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Antarctica Blood Fall : क्‍यों लाल है इस ग्‍लेशियर का पानी, जानें इसका रहस्य

राजस्थान(डिजिटल डेस्क)। Antarctica Blood Fall : हमारी पृथ्वी कई रहस्यों से भरी हुई है। वहीं कई रहस्य ऐसे है जिनके बारे में जानने और समझने के लिए वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे है। आज भी कई रहस्य ऐसे है जिन्हें...
01:45 PM Jan 02, 2024 IST | Juhi Jha

राजस्थान(डिजिटल डेस्क)। Antarctica Blood Fall : हमारी पृथ्वी कई रहस्यों से भरी हुई है। वहीं कई रहस्य ऐसे है जिनके बारे में जानने और समझने के लिए वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे है। आज भी कई रहस्य ऐसे है जिन्हें वैज्ञानिक भी सुलझा नहीं पाए है। आज हम आपको एक ऐसे ही जगह (Antarctica Blood Fall) के बारे में बताने जा रहे जहां पर खून का झरना बहता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि माइनस 7 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी झरने का पानी नहीं जमता। आइए जानते है इस झरने से जुड़े कुछ रहस्यों के बारे में:—

ब्लड्स फॉल

अंटार्कटिका महाद्वीप में वैसे तो कई जगह ऐसी है जो रहस्यमयी बनी हुई और वहां जाना किसी जोखिम से कम नहीं है। हम जिस झरने की बात कर रहे है वह पूर्वी अंटार्कटिका में स्थित टेलर ग्लेशियर हैं। इस झरने को ब्लड्स फॉल (Antarctica Blood Fall) के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले पूर्वी अंटार्कटिका में विक्टोरिया लैंड में वैज्ञानिकों को खून का झरना दिखाई दिया था। वहीं इसकी सबसे पहले खोज 1911 में ब्रिटिश वैज्ञानिक थॉमस ग्रिफिथ टॉयलर ने की थी। इसके बाद ही इस ग्‍लेशियर का नाम थॉमस ग्रिफिथ टेलर के नाम पर रखा गया है।

ब्लड्स फॉल का रहस्य

अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम ने नवंबर 2006 और नवंबर 2018 के अंत में टेलर ग्लेशियर (Taylor Glacier) में से कुछ सैम्पल लिए थे और इसका विश्लेषण किया। वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए विश्लेषण में पता चला कि इस ग्लेशियर के पानी में छोटे नैनोस्फेयर है जो आयरन से परिपूर्ण है और टेलर ग्लेशियर के पिघले पानी में आयरन के कण अत्यधिक मात्रा में हैं। इन छोटे से नैनोस्फेयर में लोहे के साथ-साथ कैल्शियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन और सोडियम भी है। जो ग्लेशियर से निकलकर ऑक्सीजन, सूर्य की किरणों और गर्मी के संपर्क में आने से पानी को लाल कर देती है और इसी वजह से इस पानी का रंग खून यानी लाल रंग जैसा दिखता है।

वैज्ञानिकों ने किए हैरान करने वाले खुलासे

वैज्ञानिकों को 1960 के दौरान इस झरने में लौह नमक (Iron Salts) पता चला था। लौह नमक से तात्पर्य फेरिक हाइड्रोक्साइड है। इसके बाद 2009 में एक अध्ययन में पता चला कि ग्लेशियर के नीचे सूक्ष्मजीव है। जो इस ग्लेशियर के नीचे 15 से 40 लाख साल से रह रहे है और इसकी वजह से ग्लेशियर से खून का झरना निकल रहा है। इस बड़े से अंटार्कटिका का यह छोटा सा भाग है जिसे वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया। वैज्ञानिकों को एक इलाके से दूसरे इलाके में ही खोज करने में कई दशकों का समय लग गया। इन क्षेत्रों में आना जाना काफी मुश्किल और चुनौतिपूर्ण है। वहीं इस जगह पर तापमान माइनस 7 डिग्री सेल्सियस रहता है। इस पानी में नमक की मात्रा ज्यादा होने की वजह से ग्लेश्यिर का पानी नहीं जमता और लगातार बहता रहता है।

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