ट्रंप को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का बड़ा झटका! सिटिजनशिप वाले फैसले पर लगाया ब्रेक, जानिए क्या है पूरा मामला?
US Supreme Court on Citizenship: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। उनके उस आदेश पर फिलहाल रोक लग गई, जिसमें अमेरिका में जन्मे बच्चों की नागरिकता (बर्थराइट सिटिजनशिप) छीनने की बात थी। ट्रंप चाहते थे कि गैर-कानूनी या अस्थायी वीजा वाले माता-पिता के बच्चों को नागरिकता न मिले, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ब्रेक लगा दिया। कोर्ट अब 15 मई 2025 को इस मामले की सुनवाई करेगा। सवाल यह है कि क्या निचली अदालतें पूरे देश में ट्रंप की नीतियों को रोक सकती हैं? यह मामला न सिर्फ ट्रंप की इमिग्रेशन पॉलिसी, बल्कि अमेरिका के संविधान के 14वें संशोधन पर भी सवाल उठा रहा है। आइए, इस खबर को सरल भाषा में समझें, जैसे दोस्तों के साथ चाय की चुस्की लेते हुए!
बर्थराइट सिटिजनशिप पर क्यों मचा बवाल?
दरअसल 20 जनवरी 2025 को अपने दूसरे कार्यकाल के पहले ही दिन, ट्रंप ने एक बड़ा आदेश जारी किया। इसमें कहा गया कि अमेरिका में जन्मे उन बच्चों को नागरिकता नहीं मिलेगी, जिनके माता-पिता गैर-कानूनी ढंग से या अस्थायी वीजा (जैसे स्टूडेंट या टूरिस्ट वीजा) पर देश में हैं। ट्रंप का दावा था कि संविधान का 14वां संशोधन ऐसे बच्चों को नागरिकता का हक नहीं देता। लेकिन यह आदेश संविधान और सुप्रीम कोर्ट के 127 साल पुराने फैसले (1898 का वॉन्ग किम आर्क केस) से टकराता है, जिसमें साफ कहा गया कि अमेरिका में जन्मा हर बच्चा नागरिक है, चाहे उसके माता-पिता का स्टेटस कुछ भी हो।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक?
बता दें कि अमेरिका की तीन निचली अदालतों (वॉशिंगटन, मैसाचुसेट्स, और मैरीलैंड) ने ट्रंप के आदेश को "असंवैधानिक" बताकर पूरे देश में लागू होने से रोक दिया है। जजों का साफ़ कहना था कि 14वां संशोधन साफ तौर पर जन्म से नागरिकता का हक देता है, और ट्रंप का आदेश इसे तोड़ता है। वॉशिंगटन के जज जॉन कफेनॉर ने तो इसे "बिल्कुल असंवैधानिक" तक कह डाला। ट्रंप की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि इन निषेधाज्ञाओं को हटाया जाए या कम किया जाए, ताकि वे अपनी नीति लागू कर सकें। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल 2025 को आदेश दिया कि फिलहाल रोक बरकरार रहेगी, और 15 मई को इस पर सुनवाई होगी।
निचली अदालतों के पावर पर भी होगा सुप्रीम फैसला
सुप्रीम कोर्ट अभी इस बात पर फैसला नहीं करेगा कि ट्रंप का आदेश संवैधानिक है या नहीं। उसका फोकस एक तकनीकी सवाल पर है: क्या निचली अदालतों के जजों को पूरे देश में लागू होने वाले आदेश (नेशनवाइड इंजंक्शन) देने का हक है? ट्रंप की सरकार का कहना है कि ऐसे आदेश उनकी नीतियों को लागू करने में रुकावट डालते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर ट्रंप के पक्ष में फैसला देता है, तो कुछ राज्यों में उनकी सिटिजनशिप नीति लागू हो सकती है। लेकिन अगर कोर्ट निचली अदालतों के पक्ष में रहा, तो ट्रंप को बड़ा झटका लगेगा।
14वां संशोधन: क्यों है यह इतना खास?
1868 में बने 14वें संशोधन ने अमेरिका के इतिहास को बदला। यह गृहयुद्ध के बाद बना, ताकि गुलामों के बच्चों को नागरिकता मिले। इसमें साफ लिखा है: "अमेरिका में जन्मा या नेचुरलाइज्ड कोई भी व्यक्ति, जो इसके कानून के अधीन है, अमेरिकी नागरिक है।" 1898 में वॉन्ग किम आर्क केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसे और पक्का किया। ट्रंप का कहना है कि गैर-कानूनी अप्रवासियों के बच्चे "कानून के अधीन" नहीं हैं, इसलिए उन्हें नागरिकता नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन ज्यादातर कानूनी जानकार इसे गलत मानते हैं, क्योंकि गैर-कानूनी अप्रवासी भी अमेरिकी कानून के तहत गिरफ्तार या डिपोर्ट किए जा सकते हैं।
ट्रंप की राह कितनी मुश्किल?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला जून या जुलाई 2025 तक आ सकता है। अगर कोर्ट नेशनवाइड इंजंक्शन को सीमित करता है, तो ट्रंप कुछ इलाकों में अपनी नीति लागू कर सकते हैं, जिससे अलग-अलग राज्यों में अलग नियम बन सकते हैं। लेकिन अगर कोर्ट 14वें संशोधन को बरकरार रखता है, तो ट्रंप का आदेश पूरी तरह रद्द हो सकता है। X पर लोग इसे "ट्रंप की हार" बता रहे हैं, तो कुछ इसे "कानून की जीत" कह रहे हैं। 22 डेमोक्रेटिक राज्यों, अप्रवासी संगठनों, और गर्भवती महिलाओं ने ट्रंप के खिलाफ मुकदमे दायर किए हैं, जो इस जंग को और रोचक बनाते हैं। ट्रंप को इस बार सुप्रीम कोर्ट से कितनी राहत मिलेगी, यह देखना बाकी है।
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