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बिहार में कहर बनकर गिर रही आसमानी बिजली! हो चुकी हैं 61 मौतें; देश में बढ़े तीन गुना मामले.. क्या है वजहें?

बिहार में 48 घंटे में वज्रपात से 61 मौतें, क्या ये जलवायु परिवर्तन की चेतावनी है या नीतिगत असफलता? जानिए बिजली कहर के पीछे की सच्चाई।
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बिहार में पिछले 48 घंटों में आसमानी बिजली ने कोहराम मचा दिया है। बता दें कि 9 और 10 अप्रैल 2025 को हुई इन घटनाओं में 61 लोगों की जान जा चुकी है। नालंदा में सबसे ज्यादा 22 मौतें हुईं, तो पटना, भोजपुर, सिवान और गया जैसे जिलों में भी परिवारों पर कहर टूटा। यह सिर्फ बिहार की कहानी नहीं—पूरा देश वज्रपात की चपेट में आता जा रहा है। आँकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ दशकों में ऐसी मौतें तीन गुना बढ़ गई हैं। 1967 से 2020 तक भारत में 1 लाख से ज्यादा लोग बिजली की चपेट में मारे गए। आखिर क्यों बढ़ रहा है यह खतरा? जलवायु परिवर्तन से लेकर नीति की कमी तक, चलिए इस त्रासदी की जड़ तक जाते हैं।

दो दिन में 61 लोगों को निगल गया वज्रपात

पिछले दो दिनों में बिहार के दर्जनों परिवारों पर आसमान से आफत बरसी। नालंदा में 22 लोगों की मौत ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले को झकझोर दिया। पटना, भोजपुर, सिवान और गया में चार-चार, गोपालगंज और जमुई में तीन-तीन, जबकि मुजफ्फरपुर, जहानाबाद, सारण और अरवल में दो-दो लोग मारे गए। बेगूसराय, दरभंगा, सहरसा, कटिहार, मुंगेर, मधेपुरा, अररिया और भागलपुर में एक-एक शख्स की जान गई। सरकार ने हर मृतक के परिवार को 4 लाख रुपये मुआवजे का ऐलान किया, लेकिन क्या यह राशि उस दर्द को कम कर सकती है? मौसम विभाग ने चेतावनी दी कि 12 अप्रैल तक बारिश और वज्रपात जारी रह सकता है।

देश में बढ़ते ऐसे चौंकाने वाले आँकड़े

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 2020 में 83 मौतें हुई थीं, जो 2021 में 280, 2022 में 329 और 2023 में बढ़कर 275 तक जा पहुंची है। 2025 में चार महीने भी पूरे नहीं हुए और 82 लोग मर चुके हैं। पूरे भारत का हाल और डरावना है। वहीं NCRB के मुताबिक, 1967-2002 तक प्रति राज्य औसतन 38 मौतें होती थीं, जो 2003-2020 में बढ़कर 61 हो गईं। 1986 में यह औसत 28 था, जो 2016 में तीन गुना यानी 81 तक पहुँच गया।

ओडिशा के फकीर मोहन विश्वविद्यालय की स्टडी कहती है कि 1967 से 2020 तक 1,01,309 मौतें हुईं—यानी हर साल करीब 1,876 लोग बिजली की भेंट चढ़ रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बिहार। प्रति 1,000 वर्ग किमी में बिहार में 79 और पश्चिम बंगाल में 76 मौतें सालाना होती हैं।

क्यों बढ़ रहा है वज्रपात का कहर?

1. जलवायु परिवर्तन: वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग से नमी बढ़ रही है, जिससे गरज वाले बादल ज्यादा बन रहे हैं। बिहार में मानसून के दौरान बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी बिजली के लिए कंडक्टर का काम करती है।

2. प्रकृति का बदलता मिजाज: सतह का तापमान बढ़ने से हवा ऊपर उठती है, जिससे गहरे बादल बनते हैं और वज्रपात की संभावना बढ़ती है।

3. खेती और मजदूरी: ग्रामीण इलाकों में लोग खेतों में काम करते वक्त बिजली की चपेट में आते हैं। दोपहर का समय, जब वज्रपात सबसे ज्यादा होता है, इनके लिए सबसे खतरनाक है।

4. जागरूकता की कमी: चेतावनी सिस्टम और सुरक्षित जगहों तक पहुँच न होने से लोग पेड़ों के नीचे शरण लेते हैं, जो जानलेवा साबित होता है।

5. पेड़ों का कटाव: खासकर उत्तर-पूर्व में जंगल कम होने और जल निकायों के दूषित होने से खतरा बढ़ा है।

बढ़ते मामलों की क्या है असल वजह?

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाओं के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन वज्रपात को लेकर तैयारी कमजोर है। देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ 7 के पास इसका एक्शन प्लान है। बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे प्रभावित राज्यों में भी कोई ठोस नीति नहीं। "इंद्रवज्र" ऐप जैसी पहल शुरू हुई, लेकिन ग्रामीणों तक इसकी पहुँच सीमित है। वज्रपात को प्राकृतिक आपदा का दर्जा न मिलने से प्रभावितों को सहायता भी कम मिलती है।

क्या सुधरेंगे हाल या होंगे और बेहाल?

यह साफ है कि जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियाँ इस खतरे को बढ़ा रही हैं। अगर नीतियाँ नहीं बनीं, तो आने वाले सालों में हालात और बिगड़ सकते हैं। जरूरत है:

  • वज्रपात को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की।
  • हर राज्य में एक्शन प्लान और चेतावनी सिस्टम को मजबूत करने की।
  • ग्रामीण इलाकों में जागरूकता फैलाने और सुरक्षित शरणस्थलों की।

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