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ईरान के ‘जिगसॉ न्यूक्लियर प्लान’ से बढ़ी वैश्विक चिंता, अमेरिका-सऊदी अरब हाई अलर्ट पर!

अमेरिका पहले से ही ईरान की न्यूक्लियर गतिविधियों पर नजर बनाए हुए था। लेकिन अब जब IAEA ने भी खुले तौर पर खतरा बताया है, तो वाशिंगटन में हलचल और तेज हो गई है।
11:39 AM Apr 17, 2025 IST | Sunil Sharma

ईरान द्वारा चलाए जा रहे सीक्रेट न्यूक्लियर वेपन योजनाओं को लेकर दुनिया भर में एक बार फिर से खलबली मच गई है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने ईरान की गतिविधियों पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि ईरान अब महज़ एक कदम दूर है परमाणु बम बनाने से। ग्रॉसी के इस बयान ने अमेरिका, सऊदी अरब और तमाम वैश्विक ताकतों को चौकन्ना कर दिया है। उन्होंने ईरान की न्यूक्लियर स्ट्रैटजी को "जिगसॉ पज़ल" करार दिया—यानि ईरान के पास वो सारे ‘पीस’ मौजूद हैं जिन्हें मिलाकर वो कभी भी एक खतरनाक परमाणु बम बना सकता है।

क्या है 'जिगसॉ न्यूक्लियर प्लान'?

दरअसल जिगसॉ एक पजल गेम होता है जिसमें छोटे-छोटे हिस्से जुड़कर एक बड़ी तस्वीर बनाते हैं। इसी तरह ईरान के पास भी न्यूक्लियर तकनीक, यूरेनियम संवर्धन, डिवाइस डिज़ाइन और मिसाइल सिस्टम से जुड़ी सभी जानकारियां और संसाधन मौजूद हैं। राफेल ग्रॉसी ने कहा कि ईरान को अब सिर्फ इन टुकड़ों को जोड़ना है, और वह किसी भी पल परमाणु हथियार पाने के अपने सपने को पूरा कर सकता है।

ईरान के इस कदम से बढ़ी अमेरिका की बेचैनी

अमेरिका पहले से ही ईरान की न्यूक्लियर गतिविधियों पर नजर बनाए हुए था। लेकिन अब जब IAEA ने भी खुले तौर पर खतरा बताया है, तो वाशिंगटन में हलचल और तेज हो गई है। अमेरिकी सरकार का मानना है कि यदि ईरान ने परमाणु बम बना लिया, तो पूरे मिडिल ईस्ट में हथियारों की होड़ शुरू हो जाएगी, जिससे न केवल क्षेत्रीय शांति बल्कि वैश्विक स्थिरता भी खतरे में पड़ सकती है।

सऊदी अरब ने भी दी चेतावनी, कहा- "अगर ईरान बना तो हम भी बनाएंगे!"

ईरान द्वारा परमाणु हथियार बनाए जाने की योजना की जानकारी मिलने पर सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कई बार स्पष्ट कर दिया है कि अगर ईरान ने परमाणु हथियार बनाए, तो सऊदी भी पीछे नहीं रहेगा। हम भी जल्द कदम उठाएंगे। सऊदी अरब मानता है कि ईरान का कार्यक्रम सिर्फ "सिविलियन न्यूक्लियर एनर्जी" तक सीमित नहीं है। असल मकसद परमाणु शक्ति बनना है। अगर ऐसा होता है, तो न सिर्फ सऊदी बल्कि अन्य खाड़ी देश भी खुद को असुरक्षित महसूस करेंगे।

2015 की न्यूक्लियर डील टूटी तो ईरान ने तेज की अपनी कोशिशें

वर्ष 2015 में हुई ईरान परमाणु डील (JCPOA) ईरान के न्यूक्लियर सपनों पर लगाम कसने का एक तरीका थी। लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हटने के फैसले के बाद से ही ईरान ने दोबारा अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। अब ईरान पर विश्वास करना मुश्किल हो गया है, खासकर तब जब IAEA खुद मान रहा हो कि ईरान के पास "सारे जरूरी तत्व" मौजूद हैं।

दुनिया के सामने बड़ा सवाल: रोकेंगे कैसे?

अब सवाल ये है कि क्या दुनिया ईरान को परमाणु ताकत बनने से रोक पाएगी? क्या अमेरिका और सऊदी अरब एक नया गठबंधन बना सकते हैं? और सबसे अहम—अगर ईरान सफल हो गया, तो क्या ये तीसरे विश्व युद्ध की आहट होगी? सबसे बड़ी बात, इस क्षेत्र में पहले से इजरायल के पास परमाणु हथियार हैं जिन्हें ईरान अपने लिए खतरा मानता है। ऐसे में IAEA की वॉर्निंग को नजरअंदाज करना लगभग असंभव हो चुका है।

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