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क्या है चीन का प्रोजेक्ट 'CPEC'? जिसे रोकने की ट्रेन हाइजैकर्स ने की मांग, भारत-बलूचिस्तान के लिए है सिरदर्द

लंबे समय से बलूचिस्तान में चीन के CPEC प्रोजेक्ट का विरोध किया जा रहा है, जो भारत के लिए भी खतरनाक हो सकता है।
07:24 PM Mar 12, 2025 IST | Pooja

CPEC Project of China: पाकिस्तान में इस समय 'जाफर एक्सप्रेस ट्रेन' को हाईजैक करने का मामला गर्माया हुआ है। इस ट्रेन को बलूचिस्तान के विद्रोही गुट 'बलोच लिबरेशन आर्मी' (BLA) द्वारा हाईजैक किया गया है, जिसमें 182 से अधिक यात्रियों को बंधक बनाया गया। यह ट्रेन पाकिस्तान के क्वेटा से पेशावर जा रही थी। ट्रेन को हाईजैक करने वाले विद्रोहियों ने बलूचिस्तान में चल रहे चीन के प्रोजेक्ट सीपेक (CPEC) को रोकने की मांग की है।

बलूचिस्तान क्यों कर रहा है CPEC का विरोध?

बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब बलूचिस्तान के विद्रोहियों ने चीन के CPEC प्रोजेक्ट का विरोध किया है। BLA शुरू से ही इस प्रोजेक्ट का विरोध करता रहा है। दरअसल, बलूचिस्तान के लोगों का कहना है कि पाकिस्तानी का यह प्रांत संसाधनों (गैस और खनिज आदि) से समृद्ध है, लेकिन स्थानीय लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पाता है। पाकिस्तानी सरकार चीन की विदेशी ताकतों के जरिए इनका दोहन करती है, जिससे यहां के लोगों को गरीबी में जीना पड़ रहा है। इसके अलावा, यह भी कहा जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन बलूचिस्तान में अपने नागरिकों को बसा रहा है। इसीलिए शुरू से ही बलूचिस्तानी विद्रोहियों ने चीनी कर्मचारी और नागरिकों पर हमले करने शुरू कर दिए थे, जो अभी तक जारी है। इसलिए यह प्रोजेक्ट धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाता है।

वैसे, न सिर्फ बलूचिस्तानियों के लिए बल्कि चीन का यह प्रोजेक्ट CPEC भारत के लिए भी सिरदर्द बना हुआ है। दरअसल, इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन के काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर तक इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाया जा रहा है, जिसके जरिए चीन की पहुंच अरब सागर तक आसान हो जाएगी। सीपेक प्रोजेक्ट के तहत चीन पाकिस्तान में सड़कें, बंदरगाह, एयरपोर्ट, रेलवे और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। यह भारत के लिए भी थोड़ा परेशानी का सबब बन सकता है।

क्या है चीन का CPEC प्रोजेक्ट?

आगे बढ़ने से पहले आपको बता देते हैं कि आखिर यह प्रोजेक्ट क्या है। दरअसल, यह प्रोजेक्ट चीनी सरकार की 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना का ही एक हिस्सा है। इसके तहत चीन के काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर तक इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की लागत साल 2013 में 46 बिलियन डॉलर आंकी गई थी। हालांकि, 2017 तक इसका अनुमानित खर्च 62 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इसकी प्लानिंग 1950 से ही चल रही थी। साल 2013 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और चीन के प्रीमियर Li Keqiang द्वारा कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए जिन समझौतों को साइन किया गया था, उनमें से एक यह प्रोजेक्ट भी था।

पाकिस्तान में कई प्रोजेक्ट हुए पूरे

बता दें कि चीन के सीपेक प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में बहावलपुर में 'कायदे आजम पावर प्रोजेक्ट', कोहाला में 'कोहाला हाईड्रोपावर प्रोजेक्ट', झिमपीर में 'सचल विंड फार्म', बरूथी में 'करोत हाईड्रोपावर प्लांट', साहीवाल में 'कोल पावर प्लांट' आदि पूरे हो चुके हैं। इस इकोनॉमिक कॉरिडोर के बनने से शिपिंग इंडस्ट्री को फायदे की उम्मीद जताई जा रही है, क्योंकि शिप को पहुंचने में अभी जहां 45 दिन लगते हैं, इसके बनने के बाद सिर्फ 10 दिन लगा करेंगे।

भारत के लिए CPEC क्यों है सिरदर्द?

बता दें कि CPEC भारत के लिए भी सिरदर्द है, जिसका यह शुरू से ही विरोध जता रहा है। दरअसल, यह बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट से चीन के शिनजियांग को जोड़ेगा, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित बाल्टिस्तान इलाके से होकर जाता है। इस एरिया पर भारत अपना दावा करता है और अगर यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाता है, तो इस क्षेत्र की 73 हजार वर्ग किमी जमीन पर इंडिया का दावा कमजोर हो जाएगा। ऐसे में भारत का कहना है कि चीन अपने इस प्रोजेक्ट के जरिए भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है। दरअसल, यह कॉरिडोर सड़क मार्ग से भारत में कश्मीर घाटी की सीमा तक पाकिस्तान व चीन की पहुंच आसान कर देगा। ऐसे में रणनीतिक रूप से भी यह भारत के खिलाफ है।

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