दिल्ली में प्रदूषण का खेल: PUC में धांधली, बसों की कमी - CAG रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
दिल्ली की हवा जहरीली बनी हुई है, और अब CAG की ताजा रिपोर्ट ने चौंकाने वाले सच सामने ला दिए हैं। प्रदूषण रोकने के नाम पर न सिर्फ पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम फेल रहा, बल्कि PUC सर्टिफिकेट देने में भी बड़ी गड़बड़ी पकड़ी गई। 2016 से 2020 तक 5 साल में 1195 दिन हवा 'खराब' से 'गंभीर' रही, फिर भी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। बसों की कमी से लेकर गलत जगह बने मॉनिटरिंग स्टेशन तक, ये रिपोर्ट दिल्ली की हकीकत का काला चिट्ठा खोलती है। आइए इसे आसान और रोचक अंदाज में समझते हैं।
PUC में हुआ बड़ा घोटाला
CAG रिपोर्ट ने दिल्ली में PUC (पॉल्युशन अंडर कंट्रोल) सर्टिफिकेट के खेल को उजागर किया है। 10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 तक 65.36 लाख गाड़ियों को PUC दिया गया, लेकिन इसमें भारी गड़बड़ी थी। 22.14 लाख डीजल गाड़ियों में से 24% की टेस्ट वैल्यू ही दर्ज नहीं हुई। 4007 गाड़ियां प्रदूषण के तय स्तर से ज्यादा फैलाती थीं, फिर भी पास कर दी गईं। 7643 मामलों में एक ही समय पर कई गाड़ियों की टेस्टिंग दिखाई गई, और 76,865 केस में 1 मिनट से कम में PUC दे दिया गया - जो असंभव है। साफ है, प्रदूषण रोकने के नाम पर खानापूर्ति हुई।
CM Smt. Rekha Gupta tabled the CAG Report regarding Delhi Air Pollution at the Delhi Legislative Assembly@gupta_rekha pic.twitter.com/6uYafcBHUO
— Delhi Government (@DelhiGovDigital) April 1, 2025
बसों की कमी के साथ–साथ ट्रांसपोर्ट सिस्टम भी फेल
दिल्ली में गाड़ियों की बढ़ती तादाद प्रदूषण का बड़ा कारण है। मार्च 2021 तक 1.3 करोड़ गाड़ियां रजिस्टर्ड थीं, और हर दिन 11 लाख गाड़ियां बाहर से आती थीं। सरकार को 11,000 बसों की जरूरत थी, लेकिन सिर्फ 6,750 ही थीं। DTC की बसें 2014 में 5,223 थीं, जो 2021 में घटकर 3,760 रह गईं। क्लस्टर बसें 1,292 से बढ़कर 2,990 हुईं, पर फिर भी कमी पूरी नहीं हुई। इलेक्ट्रिक ट्रॉली बस या मोनोरेल जैसे विकल्पों पर भी काम नहीं हुआ। नतीजा? लोग निजी गाड़ियों पर निर्भर रहे और प्रदूषण बढ़ता गया।
गलत जगह बनाए मॉनिटरिंग स्टेशन
दिल्ली में हवा की गुणवत्ता मापने के लिए 38 CAAQMS (कंटिन्यूअस एम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन) थे, लेकिन इनकी लोकेशन गलत पाई गई। 13 स्टेशनों की जांच में खुलासा हुआ कि ये पेड़ों, सड़कों, ऊंची इमारतों और कंस्ट्रक्शन साइट के पास बने थे। नियम कहते हैं कि स्टेशन की इनलेट 3-10 मीटर ऊंची हो, पेड़ों से 20 मीटर और कच्ची सड़कों से 200 मीटर दूर हो। आनंद विहार, वजीरपुर, सिविल लाइंस जैसे इलाकों में ये शर्तें पूरी नहीं हुईं। नतीजा - AQI का डेटा सही नहीं हो सकता। DPCC के स्टेशनों में लेड जैसे प्रदूषकों की जांच भी नहीं हुई।
फिटनेस टेस्ट में भी ढिलाई
गाड़ियों की संख्या बढ़ती गई, लेकिन फिटनेस टेस्ट घटते गए। 2014-15 में 1,97,715 गाड़ियों का टेस्ट होना था, पर 79.36% हुआ। 2015-16 में 56.36%, 2016-17 में 67.98%, 2017-18 में 66.73% और 2018-19 में सिर्फ 35.20% गाड़ियों की जांच हुई। इसका मतलब, लाखों गाड़ियां बिना फिटनेस चेक के सड़कों पर दौड़ती रहीं और प्रदूषण फैलाती रहीं। सरकार की लापरवाही ने प्रदूषण रोकने के सारे दावों की हवा निकाल दी।
5 साल में 1195 दिन जहरीली हवा
2016 से 2020 तक 2137 दिनों में से 1195 दिन दिल्ली की हवा 'खराब' से 'गंभीर' रही। अक्टूबर से जनवरी के बीच AQI 250-350 तक पहुंचा, जो सेहत के लिए खतरनाक है। AQI 0-50 को अच्छा माना जाता है, 100-200 पर भी दिक्कत शुरू होती है, लेकिन दिल्ली इससे कहीं ऊपर रही। CAG ने माना कि सरकार प्रदूषण रोकने में नाकाम रही। बसों की कमी, PUC में गड़बड़ी और गलत मॉनिटरिंग स्टेशन इसके सबूत हैं।
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