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डोनाल्ड ट्रंप की वापसी से होगा NATO का अंत? क्या होगी ट्रंप की नई रणनीति?

देश की विदेश नीति में बड़े बदलाव करना एक लंबी प्रक्रिया होती है, लेकिन ट्रंप की वापसी के साथ ही अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव साफ दिखाई देने लगे हैं।
01:06 AM Jan 22, 2025 IST | Vyom Tiwari

डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में पहले दिन ने यूरोप के देशों में चिंता बढ़ा दी। यूरोपियन यूनियन को लग रहा है कि अमेरिका की विदेश नीति अब बदल गई है। मौजूदा सरकार की प्राथमिकता न तो यूरोप की सुरक्षा है और न ही यूक्रेन की। यही वजह है कि कई यूरोपीय नेता ट्रंप के शपथ समारोह में शामिल होने भी नहीं आए।

अब यूरोप ने यूक्रेन युद्ध को बिना अमेरिकी मदद के जारी रखने की योजना बनाई है। इसके साथ ही, अपनी सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर बनने का भी फैसला लिया है। ऐसे में सवाल उठता है क्या ट्रंप के शासन में NATO का अंत होने वाला है? और क्या यूरोप और रूस के बीच तनाव बढ़कर जंग में बदल सकता है?

हालांकि, किसी देश की विदेश नीति पूरी तरह बदलने में दशकों का समय लगता है। लेकिन ट्रंप की वापसी के साथ ही अमेरिका की नीति में बदलाव दिखने लगा है। ये बदलाव जमीन पर उतरने में समय ले सकते हैं, या शायद ट्रंप भविष्य में पुरानी नीतियों पर लौट आएं। लेकिन एक बात साफ है दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण में ही इन परिवर्तनों का असर दिखाई दिया, क्योंकि यूरोप के बड़े नेताओं को आमंत्रित ही नहीं किया गया था।

नहीं आये यूरोपियन लीडर्स 

डोनाल्ड ट्रंप की शपथ ग्रहण समारोह में यूरोप के बड़े नेताओं को नहीं बुलाया गया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और EU प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयन इस लिस्ट में शामिल नहीं थे। पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा और NATO प्रमुख मार्क रूटे भी मेहमानों में नहीं दिखे।

इसकी वजह ट्रंप की विदेश नीति मानी जा रही है, जो यूक्रेन और यूरोप की सुरक्षा के प्रति पहले जितनी प्रतिबद्ध नहीं दिखती। अमेरिका और यूरोप के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। इसी दौरान, फ्रांस के राष्ट्रपति का बयान भी इस बात को और पुख्ता करता है।

ट्रंप की शपथ से दूर यूरोप: क्यों बढ़ रही है दूरी?  

डोनाल्ड ट्रंप की शपथ समारोह में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, और यूरोपीय संघ की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयन को न्योता नहीं मिला। पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा और NATO प्रमुख मार्क रूटे भी इस समारोह से गायब थे।

यह सब ट्रंप की विदेश नीति में यूरोप के लिए घटती प्राथमिकता को दिखाता है। ट्रंप की नीति में यूक्रेन और यूरोप की सुरक्षा पर उतनी गंभीरता नहीं दिखाई देती जितनी पहले अमेरिकी सरकारें दिखाती थीं। फ्रांस के राष्ट्रपति का बयान भी इस बात को साफ करता है कि ट्रंप के आने के बाद यूरोप का सुरक्षा कवच कमजोर हुआ है।

‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’

ट्रंप ने पहले ही इशारा कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" है, और दूसरों के मुद्दों से वे दूरी बनाएंगे। उन्होंने साफ कर दिया है कि अगर नाटो के सदस्य देश अपने रक्षा बजट को नहीं बढ़ाते, तो अमेरिका उनकी सुरक्षा का खर्च क्यों उठाए।

नाटो, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप की सुरक्षा का आधार रहा है, पर ट्रंप ने लंबे समय से सवाल उठाए हैं। यह सब दिखाता है कि ट्रंप के कार्यकाल में यूरोप और अमेरिका के रिश्तों में खाई और बढ़ सकती है। अब यूरोप को अपनी सुरक्षा और अस्तित्व को लेकर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

यूरोप ने युद्ध के लिए शुरू की तैयारी 

ट्रंप ने NATO देशों के लिए एक शर्त रखी थी कि हर देश अपनी GDP का 2% हिस्सा रक्षा बजट पर खर्च करे। हालांकि, इस शर्त को अभी तक सिर्फ कुछ देश ही पूरा कर पाए हैं। अमेरिका 3.6%, ग्रीस 2.2%, एस्टोनिया 2.14%, यूनाइटेड किंगडम 2.10%, और पोलैंड 2% खर्च कर रहे हैं। फ्रांस 1.8% और जर्मनी सिर्फ 1.2% खर्च करते हैं, जबकि बाकी 25 देश 1% से भी कम खर्च कर रहे हैं।

इस बीच, यूरोप ने रूस से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। उन्हें लग रहा है कि इस संघर्ष में ट्रंप की सरकार से ज्यादा मदद मिलने की उम्मीद नहीं है। इसलिए, यूरोप के देश रूस को यूक्रेन के साथ जंग में उलझाए रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वो यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई जारी रखेंगे, ताकि रूस कमजोर हो सके। हालांकि, रूस को भी यह समझ आ गया है कि इन हथियारों के सहारे यूक्रेन उसे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

यूरोपीय देशों की आत्मरक्षा का सवाल 

रूस ने बदलते हालातों के बीच यूरोप पर दबाव बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इसका मकसद यूरोपीय देशों से मिलने वाली मदद के सभी रास्ते बंद करना है। यह कवायद अटलांटिक महासागर से शुरू हुई है। हाल ही में रूस का एक शोध जहाज (ओशेनोग्राफिक वेसल) उत्तरी अटलांटिक महासागर में देखा गया।

यह जहाज समुद्र से जुड़े शोध के लिए इस्तेमाल होते हैं, लेकिन पुर्तगाल ने 19 जनवरी को इसे अपने पास ट्रेस करते हुए दावा किया कि रूस इसे समुद्र के नीचे बिछी इंटरनेट केबल काटने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। पुर्तगाल का कहना है कि रूस के "डार्क फ्लीट" से जुड़े कई जहाज यूरोप की इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।

ट्रंप की वापसी से रूस को फायदा?  

डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राजनीति में लौटने के बाद रूस के लिए हालात और अनुकूल होते दिख रहे हैं। ट्रंप का ध्यान तब तक रूस पर नहीं जाएगा जब तक वह सीधे अमेरिकी संप्रभुता या हितों के लिए खतरा नहीं बनता। ऐसे में ट्रंप के रूस के खिलाफ सख्त कदम उठाने की संभावना कम है।

यूरोप और NATO के लिए बढ़ी चुनौतियां  

अब यूरोपीय देशों के सामने अपनी सुरक्षा का बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। जहां पहले सिर्फ रूस को खतरे के तौर पर देखा जाता था, अब ट्रंप की नीतियां भी चिंता का विषय बन गई हैं। NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) के लिए हालात कठिन होते जा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या NATO का अस्तित्व बना रहेगा, या यह भी सोवियत संघ की तरह बिखर जाएगा?

रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ता यह तनाव भविष्य में बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है।

 

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