Holi 2025: होली के रंग, अपनों के संग, फाग, राग, मस्ती और मल्हार की तरंग
Holi 2025: होली का त्योहार आने से पहले ही होली के रंग दिखने लगते हैं। यह पर्व सब मे रंग और उत्साह से भर देता है। यह केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि लोक संगीत, परंपराओं और सामाजिक मेलजोल का भी प्रतीक है। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अटूट हिस्सा है। होली के गीत-मल्हार, फाग, राग ये सब होली को और भी खास बनाते हैं। बता दें, हिंदी महीनों में सबसे आखिरी और 12वां महीना है फाल्गुन का होता है। और इस महीने में ही होली का उत्सव मनाया जाता है।
पुराने जमाने में, जब महुआ फूलों से लदने लगता, सरसों के खेत खिल उठते, टेसू और पलाश के फूल धरती पर बिखर जाते, तो लोग समझ जाते कि सर्दियां अब जा रही है और वसंत आ रहा है। इसके बाद, चौराहे पर सम्मत रखते ही रंगों का उत्सव शुरू हो जाता। लोग टोलियाँ बनाकर, ढोलक और ताशे की थाप पर गलियों में नाचते-गाते हुए नजर आते थे।
अरे रई रई रई रई रई
हां रई रई रई रई रई
फागुन मस्त महिनवा रे मनवा,
फागुन मस्त महीनवा रे
ढोलक पे देके ताल मचा दे
मचा दे मचा दे बवाल रे
अरे रई रई रई रई.....
पहले के समय में, होली और रंग का त्योहार सिर्फ फाल्गुन की पूर्णिमा और धुलैंडी तक सीमित नहीं था। ये दिन तो रंग खेलने के आखिर दिन होते थे। लेकिन अब, जब से ऑफिस का काम और महंगाई बढ़ गई है, और हर दिन मुश्किलें और परेशानियाँ बढ़ गई हैं, त्योहारों का जश्न भी कम हो गया है। इसीलिए, दशहरा अब सिर्फ नवमी और दशमी का दिन रह गया है, दीपावली सिर्फ दीये जलाने तक सीमित हो गई है, और होली सिर्फ एक दिन रंग खेलने का त्योहार बन गई है।
जानिए क्या होती है, असली होली?
होली सिर्फ रंग खेलने का त्योहार नहीं है, यह तो बहुत पहले से शुरू हो जाता है। धीरे-धीरे यह सबको रंगों और खुशियों से भर देता है। होली में सिर्फ रंग ही नहीं, बल्कि लोक संगीत, पुरानी परंपराएं और लोगों का आपस में मिलना-जुलना भी शामिल है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति का एक हिस्सा है। जब फागुन का महीना आता है, तो होली के पांच दोस्त - फाग, राग, रंग, मस्ती और मल्हार - मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं कि होली कभी भूली नहीं जा सकती।
फागुन में देखने को मिलता फाग का रंग
अगर हम पुराने समय की बात करें, तो माघ के महीने के बाद से ही गाँवों में होली का माहौल बनने लगता था। फसलें कटकर खलिहानों में पहुँच जाती थीं, और चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते थे। खेतों में नई फसलें झूमने लगती थीं। हर तरफ ऐसा लगता था कि कामदेव ने अपना जादू चला दिया है। इसी खुशनुमा माहौल में लोग गाने लगते थे, जिसे फाग कहा जाता है। फाग एक तरह का पारंपरिक गीत है, जो दो महीने तक चलता है। यह शास्त्रीय संगीत की तरह होता है, लेकिन इसमें नियमों का उतना ध्यान नहीं रखा जाता। फाग की खासियत यह है कि इसमें ताल के साथ गाते रहो, अगर कभी सुर बिगड़ भी जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन ताल नहीं बिगड़नी चाहिए।
फाग क्या है? (Holi 2025)
फाग एक तरह का पारंपरिक लोकगीत है जो होली के त्योहार पर उत्तर प्रदेश और बिहार में गाया जाता है। यह गीत होली के माहौल को और भी रंगीन और खुशनुमा बना देता है। कई फाग गीतों की शुरुआत "जागिरा सररर..." से होती है, जिसके बाद होली से जुड़ी पंक्तियाँ गाई जाती हैं। फाग में राम, कृष्ण, राधा रानी, शिव-पार्वती जैसे देवी-देवताओं के साथ-साथ प्रकृति और ग्रामीण जीवन का भी जिक्र होता है। इसमें चिड़िया, तोता, सांप-बिच्छू, गाँव-घर और खेत-खलिहान जैसी चीज़ों के बारे में बात की जाती है।
होली के प्रसिद्ध फाग गीत
1. काहे खातिर राजा रूसे काहे खातिर रानी।
काहे खातिर बकुला रूसे कइलें ढबरी पानी॥ जोगीरा सररर....
राज खातिर राजा रूसे सेज खातिर रानी।
मछरी खातिर बकुला रूसे कइलें ढबरी पानी॥ जोगीरा सररर....
केकरे हाथे ढोलक सोहै, केकरे हाथ मंजीरा।
केकरे हाथ कनक पिचकारी, केकरे हाथ अबीरा॥
राम के हाथे ढोलक सोहै, लछिमन हाथ मंजीरा।
भरत के हाथ कनक पिचकारी, शत्रुघन हाथ अबीरा॥
2. आज बिरज में होली रे रसिया,
होली रे रसिया, बरजोरी रे रसिया.
उड़त गुलाल लाल भए बादर,
केसर रंग में बोरी रे रसिया.
बाजत ताल मृदंग झांझ ढप,
और मजीरन की जोरी के रसिया.
फेंक गुलाल हाथ पिचकारी,
मारत भर भर पिचकारी रे रसिया.
इतने आए कुंवरे कन्हैया,
उतसों कुंवरि किसोरी रे रसिया।
नंदग्राम के जुरे हैं सखा सब,
बरसाने की गोरी रे रसिया.
दौड़ मिल फाग परस्पर खेलें,
कहि कहि होरी होरी रे रसिया.
3. गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग
केकर भीगे हो लाली चुनरिया?
केकर भीगे हो लाली चुनरिया?
केकरा भीगे ल सिर पाग?
केकरा भीगे ल सिर पाग?
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग.
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