वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, मुस्लिम पक्ष ने दी ये दलीलें
संसद में पास किए जाने के बाद से वक्फ कानून पर लगातार बहस हो रही है। जहां गैरमुस्लिम इसे जरूरी और महत्वपूर्ण बता रहे हैं वही मुस्लिम पक्ष इसे लेकर विरोध में खड़ा है। वक्फ संशोधन बिल को खारिज करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी बहुत सारी याचिकाएं दायर की गई हैं जिन पर आज सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट में आज इसी बात पर सुनवाई होगी कि क्या वक्फ कानून हमारे संविधान की आत्मा से मेल खाता है या इससे देश में धार्मिक ध्रुवीकरण और विभाजन की नींव रखी जा रही है?
वक्फ एक्ट पर देश में बन चुके हैं दो धड़े
कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती दी गई है। बिल के पक्ष-विपक्ष में कोर्ट में दलीलें दी जा रही हैं। वक्फ एक्ट को लेकर देश दो धड़ों में बंटा नजर आ रहा है – एक पक्ष इसे धार्मिक आज़ादी पर हमला बता रहा है तो दूसरा इसे भूमि सुधार और पारदर्शिता की दिशा में एक जरूरी कदम मानता है। अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर टिकी हैं जो न सिर्फ एक कानून का भविष्य तय करेगा, बल्कि देश के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने पर भी गहरा असर डालेगा।
मुस्लिम पक्षकार क्यों कर रहे हैं विरोध?
वक्फ एक्ट का विरोध करने वाले मुस्लिम संगठनों का साफ कहना है कि ये कानून न सिर्फ मुसलमानों की धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण की उनकी ताकत को खत्म करता है, बल्कि यह उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर सीधा हमला है। उनका आरोप है कि इस एक्ट के जरिए संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 29, और 300A जैसे मूल अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
विरोध करने वालों की मुख्य आपत्तियाँ कुछ इस प्रकार हैं:
- धार्मिक संपत्तियों पर अधिकार छीनने का आरोप: वक्फ की परिभाषा में बदलाव कर मुसलमानों के धार्मिक स्थलों को पुनः परिभाषित किया गया है।
- वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता पर खतरा: चुनाव प्रणाली को हटाकर लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर किया गया है।
- गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति की आशंका: इससे समुदाय की स्वशासन की अवधारणा को चोट पहुंचती है।
- आदिवासियों के वक्फ पर रोक: इससे उनके धार्मिक अधिकार सीमित होते हैं।
- मनमानी कार्यपालिका का डर: मुसलमानों को लगता है कि उनके धार्मिक संस्थानों का नियंत्रण सरकार के हाथ में चला जाएगा।
- भारतीय संविधान के खिलाफ बताया: AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने इसे भारतीय संविधान के खिलाफ और अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमला बताया है।
वक्फ बिल के सपोर्ट में आई ये दलीलें
फिलहाल गैर-मुस्लिम समुदाय तथा भाजपा शासित राज्य इस बिल के समर्थन में माने जा रहे हैं। हरियाणा, मध्य प्रदेश, असम, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे बीजेपी शासित राज्यों का मानना है कि वक्फ संशोधन कानून एक सुधारात्मक कदम है, जो वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता और कुशल प्रबंधन की दिशा में उठाया गया है। ये भी बिल को सपोर्ट करने के लिए निम्न दलीलें दे रहे हैं।
- वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड गड़बड़: अधूरी जानकारी, लंबित केस और गुम म्यूटेशन रिकॉर्ड जैसे मुद्दे बार-बार सामने आते रहे हैं।
- भूमि विवाद कम होंगे: संशोधन से गलत ढंग से वक्फ घोषित की जा रही संपत्तियों को लेकर स्पष्टता आएगी।
- आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा: असम जैसे राज्यों ने कहा कि 6ठीं अनुसूची वाले क्षेत्रों को वक्फ घोषित करने से रोकना जरूरी है।
हिंदू पक्षकारों का क्या कहना है?
सिर्फ मुस्लिम पक्षकार ही नहीं, दो हिंदू याचिकाकर्ताओं ने भी 1955 के मूल वक्फ एक्ट को चुनौती दी है। हरि शंकर जैन और पारुल खेड़ा ने तर्क दिया है कि यह कानून मुसलमानों को सरकारी और हिंदू धार्मिक जमीनों पर अवैध कब्जा करने का रास्ता देता है। इसके अलावा हिंदू सेना, अखिल भारत हिंदू महासभा, और अन्य संगठनों ने भी कानून में संशोधन के समर्थन में याचिकाएं दायर की हैं।
केंद्र सरकार का है यह पक्ष
केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि वक्फ कानून से गरीब मुसलमानों को फायदा पहुंचेगा और यह किसी के खिलाफ नहीं है। उनका कहना है कि मोदी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति के तहत काम कर रही है और हर इंच जमीन को उसके असली मालिक के लिए सुरक्षित करने को प्रतिबद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट का क्या होगा फैसला?
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ इस संवेदनशील और ऐतिहासिक मामले पर सुनवाई कर रही है। 73 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जो दर्शाता है कि यह मुद्दा न सिर्फ संवैधानिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर भी कितना गूढ़ है।
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