Fake Doctor of Damoh: पकड़ा गया दमोह का फर्जी डॉक्टर, जिसकी वजह से गईं 7 मरीजों की जान, दिल का किया था ऑपरेशन!
Fake Doctor of Damoh: दमोह। जिले के मिशन अस्पताल में पदस्थापित रहे कथित तौर पर लंदन रिटर्न डॉक्टर नरेंद्र यादव की करतूतें धीरे-धीरे ही सही सामने आ रही हैं। राहत की बात ये है कि दमोह पुलिस की टीम ने आरोपी डॉक्टर नरेंद्र जॉन कैम को प्रयागराज से हिरासत में ले लिया है और उससे पूछताछ की जा रही है। इस बीच अब ये भी सामने आया कि इसी डॉक्टर ने साल 2006 में छत्तीसगढ़ के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की सर्जरी भी की थी, जिसमें उनकी मौत हो गई है। अब उनके बेटे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस अनिल शुक्ला ने पूरे मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग की। दूसरी तरफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले पर रिपोर्ट मांग ली।
जिंदगी की जगह मिली मौत
दरअसल, दमोह में एक नामी-गिरामी मिशन अस्पताल है। यहां बीते दिनों लंदन के नामी कार्डियोलॉजिस्ट 'डॉ. एनजोन केम' के नाम पर 15 मरीजों के ऑपरेशन किए। लेकिन ऑपरेशन करने वाला फर्जी डॉक्टर डॉ. नरेंद्र यादव उर्फ नरेंद्र जॉन केम था। उसने कुछ दिनों के अंतराल में ये सारे ऑपरेशन किए। आरोप हैं कि इसमें से 7 मरीजों की मौत हो गई। इसमें से दो पेशेंट की मौत की तो पुष्टि भी हो गई। जिस हॉस्पिटल में मरीजों को जिंदगी मिलनी थी, वहां कथित तौर पर मौत का कारोबार चल रहा था।
डॉक्टर से पूछ सवाल तो भागे
इसी अस्पताल में आरोपी डॉक्टर ने बीते 15 जनवरी को रहिसा बेगम का ऑपरेशन किया था। दमोह की रहीसा बेगम को 12 जनवरी को सीने में दर्द हुआ था। पहले उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद उन्हें उनके परिजन मिशन अस्पताल लेकर आए। तब अस्पताल ने उनसे जांच के नाम पर 50 हजार रुपए लिए और बताया कि रहिसा के दो नसों में 90% ब्लॉकेज है, लिहाजा ऑपरेशन करना होगा। 15 जनवरी को ऑपरेशन हुआ और उनकी मौत हो गई। रहिसा के बेटे नबी कुरैशी बताते हैं कि जब हम डॉक्टर से इलाज के बारे में पूछने गए तो वो भाग गया।
डॉक्टर ने ही मना किया पोस्टमार्टम कराने को
इसी तरह से इसी साल 4 फरवरी को मंगल सिंह के साथ हुआ। दमोह में पटेरा ब्लॉक के रहने वाले मंगल सिंह को 4 फरवरी को गैस की तकलीफ हुई थी। उनका बेटा उन्हें मिशन अस्पताल लेकर आया। वहां एंजियोग्राफी करने के बाद बताया गया कि हार्ट का ऑपरेशन करना होगा। परिजनों की सहमति पर ऑपरेशन हुआ और मंगल सिंह की मौत हो गई। इसी तरह से बुधा अहिरवाल, इस्राइल खान और दसोंदा रैकवार जैसे 15 मरीजों का ऑपरेशन किया गया जिसमें से 7 की मौत संदिग्ध हालत में हो गई।
लोगों की जान के साथ खिलवाड़
कुल मिलाकर इस कथित डॉक्टर ने सिर्फ इलाज नहीं किया बल्कि एक के बाद एक आम लोगों के शरीरों पर ‘प्रैक्टिस' की। 15 दिल के मरीजों की सर्जरी की, जिनमें 7 की मौत हो गई। इनके परिवार वाले इलाज की फाइल मांगते रहे लेकिन अस्पताल ने जवाब में चुप्पी साध ली। जिले में भी स्वास्थ्य महकमे को चलाने वालों को इसकी शिकायत मिली 20 फरवरी को, लेकिन नोटिस भेजा गया पूरे 40 दिन बाद। तब जाकर इस नकली डॉक्टर का राज खुला। अस्पताल इसका ठीकरा प्लेसमेंट एजेंसी पर फोड़ रहा है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि आरोपी ने उनके यहां भी चोरी की है।
आधार कार्ड पर नाम है- नरेंद्र विक्रमादित्य यादव
छानबीन हुई तो पता चला कि आरोपी डॉक्टर का आधार कार्ड पर नाम है- नरेंद्र विक्रमादित्य यादव और वो देहरादून का रहने वाला है। डिग्रियों के नाम पर उसके पास एक एमबीबीएस की डिग्री आंध्र प्रदेश से है। उसके बाद तीन एमडी और कार्डियोलॉजी की डिग्रियां – बिना किसी रजिस्ट्रेशन नंबर के पाई गईं। साल 2006 में बिलासपुर के बड़े निजी अस्पताल में भी ऐसी ही घटना हुई थी। उस वक्त छत्तीसगढ़ के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की सर्जरी करते समय उनकी मौत हो गई थी। परिजनों का आरोप है कि उस ऑपरेशन को भी नरेंद्र ने ही अंजाम दिया था।
इस मामले में अपोलो बिलासपुर के जनसंपर्क अधिकारी देवेश गोपाल का कहना है कि काफी पुरानी बात है। 18-19 साल पुराने दस्तावेज चेक करने के बाद ही वे कुछ बता पाएंगे कि उस वक्त क्या हुआ था। अब सवाल यह नहीं है कि डॉक्टर फर्ज़ी था। सवाल ये है कि उसे फर्ज़ी इलाज करने की छूट किसने दी? वो लोग जो भरोसे के पहरेदार थे, क्यों खामोश रहे? और आज जब कई लोगों की मौत हमारे सामने हैं... तो क्या कोई सिस्टम ज़िम्मेदारी लेगा? या फिर ये कहानी भी किसी और की मौत के इंतज़ार में फाइलों में बंद हो जाएगी?
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