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अजमेर शरीफ के नीचे शिव मंदिर? जानिए 'हर बिलास सारदा' की किताब में क्या लिखा है, जिसकी वजह से हो रहा है विवाद!

जानिए अजमेर शरीफ दरगाह के बारे में हर बिलास सारदा की किताब से जुड़े विवाद और उसकी ऐतिहासिक सच्चाई। क्या यह दरगाह वास्तव में हिंदू मंदिर के ऊपर बनाई गई थी?
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अजमेर शरीफ दरगाह, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह (History of Ajmer Sharif Dargah) के रूप में देश-विदेश में प्रसिद्ध है, इन दिनों एक नए विवाद में घिरी हुई है। यह विवाद उस किताब को लेकर उठ रहा है, जो 1910 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में ब्रिटिशकाल के एक प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक हर बिलास सारदा ने दावा किया है कि अजमेर शरीफ दरगाह जिस स्थल पर स्थित है, वह पहले एक हिंदू मंदिर के ऊपर बनी हुई है। खास बात यह है कि सारदा ने अपनी किताब में यह भी उल्लेख किया है कि दरगाह के नीचे पुराने हिंदू मंदिरों के तहखाने भी हो सकते हैं। इस दावे ने अब अदालत में नया मोड़ ले लिया है, और एक याचिका दायर कर दरगाह का सर्वेक्षण करने की मांग की गई है।

अजमेर शरीफ दरगाह

 हर बिलास सारदा की किताब 'अजमेर- ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' में क्या दावा किया गया है? 

हर बिलास सारदा ( Har Bilas Sarda Ajmer Sharif Book) की किताब "अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक" 1910 में प्रकाशित हुई थी, जो अजमेर के ऐतिहासिक स्थल और उनके परिवर्तित रूपों पर आधारित है। इस किताब में सारदा ने अजमेर शरीफ दरगाह के स्थल के बारे में कुछ ऐसे दावे किए हैं, जो आज तक किसी ने नहीं किए थे। उन्होंने लिखा है कि जिस स्थान पर अजमेर शरीफ दरगाह है, वह पहले हिंदू मंदिरों का स्थल हुआ करता था। उनका कहना है कि यहां एक महादेव का प्राचीन मंदिर था, और इस मंदिर की मूर्ति पर चंदन चढ़ाने के लिए एक ब्राह्मण परिवार नियुक्त किया गया था। इस परिवार का काम था रोजाना मंदिर में घंटा बजाना और महादेव की पूजा करना।

महादेव मंदिर और चंदन चढ़ाने वाले परिवार का जिक्र

सारदा के अनुसार, अजमेर शरीफ दरगाह के जिस स्थान पर आज दरगाह की संरचना है, वहां पहले महादेव को समर्पित एक मंदिर था। यह परिवार उस समय का था, जब ब्रिटिशकाल में भारत के धार्मिक स्थलों का रूप धीरे-धीरे बदल रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि इस परिवार का कार्य चंदन चढ़ाने से जुड़ा हुआ था, जो आज भी दरगाह में घंटा बजाने वाले परिवार द्वारा निभाया जाता है। सारदा ने यह भी लिखा कि पुराने दस्तावेजों और परंपराओं के अनुसार, इस स्थान पर एक भूमिगत रास्ता था जो दरगाह के तहखाने तक जाता था।

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इस भूमिगत मार्ग का संबंध पुरानी परंपराओं से था, जिसमें महादेव की मूर्ति को पूजा जाने के बाद चंदन चढ़ाया जाता था। यह परिवार आज भी अपनी परंपराओं का पालन कर रहा है, लेकिन अब यह कार्य दरगाह की घड़ियाली (घंटी बजाने वाले) के रूप में दिखता है। सारदा का यह दावा यह इंगीत करता है कि अजमेर शरीफ दरगाह का स्थान पहले एक हिंदू पूजा स्थल था, और इसे बाद में मुस्लिम शासकों द्वारा एक दरगाह में बदला गया।

अजमेर शरीफ दरगाह के तहखाने: क्या सच में हिंदू मंदिरों के अवशेष हैं?

