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कौन हैं रेशमा केवलरमानी? टाइम मैगजीन 2025 में जगह बनाने वाली भारतीय मूल की इकलौती शख्सियत

TIME की 2025 की लिस्ट में भारतीय मूल की रेशमा केवलरमानी ने जगह बनाई, बनी अमेरिका की पहली महिला बायोटेक CEO।
10:01 AM Apr 17, 2025 IST | Rohit Agrawal

TIME 100 Most Influential People of 2025: हर साल टाइम मैगजीन की '100 सबसे प्रभावशाली लोगों' की सूची का दुनिया भर के लोगों को इंतजार रहता है। 2025 की लिस्ट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस तक, कई बड़े नाम हैं। लेकिन इस बार कोई भारतीय चेहरा नहीं दिखा, जो पिछले सालों की तुलना में चौंकाने वाला है। फिर भी, भारतीय मूल की रेशमा केवलरमानी ने इस सूची में जगह बनाकर तिरंगे का मान बढ़ाया। बता दें कि मुंबई में जन्मीं रेशमा, जो 11 साल की उम्र में अमेरिका चली गईं, आज वर्टेक्स फार्मास्युटिकल्स की सीईओ हैं और अमेरिका की पहली महिला बायोटेक CEO बनकर इतिहास रच चुकी हैं। उनके नेतृत्व में सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारी का इलाज संभव हुआ। आखिर कौन हैं रेशमा, और कैसे उन्होंने इस मुकाम को छुआ? चलिए, उनकी प्रेरक कहानी को रोचक अंदाज में जानते हैं, जैसे कोई बॉलीवुड फिल्म की स्क्रिप्ट हो!

रेशमा केवलरमानी का सफ़र कैसा रहा?

रेशमा केवलरमानी का जन्म मुंबई में हुआ, और 1988 में 11 साल की उम्र में वह अपने परिवार के साथ अमेरिका चली गईं। सपनों का पीछा करते हुए उन्होंने बोस्टन यूनिवर्सिटी से मेडिकल साइंस में डिग्री हासिल की। इसके बाद मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में फेलोशिप और ब्रिघम एंड वीमेन्स हॉस्पिटल में नेफ्रोलॉजी (किडनी रोग) की ट्रेनिंग ली। लेकिन रेशमा का जुनून सिर्फ मरीजों का इलाज तक सीमित नहीं था। वह नई दवाएँ विकसित करना चाहती थीं।

2015 में उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से जनरल मैनेजमेंट में डिग्री ली, जो उनके करियर का टर्निंग पॉइंट बना। रेशमा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मैंने महसूस किया कि ड्रग डिस्कवरी और क्लिनिकल ट्रायल का असली खेल बायोटेक इंडस्ट्री में है।" उनकी यह सोच उन्हें वर्टेक्स फार्मास्युटिकल्स तक ले गई, जहाँ उन्होंने इतिहास रचा।

रेशमा का व्यवसायिक सफ़र

2017 में रेशमा ने वर्टेक्स फार्मास्युटिकल्स में कदम रखा और 2018 में चीफ मेडिकल ऑफिसर बनीं। उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व ने कंपनी को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। महज दो साल बाद, 2020 में, वह वर्टेक्स की CEO बन गईं। यह उपलब्धि इसलिए भी खास थी, क्योंकि बायोटेक इंडस्ट्री में महिलाओं का नेतृत्व दुर्लभ है। टाइम मैगजीन के प्रोफाइल में जेसन केली, गिंग्को बायोवर्क्स के CEO ने लिखा कि "रेशमा मेरे बोर्ड में थीं, और उनकी सलाह अनमोल थी। वह जानती हैं कि दवा अनुमोदन की जटिल प्रक्रिया में विज्ञान की सीमाओं को कैसे आगे बढ़ाना है।" रेशमा का मंत्र है कि अगर कोई आइडिया पागलपन या असंभव लगता है, तो ठीक है, क्योंकि पहले किसी ने ऐसा किया ही नहीं!

