Shaheed Diwas: भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी हीरो हैं भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु!
भारत की आजादी के लिए हजारों सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। उन्हीं में से तीन सबसे बड़े नाम हैं— भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु। अंग्रेजों से टकराने वाले इन क्रांतिकारियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई। तारीख तय थी 24 मार्च, लेकिन फिरंगियों को इन तीनों से इतना डर था कि एक दिन पहले ही उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया। इस बलिदान को भारत में हर कोई याद करता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान में भी भगत सिंह को लोग हीरो मानते हैं?
पाकिस्तान में जन्मे थे भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई लाहौर के डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हुई और फिर उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर में एडमिशन लिया। यहीं से उनके क्रांतिकारी सफर की शुरुआत हुई।
1928 में अंग्रेज पुलिस अफसर जेम्स स्कॉट को मारने की योजना बनी, लेकिन गलती से गोली सांडर्स को लग गई। इसके बाद भगत सिंह पहचान छुपाकर लाहौर में ही अलग-अलग जगह छिपते रहे। लोहारी मंडी, डीएवी कॉलेज और दयाल सिंह कॉलेज हॉस्टल उनके ठिकाने रहे।
जब जिन्ना ने संसद में भगत सिंह का मुद्दा उठाया
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जब ब्रिटिश संसद (सेंट्रल असेंबली) में बम फेंका तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जेल में अन्य क्रांतिकारी भी उनके साथ थे। जब अंग्रेजों ने मुकदमे में पक्षपात किया तो मोहम्मद अली जिन्ना तक भड़क गए। सितंबर 1929 में उन्होंने संसद में कहा कि "जो आदमी भूख हड़ताल कर सकता है, उसे आम अपराधी नहीं कहा जा सकता।" हालांकि, अंग्रेज सरकार ने कोर्ट में बिना ठीक से सुनवाई किए ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुना दी।
हुसैनीवाला: भारत का हिस्सा कैसे बना?
23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को लाहौर के शादमान चौक में फांसी दे दी गई। अंग्रेज उनके शव रातों-रात हुसैनीवाला (अब पंजाब, भारत) ले गए और वहीं अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन भारत-पाक विभाजन के बाद हुसैनीवाला पाकिस्तान के पास चला गया। 1961 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस स्थान को भारत का हिस्सा बनाने के लिए 12 गांव पाकिस्तान को देकर इसे वापस भारत में शामिल किया। आज यहां राष्ट्रीय शहीद स्मारक है।
पाकिस्तान के लोग भगत सिंह को हीरो क्यों मानते हैं?
लाहौर के शादमान चौक पर हर साल 23 मार्च को लोग इकट्ठा होकर भगत सिंह को श्रद्धांजलि देते हैं। 2012 में इस चौक का नाम 'भगत सिंह चौक' रखने की मांग उठी, लेकिन कट्टरपंथियों के विरोध की वजह से यह संभव नहीं हो सका। हालांकि, लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई और 5 सितंबर 2018 को जज शाहिद जमील खान ने फैसला सुनाते हुए चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने को कहा। इससे पहले एक निचली अदालत भी यही फैसला दे चुकी थी।
भगत सिंह को निर्दोष घोषित करने की मांग
पाकिस्तान में 'भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन' ने लाहौर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर भगत सिंह को निर्दोष घोषित करने की मांग की। उनका तर्क था कि उन्होंने अविभाजित भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया था, इसलिए उन्हें पाकिस्तान में भी सम्मान मिलना चाहिए। हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने अब तक इस फैसले को लागू नहीं किया।
पाकिस्तानी लोगों के दिलों में भगत सिंह
पाकिस्तानी आतंकवादी और कट्टरपंथी संगठन भले ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का विरोध करते हैं, लेकिन वहां के आम लोगों का बड़ा तबका इन तीनों को अपना हीरो मानता है। आम लोग इन तीनों को भारत और पाकिस्तान की साझी विरासत के रूप में देखते हैं।