'आयुष्मान कार्ड होते हुए भी पैसा देकर कराना पड़ता है इलाज', संसद में हेमा मालिनी ने उठाया मुद्दा
Hema Malini On Ayushman Card: मथुरा से BJP सांसद हेमा मालिनी ने संसद में एक ऐसा सवाल उठाया, जो देश के कोने-कोने में आयुष्मान कार्ड थामे लोगों के जख्मों को कुरेद गया। हेमा मालिनी ने अपनी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से ही पूछ लिया कि जब कार्ड मुफ्त इलाज का वाद करता है, तो फिर जरूरतमंद क्यों पैसे देकर उसी अस्पताल में दवा-डॉक्टर का इंतजाम करने को मजबूर हैं। जवाब में नड्डा ने आंकड़ों का ढेर लगाया, पर सवालों का बोझ हल्का नहीं हुआ। चलिए, इस ख़बर को विस्तार से जानते हैं।
हेमा मालिनी ने क्या कहा?
हेमा मालिनी ने संसद में आयुष्मान कार्ड पर सवाल उठते हुए बोला कि "आयुष्मान भारत योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई समस्याएं हैं। लाभार्थियों के पास आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद अस्पताल प्रशासन बेड की कमी या जरूरी दस्तावेजों के अभाव का बहाना बनाकर मरीजों को इलाज से वंचित कर देता है। इस वजह से गरीब लोगों को पैसे देकर इलाज कराना पड़ता है।" उन्होंने यह भी पूछा कि क्या मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, बीमारियों के उन्मूलन और स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है?
स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने क्या जवाब दिया?
स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने हेमा मालिनी के सवालों का जवाब देते हुए आयुष्मान भारत योजना की उपलब्धियों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "आयुष्मान भारत योजना दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य कवरेज कार्यक्रम है, जो 63 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचा रहा है। अगर कहीं कोई शिकायत है तो हमें बताएं, हम उसका निवारण करेंगे।" उन्होंने यह भी बताया कि योजना के तहत 5.19 लाख स्वास्थ्य कर्मचारियों को नियुक्त किया गया है और 1,76,573 आयुष्मान आरोग्य मंदिर और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए गए हैं।
शिकायतों के ढेर के बीच कड़वी हकीकत
आयुष्मान कार्ड का सपना गरीब को मुफ्त इलाज का हक देना था, मगर शिकायतें कुछ और कहती हैं। हेमा ने जो बात उठाई, वो कोई नई नहीं हैं। देशभर से खबरें आती हैं कि निजी अस्पताल मरीजों को डराते हैं—’पैर कटवाओ तो फ्री, वरना बिल भरो।’ कहीं बेड न होने का बहाना, तो कहीं दस्तावेजों की आड़ में इलाज से इनकार। योजना में 5 लाख तक का कवरेज है, लेकिन कई बार मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ती है। ग्रामीण इलाकों में तो हाल और बुरा—न अस्पताल, न सुविधा, बस कार्ड का ढोल। हेमा का सवाल यही था कि जब योजना इतनी बड़ी है, तो ये खामियां क्यों बरकरार हैं?
प्रगति तो हुई मगर अधूरी
नड्डा ने आंकड़े गिनाए कि मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ गैर-संचारी बीमारियों से लड़ने को ढांचा खड़ा हुआ। 5.19 लाख हेल्थ वर्कर्स की भर्ती और 6410 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इसका सबूत हैं। लेकिन ये तस्वीर जब तक अधूरी रहेगी तब तक कि अस्पतालों की मनमानी नहीं रुकेगी। बता दें कि हेमा मालिनी ने जो मुद्दा उठाया, वो सिर्फ मथुरा की नहीं वरन् पूरे देश की आवाज है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी करेगी, या गरीब के कार्ड को सचमुच उसकी सेहत का हथियार बनाएगी?
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