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दिल्ली चुनाव में BJP का मास्टरस्ट्रोक! क्या इन मुस्लिम-दलित बहुल सीटों पर पहली बार खिलेगा कमल?

दिल्ली में बीजेपी अब तक सिर्फ एक बार, 1993 में सरकार बना पाई है। यहां 11 ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी को अब भी जीत का इंतजार है।
07:51 AM Feb 08, 2025 IST | Vyom Tiwari

दिल्ली में सत्ता तक पहुंचने के लिए बीजेपी ने इस बार पूरी ताकत झोंक दी है। एग्जिट पोल के नतीजे बताते हैं कि पार्टी की मेहनत रंग ला रही है और वह सत्ता में वापसी करती नजर आ रही है। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी दिल्ली में 27 साल से चला आ रहा सत्ता का सूखा खत्म कर देगी। हालांकि, चुनाव जीतने और सरकार बनाने की कोशिशों के बीच एक बड़ा सवाल यह भी है क्या बीजेपी उन 11 सीटों पर जीत दर्ज कर पाएगी जहां अब तक उसका खाता नहीं खुला है?

दिल्ली में 1991 में विधानसभा बहाल होने के बाद अब तक कुल आठ बार चुनाव हो चुके हैं। बीजेपी को यहां सरकार बनाने का मौका सिर्फ एक बार, 1993 में मिला था। लेकिन दिल्ली की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी अभी तक जीत का स्वाद नहीं चख पाई है। इनमें ज्यादातर सीटें मुस्लिम और दलित बहुल इलाकों में हैं। मुस्लिम बहुल इलाकों में राजनीतिक समीकरण बीजेपी के खिलाफ रहे हैं, वहीं दलित वोटर्स भी उसे अब तक खुलकर समर्थन नहीं दे पाए हैं। लेकिन इस बार बीजेपी ने न सिर्फ दिल्ली में जीत हासिल करने की योजना बनाई, बल्कि उन सीटों पर भी फोकस किया, जहां वह कभी जीत नहीं सकी। इसके लिए उसने एक खास रणनीति तैयार की थी।

दिल्ली की इन सीटों पर नहीं खिला कमल 

दिल्ली में 1993 से 2020 तक सात बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और अब 2025 में आठवीं बार चुनाव हुए हैं। इनके नतीजे शनिवार को घोषित किए जाएंगे। दिल्ली में कुछ सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी कभी जीत नहीं पाई। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कोंडली, अंबेडकर नगर, मंगोलपुरी, सुल्तानपुर माजरा और देवली सीट पर बीजेपी ने अब तक जीत दर्ज नहीं की। इसी तरह, मुस्लिम बहुल इलाकों की सीटें – ओखला, मटिया महल, सीलमपुर और बल्लीमारान, साथ ही जंगपुरा और विकासपुरी सीट पर भी बीजेपी को कभी सफलता नहीं मिली। हालांकि, दिल्ली की बाकी 59 सीटों पर बीजेपी ने जीत का स्वाद चखा है।

दिल्ली में 6 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन विधानसभा स्तर पर उसे विपक्षी दलों से कम वोट मिले। खासकर 18 विधानसभा सीटों पर बीजेपी पिछड़ी रही, जिनमें कई ऐसी सीटें थीं जहां वह कभी भी जीत नहीं सकी।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को कुछ विधानसभा सीटों पर विपक्ष से कम वोट मिले, जैसे - सीमापुरी, अंबेडकर नगर, सुल्तानपुर माजरा, ओखला, मटिया महल, सीलमपुर, बल्लीमरान और जंगपुरा। ये वे सीटें हैं जहां बीजेपी अब तक कोई जीत दर्ज नहीं कर पाई है।

हालांकि, बीजेपी ने कोंडली, अंबेडकर नगर, मंगोलपुरी और विकासपुरी में बढ़त जरूर बनाई, जबकि ये वे सीटें हैं जहां विधानसभा चुनावों में उसे कभी सफलता नहीं मिली।

अब सवाल ये है कि क्या बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव में भी अपना वर्चस्व बनाए रख पाएगी? इन सीटों पर जीतने के लिए उसने पूरी ताकत झोंक दी है।

दलित-मुस्लिम वोटों से BJP रही दूर 

दिल्ली में बीजेपी के लिए दलित और मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत हासिल करना हमेशा से मुश्किल रहा है। दिल्ली की 11 ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी कभी नहीं जीत सकी, जिनमें से पांच सीटें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित हैं। खास बात यह है कि 2013 के बाद से दलितों के लिए आरक्षित 12 सीटों में से बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली।

इसके अलावा, मुस्लिम बहुल इलाकों में भी बीजेपी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कमजोर रही है। दलित और मुस्लिम वोट बैंक बीजेपी के लिए अब भी चुनौती बना हुआ है। इसी को ध्यान में रखते हुए, इस बार बीजेपी ने नई रणनीति और प्लानिंग के साथ चुनाव में कदम रखा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या वह इन कठिन सीटों पर जीत हासिल कर पाएगी या नहीं।

बीजेपी क्या इस बार होगी कामयाब

दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी और चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने में काफी हद तक सफल रही। एग्जिट पोल के नतीजे भी बीजेपी के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। इस बार बीजेपी ने उन सीटों पर भी जीत दर्ज करने की रणनीति बनाई, जहां वह पहले कभी नहीं जीती थी। दलित वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए बीजेपी ने अपने दलित नेताओं को खास जिम्मेदारी दी। इसके अलावा, पार्टी के हर नेता ने अपने इलाके में कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बुद्धिजीवियों, आरडब्ल्यूए सदस्यों, मंदिरों के पुजारियों और अन्य संगठनों के प्रमुख लोगों से मुलाकात की और उन्हें पार्टी से जोड़ने की कोशिश की।

बीजेपी ने मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे ओखला, मटिया महल, सीलमपुर और बल्लीमरान में जीत हासिल करने की कोशिश की। हालांकि, पार्टी ने इन सीटों पर किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। दूसरी तरफ, विपक्षी पार्टियों ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन बीजेपी ने उनके मुकाबले हिंदू प्रत्याशी खड़े किए। इस रणनीति से बीजेपी ने चुनावी समीकरण को नया मोड़ देने की कोशिश की। साथ ही, मुस्लिम बहुल सीटों पर AIMIM के जोरदार प्रचार से भी बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा हो सकता है।

 

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