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संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी, फिर से आ सकता है तानाशाहों का दौर, जानें क्या है मामला

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया में तानाशाही का दौर फिर से आ सकता है। जानिए क्यों बढ़ रहा है मानवाधिकारों का हनन और क्या है समाधान।
04:30 AM Feb 26, 2025 IST | Girijansh Gopalan

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में एक गंभीर चेतावनी जारी की है कि दुनिया में मानवाधिकारों का हनन बढ़ रहा है और इसके कारण तानाशाही की वापसी संभव हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क और महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस स्थिति को ‘बहुत खतरनाक’ बताया है। उनका कहना है कि दुनिया में अधिनायकवाद (Authoritarianism) का प्रभाव बढ़ रहा है और मानवाधिकारों पर लगातार प्रहार किया जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के वार्षिक सत्र के उद्घाटन संबोधन में वोल्कर टर्क ने वैश्विक व्यवस्था में आ रहे परिवर्तनों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह एक ‘भूचाल’ जैसा परिवर्तन है, जिसमें मानवाधिकारों की नींव कमजोर होती जा रही है। टर्क ने कहा कि वैश्विक स्तर पर अधिनायकवादी नेता और ताकतवर लोग अपने हितों के लिए मानवाधिकारों को कमजोर कर रहे हैं।

तानाशाहों का बढ़ता दबदबा

वोल्कर टर्क ने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि आज दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का एक-तिहाई हिस्सा तानाशाहों के नियंत्रण में है, जो 30 साल पहले की तुलना में दोगुना है। यह आंकड़ा बताता है कि न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी तानाशाही विचारधारा मजबूत होती जा रही है। वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के मुताबिक, साल 2020 तक दुनिया में 52 देश ऐसे थे, जहां तानाशाही या सत्तावादी शासन का दबदबा था। इनमें लैटिन अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के 3 देश, एशिया और मध्य पूर्व के 27 देश, और अफ्रीका के 22 देश शामिल थे। यानी, दुनिया के कई हिस्सों में अब भी सत्ता जनता की नहीं, बल्कि एक ताकतवर शासक के हाथों में केंद्रित है।

युद्ध, संघर्ष और मानवाधिकारों का हनन

वर्तमान में दुनिया कई युद्धों और संघर्षों से गुजर रही है, जिनमें रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में अस्थिरता प्रमुख हैं। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि युद्ध और संघर्ष में शामिल सरकारें अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवता की परवाह नहीं कर रही हैं। युद्धग्रस्त देशों में नागरिकों को भोजन, पानी और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित किया जा रहा है।

डिजिटल तकनीक और मानवाधिकारों पर संकट

संयुक्त राष्ट्र ने डिजिटल टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को भी एक बड़ा खतरा बताया है। टर्क ने कहा कि आज सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल निगरानी, ऑनलाइन नफरत, गलत सूचनाओं, उत्पीड़न और भेदभाव को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का बंटवारा समाज में अलगाव को जन्म दे सकता है, जिससे सामाजिक तानाबाना कमजोर हो सकता है।

जलवायु संकट और बढ़ती असमानता

संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन को भी एक ‘मानवाधिकार संकट’ बताया। जलवायु परिवर्तन के कारण असमानताएं और अन्याय बढ़ रहे हैं, जिससे समाज में तनाव और असंतोष फैल रहा है। टर्क ने अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि दुनिया के 1% सबसे अमीर लोगों के पास शेष 99% आबादी से अधिक संपत्ति है।

क्या है समाधान?

संयुक्त राष्ट्र ने इस संकट से निपटने के लिए कई सुझाव दिए हैं। इनमें मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत कानूनी ढांचा बनाना, युद्ध और संघर्ष को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना, और डिजिटल तकनीक के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियम बनाना शामिल है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयासों को तेज करने की जरूरत है।

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