18 वोटर) और अफ्रीका (17 वोटर) का प्रभाव भी बढ़ रहा है। भारत के कार्डिनल्स फ्रांसिस की प्रगतिशील विरासत—जैसे गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन, और समावेशिता—को आगे ले जाने वाले पोप को चुनने में मदद कर सकते हैं। अब इस बीच क्या टैगले (फिलीपींस) या जुप्पी (इटली) जैसे दावेदारों को भारत का समर्थन मिलेगा? यह देखना कॉन्क्लेव का असली रोमांच रहेगा।
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