सिकल सेल क्रिस्पर तकनीक ने दी नई पहचान

रेशमा के नेतृत्व में वर्टेक्स ने 2023 में एक क्रांतिकारी उपलब्धि हासिल की। अमेरिकी दवा एजेंसी FDA ने कंपनी की क्रिस्पर/कैस9 तकनीक आधारित थेरेपी 'कैसजेवी' को मंजूरी दी, जो सिकल सेल डिजीज (एक गंभीर रक्त रोग) का इलाज करती है। यह दुनिया की पहली क्रिस्पर-आधारित जीन थेरेपी थी, जो मरीजों के डीएनए में बदलाव कर बीमारी को जड़ से ठीक करती है। इस थेरेपी को 33 देशों में मंजूरी मिली। रेशमा ने कंपनी को और विस्तार दिया, जब 2024 में वर्टेक्स ने 4.9 अरब डॉलर में अल्पाइन इम्यून साइंसेज का अधिग्रहण किया। यह कंपनी ऑटोइम्यून और इन्फ्लेमेटरी बीमारियों के इलाज पर काम करती है। इसके अलावा, वर्टेक्स अब नॉन-ओपिऑइड दर्द निवारक दवाओं पर भी काम कर रहा है, जो तीव्र और पुराने दर्द का इलाज कर सकती हैं। रेशमा की ये उपलब्धियाँ उन्हें टाइम की लिस्ट में 'लीडर्स' कैटेगरी में लाए।

टाइम 2025 लिस्ट: रेशमा के अलावा इन दिग्गजों को मिला स्थान

टाइम मैगजीन की 2025 की सूची में 32 देशों के 100 लोग शामिल हैं, जो छह कैटेगरी—लीडर्स, टाइटन्स, आइकॉन्स, आर्टिस्ट्स, पायनियर्स, और इनोवेटर्स—में बँटे हैं। रेशमा केवलरमानी इस लिस्ट में इकलौती भारतीय मूल की शख्सियत हैं, जो 'लीडर्स' कैटेगरी में हैं। उनके साथ यह बड़ी शख्शियत भी शामिल हैं:

राजनेता: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (7वीं बार), ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर, बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस।

टेक और बिजनेस दिग्गज: टेस्ला के एलन मस्क, मेटा के मार्क जुकरबर्ग, AMD की लिसा सु, नेटफ्लिक्स के टेड सारंडोस।

मनोरंजन और खेल: सिमोन बाइल्स, स्कारलेट जोहानसन, स्नूप डॉग, सेरेना विलियम्स।

सबसे युवा और बुजुर्ग: 22 साल के फ्रेंच तैराक लियोन मार्शां और 84 साल के मोहम्मद यूनुस।

इस लिस्ट में ट्रंप प्रशासन के 6 लोग और 16 कॉर्पोरेट CEO शामिल हैं। टाइम के प्रधान संपादक सैम जैकब्स ने कहा कि ये लोग अपनी प्रसिद्धि या दौलत के लिए नहीं, बल्कि अपने प्रभाव के लिए चुने गए हैं।" रेशमा का नाम इस वैश्विक मंच पर भारत की ताकत को दिखाता है।

क्यों खास है रेशमा की कहानी?

रेशमा केवलरमानी की कहानी सिर्फ एक सीईओ की सफलता नहीं, बल्कि एक प्रवासी भारतीय की जीत है। 11 साल की उम्र में मुंबई से अमेरिका जाकर उन्होंने न सिर्फ मेडिकल साइंस में नाम कमाया, बल्कि बायोटेक्नोलॉजी की दुनिया में क्रांति ला दी। वह गिंग्को बायोवर्क्स के बोर्ड में हैं, और यूनिवर्सिटी ऑफ बोस्टन, मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल, और बायोमेडिकल साइंस करियर्स प्रोग्राम के बोर्ड में भी योगदान देती हैं। उनकी उपलब्धियाँ भारतीय मूल के लोगों के लिए प्रेरणा हैं, खासकर तब, जब 2024 में आलिया भट्ट, साक्षी मलिक जैसे भारतीय इस लिस्ट में थे, लेकिन 2025 में कोई भारतीय नागरिक नहीं। सोशल मीडिया पर कुछ ने इसे भारत के घटते प्रभाव का संकेत बताया, लेकिन रेशमा ने साबित किया कि भारतीय मूल की प्रतिभा अभी भी दुनिया पर राज कर रही है।

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