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लेबनान: कैसे 80 प्रतिशत ईसाई आबादी वाला देश बन गया मुस्लिम राष्ट्र?

बनान में 75-80 प्रतिशत ईसाई आबादी रहती थी। लेकिन समय के साथ अब एक ऐसा देश बन गया है जहां मुस्लिम जनसंख्या का बड़ा हिस्सा है। यह बदलाव कई कारणों से हुआ है। आइए जानते हैं कि यह परिवर्तन कैसे आया।
02:58 PM Sep 30, 2024 IST | Vibhav Shukla

लेबनान, जो दुनिया के सबसे प्राचीन देशों में से एक है, इन दिनों इजराइली हमलों से बुरी तरह प्रभावित है। लेबनान, जिसे आधिकारिक रूप से लेबनान गणराज्य कहा जाता है, पश्चिमी एशिया में भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित है। इसके उत्तर-पूर्व में सीरिया और दक्षिण में इजराइल है। यह एक ऐतिहासिक व्यापारिक मार्ग के रूप में जाना जाता है। यहां की संस्कृति फीनिसियनों के समय से शुरू होती है और इसके बाद कई साम्राज्यों जैसे फ़ारसी, रोमन, और उस्मानी तुर्कों का प्रभाव रहा।

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लेबनान की आबादी में मुख्यत: दो धार्मिक समुदाय शामिल हैं, जिसमें लगभग 70% मुसलमान (जिसमें आधे शिया और आधे सुन्नी हैं) और लगभग 30% में ईसाई और अन्य समुदाय हैं। मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण अब इसे एक मुस्लिम देश माना जाता। यहां की साक्षरता दर अच्छी है और यह व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। बेरुत इसकी राजधानी है और कुल जनसंख्या लगभग 38 लाख है। देश का कुल क्षेत्रफल 10,452 वर्ग किलोमीटर है, और इसकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खाद्य सामग्री और तंबाकू के निर्यात पर निर्भर है, जिसमें प्रति व्यक्ति आय लगभग 6,180 अमेरिकी डॉलर है।

एक दौर में लेबनान में 75-80 प्रतिशत ईसाई आबादी रहती थी। लेकिन समय के साथ अब एक ऐसा देश बन गया है जहां मुस्लिम जनसंख्या का बड़ा हिस्सा है। यह बदलाव कई कारणों से हुआ है। आइए जानते हैं कि यह परिवर्तन कैसे आया।

दिलचस्प है लेबनान का इतिहास

लेबनान का इतिहास बहुत दिलचस्प है। 20वीं सदी के मध्य तक, यहाँ ईसाई लोग जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा थे। वे व्यापार, शिक्षा और राजनीति में प्रमुख थे। लेकिन समय के साथ, मुस्लिम समुदाय की संख्या में वृद्धि होने लगी। यह बदलाव मुख्यतः आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक कारणों से हुआ।

1970 के दशक में, लेबनान में गृहयुद्ध शुरू हुआ। यह युद्ध कई सालों तक चला और देश को बुरी तरह प्रभावित किया। इस दौरान, कई ईसाई परिवार देश छोड़कर चले गए, जिससे उनकी संख्या में कमी आई। वहीं, मुस्लिम समुदाय ने अपने आप को मजबूती से खड़ा किया और उनकी जनसंख्या बढ़ने लगी।

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गृहयुद्ध के बाद, देश में आर्थिक संकट आ गया। कई ईसाई व्यवसायों में गिरावट आई और उनकी सामाजिक स्थिति कमजोर हुई। मुस्लिम समुदाय ने इस स्थिति का फायदा उठाया। उन्होंने नए व्यापार और रोजगार के अवसरों को अपनाया, जिससे उनकी संख्या और ताकत में वृद्धि हुई।

सीरिया में चल रहे संघर्ष के कारण, बड़ी संख्या में शरणार्थी लेबनान आए। इनमें से अधिकांश लोग मुस्लिम समुदाय से थे। इन शरणार्थियों ने लेबनान की जनसंख्या को और बढ़ा दिया, जिससे मुस्लिम समुदाय का आकार और भी बड़ा हो गया।

लेबनान में लगभग 70 फीसदी लोग मुस्लिम

लगभग 90 साल पहले लेबनान में आखिरी बार जनगणना हुई थी। 1950 के दशक में यहां की जनसंख्या का लगभग 70 फीसदी हिस्सा ईसाई था, जबकि बाकी 30 प्रतिशत में मुस्लिम और अन्य धर्मों के अनुयायी शामिल थे। लेकिन 1932 के बाद से देश में कोई नई जनगणना नहीं हुई है। हाल ही में यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें बताया गया है कि अब लेबनान में लगभग 70 फीसदी लोग मुस्लिम हैं, जिनमें शिया, सुन्नी और अन्य मुस्लिम समूह शामिल हैं। बाकी जनसंख्या में ईसाई और कुछ अन्य धार्मिक समुदाय हैं।

राजनीति में भी हुआ धार्मिक विभाजन

लेबनान की राजनीति में भी धार्मिक विभाजन का बड़ा असर रहा है। विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने मुस्लिम समुदाय को एकजुट करने में मदद की। उनके बीच एकता और सहयोग ने उन्हें मजबूत बनाया, जिससे उनका राजनीतिक प्रभाव बढ़ा।

लेबनान में कई धार्मिक समुदाय हैं, जैसे ईसाई, सुन्नी, शिया और द्रूज़। हालांकि, समय-समय पर इन समुदायों के बीच तनाव होता रहा है। लेकिन एक सकारात्मक पहलू यह है कि कई लोग सहिष्णुता और एकता के लिए काम कर रहे हैं।

आज, लेबनान की जनसंख्या का लगभग 62 प्रतिशत मुस्लिम है। ईसाई जनसंख्या धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन यह भी सच है कि ईसाई समुदाय अभी भी देश में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विभिन्न समुदायों के बीच संबंध बेहतर बनाने के प्रयास जारी हैं।

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