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भारत-पाक तनाव के चलते हिंदू मां से अलग हुआ मासूम बेटा, पढ़ें पूरी कहानी

भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में बढ़े तनाव ने इंसानियत को फिर झकझोर दिया है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने एक अहम फैसला लिया, जिसके तहत देश में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को...
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भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में बढ़े तनाव ने इंसानियत को फिर झकझोर दिया है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने एक अहम फैसला लिया, जिसके तहत देश में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल तक भारत छोड़ने का आदेश दे दिया गया। लेकिन इस फैसले ने कई मासूमों की जिंदगी में भूचाल ला दिया है – खासकर एक मां के लिए, जिसे अब अपने छोटे से बेटे से दोबारा बिछड़ने का डर सता रहा है।

दो साल बाद मिली थी गोद, अब फिर बिछड़ने का डर

राजस्थान के जैसलमेर में रहने वाली राधा भील, जो मूलतः पाकिस्तान की नागरिक हैं, अपने 2 साल के बेटे घनश्याम को करीब दो साल के इंतजार के बाद ही गले लगा पाई थीं। पर अब, हालात ऐसे बन चुके हैं कि उन्हें एक बार फिर अपने कलेजे के टुकड़े से दूर होना पड़ सकता है।

यह है राधा भील की पूरी कहानी

राधा 2023 में अपने पति राजू राम और दो बेटियों के साथ अल्पकालिक वीजा पर भारत आई थीं, लेकिन उनके नवजात बेटे को भारत आने की अनुमति नहीं मिली थी। मजबूरन घनश्याम को पाकिस्तान में ही छोड़ना पड़ा। दो साल की जद्दोजहद और इंतजार के बाद जब आखिरकार 6 अप्रैल 2025 को बच्चा भारत पहुंचा, तो मां की ममता को सुकून मिला। लेकिन खुशी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई।

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वीजा का संकट और इंसानियत की हार

भारत सरकार के आदेश के मुताबिक सभी पाकिस्तानी नागरिकों को तय समयसीमा यानी 27 अप्रैल तक भारत छोड़ना होगा। अब राधा के सामने मुश्किल यह है कि वह खुद वापस जाएं या अपने नन्हे बेटे को फिर से अकेला छोड़ दें। राधा की तरह ही जैसलमेर के सैकड़ों परिवार पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न झेलकर भारत में पनाह लेने आए हैं। इन लोगों के पास अल्पकालिक वीजा है, जो अब उनके लिए संकट बन गया है।

‘अगर मरना ही है, तो यहीं मरना पसंद करेंगे’

शरणार्थी दिलीप सिंह सोधा, जो पाकिस्तान से जान बचाकर भारत आए थे, भावुक होकर कहते हैं, “अगर हमें मरना ही है, तो यहीं मरना बेहतर है। कम से कम हमारी अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित हो पाएंगी।” भारत सरकार के इस फैसले के बाद अब पूरा ध्यान इस पर है कि क्या प्रशासन राधा जैसे मामलों में थोड़ी मानवीयता दिखाएगा। गृह मंत्रालय से यह संकेत जरूर मिले हैं कि दीर्घकालिक वीजा धारकों को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन अल्पकालिक वीजा वाले परिवारों के लिए स्थिति अब भी संकटपूर्ण है।

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इंसानियत की उम्मीद बाकी है

राधा की आंखों में आंसू हैं लेकिन दिल में उम्मीद की किरण भी। वो चाहती हैं कि सरकार उनके जैसे मामलों में संवेदनशील रवैया अपनाए और मां-बेटे के रिश्ते को इस तरह टूटने न दे। यह अकेले राधा या उनके परिवार की कहानी नहीं है बल्कि उन जैसे सैकड़ों हिंदू और गैर-मुस्लिम परिवारों की कहानी है जो पाकिस्तान में मुस्लिमों के अत्याचारों से तंग होकर किसी भी कीमत पर भारत आना चाहते हैं।

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