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‘ब्लैक मंडे’ के बाद क्या आएगा ‘ब्लैक ट्यूजडे’, जब एक झटके में बंद हो गए थे 11 हजार बैंक

वर्तमान की आर्थिक स्थिति और 1929 के संकट में कुछ समानताएं हैं। याद रखें, जैसे उस समय भी दुनिया के सबसे बड़े अर्थशास्त्रियों ने अनुमान नहीं लगाया था कि एक दिन ऐसा आएगा, वैसे ही आज भी कोई यह नहीं कह सकता कि कब दुनिया को अगला बड़ा संकट झेलना पड़ेगा।
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Black Tuesday in World Economy: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का 2 अप्रैल का ऐलान वैश्विक बाजारों के लिए एक नए संकट की शुरुआत साबित हुआ है। ट्रंप ने 180 से अधिक देशों पर रियायती "रेसिप्रोकल टैरिफ" (Deducted Reciprocal Tariff) लागू कर दिए, जिससे अमेरिका ही नहीं, एशिया से लेकर यूरोप तक के शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली है। इस फैसले ने पूरी दुनिया के निवेशकों को चिंता में डाल दिया है, और कहा जा रहा है कि अमेरिका की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था अब मंदी की ओर बढ़ रही है। इस माहौल में कई लोग 1929 की महामंदी के डर से घबराए हुए हैं।

आज का सोमवार बना 'ब्लैक मंडे'

आज सोमवार को दुनिया भर के शेयर मार्केट खुलते ही ऐसा हाहाकार मचा कि अकेले भारत में ही 19 लाख करोड़ रुपए एक झटके में डूब गए। टैरिफ वार की इस आंधी में टाटा और रिलायंस जैसे भरोसेमंद शेयर भी नहीं टिक सके और धड़ाम जा गिरे जिसकी वजह से लोगों ने अप्रैल के पहले सोमवार की तुलना ब्लैक मंडे से कर दी। अब निवेशकों को डर लग रहा है कि कही मंगलवार (Black Tuesday) को इससे भी बुरा हाल न हो और वो इतिहास का दूसरा ब्लैक ट्यूजडे साबित न हो। आज से करीब 96 साल पहले ऐसे ही एक मंगलवार के दिन मंदी का वो दौर शुरू हुआ कि एक झटके में 11 हजार बैंक बंद हो गए थे। आज हम आपको 1929 के उस काले मंगलवार की कहानी बताएंगे, जब एक दिन में दुनिया की सबसे बड़ी मंदी ने जन्म लिया था। उस समय जो हुआ था, उसकी आहट आज भी हमारे आर्थिक परिदृश्य में महसूस की जा सकती है।

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'अमेरिकी ड्रीम' का सपना पूरा होने से पहले ही छा गई थी महामंदी की काली घटाएं

आज अगर किसी से भी पूछा जाए कि दुनिया में सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने के लिए कहां जाया जा सकता है, तो शायद अधिकांश लोग तुरंत ‘अमेरिका’ का नाम लेंगे। 1928 के समय अमेरिका में लोग जो जीवन जी रहे थे, वह किसी सपने जैसा था। तत्कालीन राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर ने कहा था, “हम गरीबी पर विजय प्राप्त करने के बहुत करीब हैं।” उस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत थी। बेरोजगारी दर केवल 4 फीसदी थी, मतलब हर 100 में से 96 लोग काम कर रहे थे। उस वक्त का अमेरिका एक स्वर्णिम युग में था। जैज म्यूजिक का दौर था, रेडियो का बोलबाला था, बिजली और टेलीफोन लाइनें तेजी से बिछाई जा रही थीं, और लोग आराम से जीवन जी रहे थे। कारें सस्ती हो गईं और मिडिल क्लास भी इनका मालिक बन सकता था। शेयर बाजार में निवेश करने की ललक में लोग बैंकों से लोन ले रहे थे और शेयरों में पैसा लगा रहे थे। लेकिन यह चकाचौंध लंबे समय तक नहीं रह सकी और देखते ही देखते सब तबाह हो गया।

बिल्कुल चुपचाप दी महामंदी ने अपनी दस्तक

फिर एक साल बाद, 1929 में वित्तीय संकट का आगाज हुआ। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की कीमतें गिरने लगीं, बैंकों ने खाता धारकों को पैसे नहीं दिए, और व्यापारिक गतिविधियाँ ठप हो गईं। करोड़पति बर्बाद हो गए और आम लोग भी अपनी जीवनभर की जमा पूंजी खो बैठे। कुछ ही महीनों में हर 4 में से 1 अमेरिकी बेरोजगार हो गया। यह संकट केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर असर डाला। यह महामंदी या ग्रेट डिप्रेशन का दौर था, जिसने दुनिया भर को प्रभावित किया।

US president Donald trump signature

फिर आया Black Tuesday यानि तबाही का दिन

अमरीका में 29 अक्टूबर 1929 को वैश्विक अर्थव्यवस्था के इतिहास का ‘ब्लैक ट्यूजडे’ माना जाता है। यह वह दिन था जब अमेरिका के शेयर बाजार ने इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट का सामना किया, और इसके बाद पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था संकट में डूब गई। शुरुआत एक हफ्ते पहले यानी 24 अक्टूबर को हुई थी। उस दिन शेयरों की कीमतें गिरने लगीं, लेकिन कुछ व्यापारियों ने मौके पर काबू पाया और बाजार को संभालने की कोशिश की। कीमतें कुछ समय के लिए ऊपर आईं, लेकिन यह शांति तूफान से पहले की थी। 28 अक्टूबर को ब्लैक मंडे ने फिर से शेयरों की गिरावट शुरू की, और 29 अक्टूबर को यह गिरावट एक भयंकर दुर्घटना में बदल गई। रातोंरात 11 हजार बैंक बंद हो गए और पूरा देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया था।

एक बार फिर से दोहराया जा सकता है इतिहास

आज के समय में, जब ट्रंप के टैरिफ की घोषणा के बाद वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है, तो क्या हम दुनिया के दूसरे 'Black Tuesday' की आहट सुन सकते हैं? क्या इतिहास अपने आपको दोहराएगा? इन सवालों का जवाब तो भविष्य ही देगा, लेकिन यह सच है कि वर्तमान की आर्थिक स्थिति और 1929 के संकट में कुछ समानताएं हैं। याद रखें, जैसे उस समय भी दुनिया के सबसे बड़े अर्थशास्त्रियों ने अनुमान नहीं लगाया था कि एक दिन ऐसा आएगा, वैसे ही आज भी कोई यह नहीं कह सकता कि कब दुनिया को अगला बड़ा संकट झेलना पड़ेगा।

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