हिंगलाज माता मंदिर: पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित वो शक्तिपीठ जहां मुस्लिम भी झुकाते हैं सिर, कहते हैं ‘नानी का हज’
जब 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तो इतिहास ने धर्म, संस्कृति और परंपराओं की गहराई में कई जख्म छोड़ दिए। उन्हीं में से एक है हिंगलाज माता मंदिर—एक ऐसा शक्तिपीठ जो अब पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है, लेकिन जिसकी आस्था आज भी भारतीय उपमहाद्वीप के करोड़ों लोगों की रगों में धड़कती है।
हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम श्रद्धालुओं की आस्था का भी केंद्र है
बलूचिस्तान के लसबेला इलाके में स्थित यह मंदिर न सिर्फ हिंदू श्रद्धालुओं का तीर्थस्थल है, बल्कि यहां मुस्लिम भी सिर झुकाते हैं। वे इस स्थान को 'बीबी नानी पीर' या 'नानी का हज' कहकर बुलाते हैं। श्रद्धा की इस मिसाल में मज़हब की दीवारें गिर जाती हैं और केवल भक्ति शेष रह जाती है।
नवरात्रि में लगता है भक्ति का मेला
हर साल दो बार नवरात्रि में यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। दूर-दराज़ से हजारों श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं, भले ही यह पाकिस्तान के सबसे दुर्गम इलाकों में क्यों न स्थित हो। ये मेले धर्म, साहस और आस्था की एक अनूठी मिसाल हैं।
हिंगलाज यात्रा है अमरनाथ यात्रा से भी कठिन
इस मंदिर तक पहुंचना किसी आध्यात्मिक अग्निपरीक्षा से कम नहीं। रास्ते में 1000 फीट ऊंचे पहाड़, रेगिस्तान की तपिश, घने जंगल और सुरक्षा की कमी यात्रा को बेहद चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। पाकिस्तान की सेना या प्रशासन से कोई सहायता नहीं मिलती, इसलिए श्रद्धालु 30-40 लोगों के समूह में यात्रा करते हैं और अपनी सुरक्षा खुद करते हैं।
यहां गिरा था माता सती का सिर
पुराणों के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के शरीर को लेकर आकाश में घूम रहे थे, तो विष्णु ने उनका मोह भंग करने के लिए उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े किए। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। हिंगलाज वो स्थान है जहां माता सती का सिर गिरा था, इसलिए इसका धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है।
पहले 200 किमी चलना होता था पैदल
हिंगलाज मंदिर कराची से करीब 250 किमी दूर है। श्रद्धालु 4 पड़ावों और 55 किमी की पैदल यात्रा के बाद यहां पहुंचते हैं। 2007 में चीन द्वारा बनाई गई सड़क के बाद अब यह यात्रा थोड़ी आसान हुई है, लेकिन पहले इसे पूरा करने में महीनों लग जाते थे। हिंगलाज माता मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह उस सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जुड़ाव का प्रतीक है जो सीमाओं और धर्मों से परे है। जहां एक ओर यहां माता सती की शक्ति बसती है, वहीं दूसरी ओर यह इंसानियत और भाईचारे की मिसाल भी बन चुका है।
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