156 दिन बाद हुआ न्याय: बांग्लादेश में चिन्मय कृष्ण दास को मिली बेल
बांग्लादेश की राजनीति और न्यायिक व्यवस्था के बीच फंसे एक हिंदू साधु को आखिरकार 156 दिन बाद राहत की सांस मिली है। चिन्मय कृष्ण दास, जिन्हें देशद्रोह के आरोप में नवंबर 2024 में गिरफ्तार किया गया था, अब बांग्लादेश हाई कोर्ट से ज़मानत पा चुके हैं। ये सिर्फ एक ज़मानत नहीं, बल्कि उन तमाम हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए आशा की किरण है, जो वर्षों से बांग्लादेश में समानता और सुरक्षा की लड़ाई लड़ रहे हैं।
चिन्मय दास कौन हैं और क्यों हुए थे गिरफ्तार?
चिन्मय कृष्ण दास, ISKCON के पूर्व पुजारी और सामाजिक कार्यकर्ता, बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा के खिलाफ मुखर आवाज बने हुए थे। 25 नवंबर 2024 को ढाका एयरपोर्ट से उन्हें गिरफ्तार किया गया। आरोप था कि उन्होंने एक हिंदू रैली के दौरान बांग्लादेश के झंडे का अपमान किया। लेकिन इन आरोपों को कई विशेषज्ञों ने राजनीति से प्रेरित और मनगढ़ंत बताया।
156 दिनों तक लड़ी कानूनी लड़ाई, तब मिली जमानत
हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास ने जमानत पाने के लिए 156 दिन तक अदालतों में लड़ी लड़ाई, फिर फैसला आया। पहले कई बार उनकी जमानत याचिकाएं खारिज की गईं। जेल में चिकित्सकीय लापरवाही के आरोप भी लगे। वकीलों ने कोर्ट में तर्क रखा कि ये गिरफ्तारी केवल राजनीतिक प्रतिशोध है। बुधवार को हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच ने आखिरकार जमानत मंजूर की। अब नज़रें सुप्रीम कोर्ट के अपीलेट डिवीजन पर हैं, जहां अगर रोक नहीं लगी तो दास जल्दी रिहा होंगे।
राजनीति और धर्म के टकराव का नया अध्याय
इस केस ने साफ कर दिया कि बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति कितनी संवेदनशील है। शेख हसीना सरकार के जाने के बाद यूनुस की अंतरिम सरकार से उम्मीदें थीं, लेकिन चिन्मय दास की गिरफ्तारी ने उस पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया। भारत सरकार ने भी इस मामले में चुप्पी नहीं साधी। ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग ने दास के स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर बांग्लादेश प्रशासन से जवाब मांगा था।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले
बांग्लादेश की कुल आबादी करीब 17 करोड़ है, जिनमें से लगभग 8% हिंदू हैं। पिछले कुछ महीनों में 50 से अधिक जिलों में हिंदू विरोधी हिंसा की खबरें सामने आई हैं। चिन्मय दास इन हमलों के खिलाफ लगातार सख्त कदम और न्याय की मांग कर रहे थे। यही मुखरता शायद उन्हें सरकार की नजरों में खटकने लगी और नतीजा—गिरफ्तारी। चिन्मय कृष्ण दास की जमानत बांग्लादेश के न्यायिक ढांचे के लिए एक लिटमस टेस्ट बन गई थी। अब जबकि उन्हें बेल मिल चुकी है, यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरे हिंदू समुदाय के लिए एक नैतिक जीत मानी जा रही है।
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