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अलीगढ़: सास-दमाद की लव स्टोरी से चर्चा में आए शहर का नाम कैसे पड़ा? जानें क्या है मुगलों से कनेक्शन

सास-दामाद की लव स्टोरी से चर्चा में आए अलीगढ़ का इतिहास—कैसे कोल से रामगढ़, फिर मुगलों- मराठों से अलीगढ़ बना, जानिए असली कहानी।
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अगर आप जरा सा भी खबरों में इंटरेस्ट रखते होंगे तो इन दिनों अलीगढ़ का तो नाम सुना ही होगा। अलीगढ़ वर्तमान में एक ऐसी लव स्टोरी के लिए सुर्खियों में है जिसने रिश्तों की परिभाषा ही बदल दिया। जहां सास सपना देवी, अपनी बेटी की शादी से पहले, खुद उसके होने वाले दामाद राहुल के साथ भाग गईं। बाद में लौटीं, तो परिवार को छोड़कर उसी दामाद के पास रहने चली गईं! बता दें कि ये मामला जितना चौंकाने वाला है, उतना ही दिलचस्प अलीगढ़ का इतिहास भी है। चलिए, जानते हैं — सास-दमाद की इस लव स्टोरी से चर्चा में आए इस शहर को आखिर अलीगढ़ नाम कैसे मिला, और कैसे राजपूतों, सुल्तानों, मुगलों और मराठों के हाथों इसका चेहरा-मिज़ाज बदला।

जैन तीर्थ से लेकर कोल तक कैसा रहा अलीगढ़ का सफर?

अलीगढ़ का इतिहास 12वीं शताब्दी के अंत से दर्ज मिलता है, लेकिन पुरातात्विक साक्ष्य इससे भी पहले के हैं। जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां और मंदिरों के अवशेष बताते हैं कि यहां कभी जैन धर्म का गढ़ रहा होगा। बौद्ध और हिंदू मंदिरों के भी प्रमाण मिले हैं। उस दौर में यह इलाका 'कोल' या 'कोइल' के नाम से जाना जाता था। कुछ इतिहासकार इसे एक जनजाति का नाम बताते हैं, तो कुछ मानते हैं कि यह नाम किसी राक्षस कोले से जुड़ा है, जिसे पौराणिक कथाओं के अनुसार बलराम ने मारा था।

कुतुबुद्दीन ने नियुक्त किया पहला मुस्लिम गवर्नर

1194 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कोल पर चढ़ाई की और हिसामुद्दीन उलबक को यहां का पहला मुस्लिम गवर्नर बना दिया। फिर यह इलाका दिल्ली सल्तनत के लिए अहम बनता गया। 1252 में बलबन ने यहां एक मीनार बनवाई थी, जिसका शिलालेख अब भी मौजूद है। लेकिन अंग्रेजों ने बाद में उसे ध्वस्त कर दिया। वहीं 14वीं सदी में इब्न बतूता यहां आया, लेकिन उसका कारवां 'जलाली' नाम की जगह पर डकैतों ने लूट लिया। कुछ साथी मारे गए। यही जलाली आज अलीगढ़ के पास एक गांव है।

जाटों ने दिया था रामगढ़ नाम

18वीं सदी में फर्रुखसियार के गवर्नर साबित खान ने यहां 'साबितगढ़' किला बनवाया। लेकिन फिर आए जाट राजा सूरजमल 1753 में उन्होंने जयपुर के जयसिंह के साथ मिलकर इस पर कब्जा किया और इस जिले का नाम रख दिया रामगढ़।

रामगढ़ से अलीगढ़ कैसे हुआ?

जाटों के बाद इस सूबे में मराठों का आगमन हुआ। उनके गवर्नर थे नजफ अली खान। उन्हीं के नाम पर इस किले का नाम अलीगढ़ रखा गया। मराठों ने इसका पुनर्निर्माण भी कराया लेकिन इस बार पत्थर नहीं, मिट्टी से!1803 में अंग्रेजों ने इस किले पर कब्जा कर लिया।

फिर धीरे-धीरे 'अलीगढ़' सिर्फ किले का नाम नहीं, पूरे शहर का नाम बन गया। पहले यह नाम केवल सिविल लाइंस इलाके के लिए इस्तेमाल होता था, लेकिन 19वीं सदी के मध्य तक आधिकारिक तौर पर इसे पूरे जिले का नाम बना दिया गया। 'कोल' नाम अब अलीगढ़ शहर की एक तहसील तक ही सीमित है।

तो अगली बार जब अलीगढ़ का नाम सुनें...

तो याद रखिए, यह सिर्फ ताले बनाने वाला शहर नहीं है बल्कि इसकी दीवारों में जैन मूर्तियों की खामोशी, सुल्तानों की रणनीति, मुगलों की शिकारगाह, मराठों की सत्ता और अंग्रेजों की मुहर सब छिपे हुए हैं। और अब इस सबमें जुड़ गई है एक अनोखी सास-दमाद की प्रेम कहानी, जिसने एक बार फिर इस ऐतिहासिक शहर को हेडलाइंस में ला खड़ा किया है।

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