84th Session of Congress: सैम पित्रोदा ने कांग्रेस के गुजरात अधिवेशन को दिखा दिया आईना
84th Session of Congress: कांग्रेस का 84वां अधिवेशन आज 8 अप्रैल को अहमदाबाद में शुरू हो गया। यह अधिवेशन कल यानी 9 अप्रैल तक चलेगा। गुजरात में कांग्रेस 1995 से सत्ता से बाहर है। शायद इसी के चलते कांग्रेस ने यह अधिवेशन गुजरात में रखा कि कुछ तो यहां खास हो। पिछली बार गुजरात में एआईसीसी सत्र छह दशक पहले 1961 में भावनगर में आयोजित हुआ था। कार्यसमिति की मीटिंग स्टार्ट होने से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी गुजरात जीतने के जज्बे को सबके सामने रख चुके हैं।
देशभर से जुट रहे नेता
गुजरात में देश भर से नेता अहमदाबाद में एकजुट हो चुके हैं। पार्टी सियासत की दिशा को लेकर मंथन कर रही है। आशा है कि यह बैठक पार्टी में छाई निराशा और उदासी को दूर करने में मददगार साबित होगी। हालांकि, सवाल यह भी उठता है कि ऐसी बैठकों का नतीजा क्या होता है? बड़े-बडे फैसले तो लिए जाते हैं लेकिन उन्हें कभी पूरा नहीं किया जाता।
ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने एक न्यूज एजेंसी को इंटरव्यू में कहा कि मुझे गर्व है कि पार्टी गुजरात में अधिवेशन कर रही है। मेरा मानना है कि कांग्रेस के अधिवेशन में आइडियोलॉजी पर अच्छी चर्चा होती है, लेकिन एग्जिक्यूशन नहीं हो पाता। इससे पहले रायपुर और जयपुर में सम्मेलन आयोजित किए गए थे। पार्टी को जिम्मेदारों से पूछना चाहिए कि उस समय जो सुझाव आए उनका कितना एग्जिक्यूशन हो पाया?'
उदयपुर की कुछ प्रस्तावनाएं महत्वाकांक्षी थीं
नए लोगों को मौका देने के लिए पदों की अधिकतम अवधि पांच साल तय करना, एक व्यक्ति, एक पद और एक परिवार, एक टिकट जैसे सिद्धांत लागू करना, सीडब्ल्यूसी से लेकर ब्लॉक स्तर की सभी समितियों में 50% पदों को 50 वर्ष से कम आयु के लोगों के लिए आरक्षित करना, देखने में यह कितनी आदर्शवादी बाते हैं। अगर ऐसा हो जाए तो वास्तव में पार्टी में गुणात्मक सुधार हो सकता है। लेकिन, इनमें से कुछ भी लागू नहीं हुआ। और यह एक वजह है कि कांग्रेस को हर बार मुंह की खानी पड़ती है।
आसान नहीं सभी के लिए नियमों मानना
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 2025 को पार्टी के संगठनात्मक सशक्तिकरण का साल घोषित किया था। फिर भी इस मामले में अभी तक कोई बात नहीं हो पाई। गुजरात में 2012, 2017 के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों में जितने वोट मिले, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के लिए उम्मीदें अभी भी बहुत हैं। लेकिन, इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती संगठन की है। राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि कांग्रेस में बहुत से लोग हैं जो बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन, जिस राज्य में 25 साल से कांग्रेस सत्ता में नहीं है, उस राज्य में ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है।
राहुल की बात को ऐसे समझें कि भले ही गुजरात में कांग्रेस कई दशकों से गायब है, लेकिन कांग्रेसियों का कारोबार दिन दूनी रात चौगनी होते जा रहा है। अगर 2017 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो पार्टी को करीब 42 फीसदी वोट मिले थे। साथ ही लोकसभा चुनावों में करीब 31 फीसदी वोट मिले। मतलब कांग्रेस अभी भी दौड़ लगाए तो रेस जीत सकती है। इसके लिए ईमानदार संगठन का होना जरूरी है। कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने बीजेपी का साथ चुन लिया है।
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