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भारत के इस पड़ोसी देश में क्यों हो रही है मुख्यमंत्री योगी की चर्चा, क्या है पूरा मामला?

नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की वापसी से सियासी हलचल तेज हो गई है। काठमांडू में हजारों लोग जुटे, वहीं योगी आदित्यनाथ से जुड़े पोस्टर ने चर्चा बढ़ा दी।
05:16 PM Mar 10, 2025 IST | Vyom Tiwari

नेपाल में एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिल रहा है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की काठमांडू में जोरदार वापसी हुई है। जब वे रविवार को पोखरा से काठमांडू एयरपोर्ट पहुंचे, तो उनका स्वागत करने के लिए करीब 10 हजार नेपाली नागरिक सड़कों पर उमड़ पड़े। यह नजारा इसलिए खास था क्योंकि 2006 में नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद पहली बार इतना बड़ा समर्थन ज्ञानेंद्र के पक्ष में देखा गया।

अब सवाल यह उठ रहा है कि ज्ञानेंद्र की यह वापसी सिर्फ संयोग है या वे सच में दोबारा जनता का भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं? कुछ लोग इसे उनकी नई राजनीतिक चाल बता रहे हैं, तो कुछ लोग उनके पुराने फैसलों का हिसाब-किताब निकाल रहे हैं।

इसी बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम भी नेपाल की राजनीति में गूंजने लगा है। ज्ञानेंद्र की रैली में योगी के पोस्टर नजर आने के बाद चर्चाएं और तेज हो गई हैं। नेपाल में इस पूरे घटनाक्रम को योगी से जोड़कर कई तरह की बातें और कहानियां बनाई जा रही हैं।

नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र और योगी आदित्यनाथ की मुलाकात पर चर्चा  

नेपाल की राजनीति में सक्रिय होने से पहले पूर्व राजा ज्ञानेंद्र ने लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मुलाकात की एक तस्वीर भी मीडिया में सामने आई थी। हालांकि, दोनों नेताओं ने इस मुलाकात को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया कि वे किस मुद्दे पर मिले थे।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नेपाल में हिंदू आबादी करीब 81% है और वहां के लोग योगी आदित्यनाथ को एक कट्टर हिंदू नेता और हिंदुत्व के आदर्श चेहरे के रूप में देखते हैं। इस वजह से नेपाली मीडिया भी ज्ञानेंद्र और योगी की मुलाकात को इसी नजरिए से देख रही है।

दरअसल, नेपाल के राजपरिवार और भारत के गोरखनाथ पीठ के बीच पुराने रिश्ते रहे हैं। नेपाल के राजा और उनके परिवार के सदस्य लंबे समय से इस पीठ से जुड़े रहे हैं और यहां आते रहे हैं। योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ पीठ के महंत (पीठाधीश्वर) हैं और साथ ही बीजेपी के एक प्रभावशाली नेता भी हैं। यही वजह है कि उनकी इस मुलाकात को नेपाल की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।

लोकतंत्र के 18 साल, लेकिन हालात अब भी चुनौतीपूर्ण  

नेपाल में 2006 में राजशाही का अंत हुआ और 2008 में नया संविधान लागू हुआ। लेकिन तब से अब तक नेपाल में 13 बार प्रधानमंत्री बदले जा चुके हैं। मौजूदा सरकार भी स्थिर नहीं है और गठबंधन के सहारे टिकी हुई है।

नेपाल जर्नल्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजशाही के मुकाबले लोकतांत्रिक शासन के दौरान नेपाल का विकास धीमा रहा है। रिपोर्ट में 1990 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया गया है कि उस समय नेपाल की प्रति व्यक्ति जीडीपी 16,769 रुपए थी, जबकि भारत की 32,145 रुपए। लेकिन 2019 तक यह अंतर और बढ़ गया—नेपाल की प्रति व्यक्ति जीडीपी 93,554 रुपए हो गई, जबकि भारत की 1,83,440 रुपए।

नेपाल में भ्रष्टाचार और महंगाई भी बड़े मुद्दे बने हुए हैं। भारत के साथ संबंध बिगड़ने के कारण खासतौर पर मधेश (बॉर्डर) इलाकों में रहने वाले लोग मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

 

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