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बिहार में वज्रपात का कहर: पिता-पुत्री समेत 7 की मौत, आखिर क्यों बन रही है बिजली काल?

बिहार में वज्रपात से तबाही, बेगूसराय-मधुबनी में 7 मौतें। खेत में काम कर रहे लोग चपेट में आए। जानिए कारण और बचाव के उपाय।
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बिहार में मॉनसून की बारिश जहाँ मौसम को सुहाना बना रही है, वहीं वज्रपात ने इसे मौत के मंजर बदल डाला है। बुधवार को झमाझम बारिश के बीच बेगूसराय और मधुबनी में आसमानी बिजली ने सात लोगों की जान ले ली। खेतों में काम कर रहे किसानों से लेकर अपने फसल को बचाने की जद्दोजहद में जुटे परिवारों तक यह आफत हर किसी पर वज्र बनकर टूट पड़ी। बता दें कि बिहार में हर साल वज्रपात से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। तो आखिर क्या वजह है कि यहाँ आसमानी बिजली इतना कहर बरपा रही है? जानिए इस खास रिपोर्ट में!

घटना नंबर 1: बेगूसराय में खेतों में बिछी लाशें

बुधवार की सुबह बेगूसराय के भगवानपुर थाना क्षेत्र के मानोपुर गाँव में एक दिल दहला देने वाली घटना हुई। संजू देवी अपनी तीन बेटियों—अंशु, आंचल और मुस्कान के साथ खेत में गेहूँ काट रही थीं। अचानक तेज आंधी और बारिश शुरू हुई। घर की ओर भागते वक्त वज्रपात ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। अंशु कुमारी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि संजू देवी और उनकी दो बेटियाँ बुरी तरह झुलस गईं। वहीं उसी दिन बलिया थाना क्षेत्र के भगतपुर गाँव में 60 साल के बिराल पासवान और उनकी पत्नी जितनी देवी खेत में भूसा उठा रहे थे। बिजली गिरी और बिराल की जान चली गई, जितनी देवी गंभीर हालत में अस्पताल में जिंदगी की जंग लड़ रही हैं। इन घटनाओं ने पूरे इलाके में कोहराम मचा दिया।

घटना नंबर 2: मधुबनी में पिता-पुत्री की जान पर भारी पड़ी बिजली

मधुबनी में भी वज्रपात ने गहरा कहर ढाया। अंधराठाढ़ी प्रखंड के अलपुरा गाँव में 62 साल के जाकिर हुसैन अपनी 18 साल की बेटी आयशा खातून के साथ खेत में गेहूँ के बोरे को बारिश से बचाने गए थे। तिरपाल ढकते वक्त बिजली गिरी और दोनों की मौके पर ही मौत हो गई।

दूसरी ओर, झंझारपुर के पीपरोलिया गाँव में 45 साल की दुर्गा देवी खेत में फसल देखने गई थीं, जब वज्रपात ने उनकी जिंदगी छीन ली। तीनों परिवारों में मातम पसर गया, और शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए मधुबनी सदर अस्पताल भेजा गया। ये घटनाएँ बताती हैं कि बिहार में खेती का मौसम अब सिर्फ मेहनत का नहीं, बल्कि खतरे का भी पर्याय बन गया है।

क्यों बन रही है बिजली बिहार का काल?

बिहार में वज्रपात से होने वाली मौतें कोई नई बात नहीं। हर मॉनसून में दर्जनों लोग इसकी भेंट चढ़ते हैं। वैज्ञानिकों ने इसके पीछे कई कारण गिनाए हैं, जो प्रकृति और इंसानी मजबूरी का मिला-जुला खेल हैं।

जलवायु परिवर्तन का असर: ग्लोबल वॉर्मिंग से मानसून का पैटर्न बदल रहा है। बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी गहरे बादल बनाती है, जो बिजली पैदा करने का सबसे बड़ा कारण हैं। इन बादलों में ऊर्ध्वाधर विस्तार बढ़ने से वज्रपात की तादाद भी बढ़ रही है।

खुले खेतों में जिंदगी: बिहार की 80% आबादी गाँवों में रहती है और खेती पर निर्भर है। मॉनसून में लोग खासकर दोपहर में खेतों में काम करते हैं। जब वज्रपात का खतरा सबसे ज्यादा होता है। पेड़ों या ऊँची जगहों के नीचे शरण लेना उनकी मजबूरी बन जाती है, जो खतरे को और बढ़ा देता है।

नमी और भूगोल: बिहार की नदियों और मैदानी इलाकों में नमी की भरमार रहती है। यह नमी बिजली के लिए कंडक्टर का काम करती है, जिससे वज्रपात की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

चेतावनी का अभाव: कई बार मौसम विभाग की चेतावनी ग्रामीण इलाकों तक नहीं पहुँच पाती। लोग खेतों में काम करते रहते हैं, और अचानक बिजली उनकी जिंदगी छीन लेती है।

बचाव का रास्ता: क्या करे बिहार?

वज्रपात को रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन इसके कहर को कम जरूर किया जा सकता है।

जागरूकता ही हथियार: आपदा प्रबंधन विभाग का "इंद्रवज्र" ऐप लोगों को पहले से अलर्ट कर सकता है। इसे गाँव-गाँव तक पहुँचाने की जरूरत है। रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया से भी जागरूकता फैलाई जा रही है।

सुरक्षा का मंत्र: बारिश के दौरान खुले खेतों में न रहें। तेज गर्जना या बिजली चमकने पर तुरंत घर या पक्की इमारत में शरण लें। धातु की चीजों और पानी से दूर रहें, क्योंकि ये बिजली को आकर्षित करते हैं।

प्राकृतिक आपदा का दर्जा: वज्रपात को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की माँग लंबे वक्त से चल रही है। इससे प्रभावितों को बेहतर मुआवजा और सहायता मिल सकती है।

कहानी का अंत या नई शुरुआत?

बिहार में वज्रपात से सात मौतें सिर्फ एक दिन की त्रासदी नहीं, बल्कि हर साल की हकीकत हैं। संजू देवी, बिराल पासवान, जाकिर और आयशा जैसे लोग अपनी मेहनत से परिवार चलाते हैं, लेकिन प्रकृति का यह खेल उनकी साँसें छीन लेता है। वैज्ञानिक कारणों से लेकर सरकारी कोशिशों तक—सब कुछ साफ है। अब जरूरत है इसे जमीन पर उतारने की। अगर जागरूकता और तकनीक सही वक्त पर लोगों तक पहुँचे, तो शायद अगले मॉनसून में खेतों में लाशें नहीं, बल्कि उम्मीदें बिछी होंगी। बिहार के लिए यह लड़ाई सिर्फ मौसम से नहीं, बल्कि अपनी तकदीर से भी है।

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