सारदा ने अपनी किताब में यह भी कहा है कि दरगाह के नीचे कई तहखाने हो सकते हैं, जो प्राचीन हिंदू मंदिरों के अवशेष हैं। उन्होंने बलांद दरवाजे और दरगाह के आंगन के नीचे कुछ स्थानों का उल्लेख किया है, जहां इस तरह के अवशेष मौजूद हो सकते हैं। उनका यह दावा है कि पूरी दरगाह, जैसा कि प्रारंभिक मुस्लिम शासकों के समय में हुआ था, पुराने हिंदू मंदिरों के स्थानों पर आंशिक रूप से परिवर्तित करके बनाई गई प्रतीत होती है।

उन्होंने यह भी कहा कि कुछ तहखाने और कमरे अब भी मौजूद हैं, जो यह साबित करते हैं कि दरगाह का क्षेत्र कभी एक हिंदू धार्मिक स्थल हुआ करता था। सारदा का मानना था कि यह स्थान और आसपास के क्षेत्र पुराने हिंदू मंदिरों के अवशेषों से भरपूर थे, जिन्हें बाद में मुस्लिम शासकों ने अपनी धार्मिक जरूरतों के लिए ढांचा बदलने के रूप में प्रयोग किया।

अढ़ाई दिन का झोपड़ा: क्या यह हिंदू मंदिर का हिस्सा था?

सारदा ने अपनी किताब में अढ़ाई दिन का झोपड़ा (जिसे आज मस्जिद के रूप में जाना जाता है) का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है कि इस मस्जिद को एक प्राचीन हिंदू सरस्वती मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। इस मंदिर को बनाने के बारे में सारदा ने लिखा है कि यह मंदिर एक उच्च शिक्षण केंद्र था और इसे चौहान सम्राट वीसलदेव ने 1153 ई. में बनवाया था।

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सारदा ने अढ़ाई दिन के झोपड़े की संरचना की तुलना मध्य प्रदेश के धार स्थित राजा भोज की पाठशाला से की है। उनका कहना था कि दोनों की स्थापत्य शैली एक जैसी थी, जिसमें उच्च छतों, स्तंभों और दीवारों पर सुंदर नक्काशी का काम किया गया था। इस पाठशाला की तुलना में अढ़ाई दिन का झोपड़ा भी एक धार्मिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में कार्य करता था, जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया।

गौरी के हमले के बाद हिंदू मंदिरों का नाश और मस्जिदों का निर्माण

सारदा ने यह भी लिखा कि 1192 में शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमण के बाद, अजमेर के हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया और इन स्थानों पर मस्जिदों का निर्माण किया गया। अढ़ाई दिन का झोपड़ा भी उसी प्रक्रिया का हिस्सा था, जहां हिंदू मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी गई थी। यह तथ्य बताता है कि आक्रमणों के बाद धार्मिक स्थलें बदलते रहे, और पुराने हिंदू स्थलों का रूप बदलकर नए इस्लामी धार्मिक स्थल बन गए।

अदालत में याचिका और सर्वेक्षण की मांग

सारदा की किताब में दर्ज किए गए इन ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर एक याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि अजमेर शरीफ दरगाह का सर्वेक्षण किया जाए ताकि इस ऐतिहासिक स्थल के वास्तविक इतिहास का पता चल सके। यह याचिका केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अजमेर दरगाह समिति के खिलाफ दायर की गई है। अदालत ने इस मामले में नोटिस जारी किया है और अब इस मामले पर कानूनी कार्यवाही चल रही है।

 क्या सच में हिंदू मंदिर के ऊपर बनी है दरगाह?

इस किताब और उसके दावों ने अजमेर शरीफ दरगाह के इतिहास पर एक नई बहस खड़ी कर दी है। क्या यह सच है कि दरगाह का स्थान पहले एक हिंदू मंदिर था, जिसे मुस्लिम शासकों ने परिवर्तित किया? क्या यह संभव है कि दरगाह के नीचे अभी भी पुराने हिंदू मंदिरों के अवशेष मौजूद हों? इन सवालों का जवाब आने वाले दिनों में मिल सकता है, लेकिन यह विवाद निश्चित रूप से भारतीय इतिहास और संस्कृति के दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है।

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