Sikandar Movie Review: बड़े स्टार, बड़े डायलॉग, बड़ी लड़ाई लेकिन कोई लॉजिक नहीं, इस बार 'भाई जान' ना दिल में आए ना समझ में
Sikandar Review: बॉलीवुड की दुनिया में फिल्में तीन तरह की होती हैं – अच्छी फिल्में, बुरी फिल्में और सलमान खान की फिल्में। लेकिन ‘सिकंदर’ देखने के बाद लग रहा है कि भाईजान की फिल्मों की एक चौथी कैटिगरी भी बन गई है – वो फिल्में जो टाइम और पैसा दोनों की बर्बादी हैं।
मशहूर क्रिटिक मयंक शेखर ने सालों पहले कहा था कि "सलमान खान की फिल्म का रिव्यू करना अंडरवियर प्रेस करने जैसा है – कोई फर्क नहीं पड़ता"। लेकिन अब जमाना बदल चुका है। अब फिल्म की चड्डी से लेकर बनियान यानी स्क्रिप्ट से लेकर स्क्रीनप्ले सब मायने रखता है।
कहानी – घिसी-पिटी स्क्रिप्ट, कुछ नया नहीं
फिल्म में सलमान खान राजकोट के राजा सिकंदर के रोल में हैं और रश्मिका मंदाना उनकी रानी बनी हैं। सिकंदर एक फ्लाइट में एक बड़े नेता के बिगड़ैल बेटे को पीट देता है, क्योंकि वो एक महिला के साथ बदतमीजी करता है। इसके बाद नेता बदला लेने के लिए सिकंदर के पीछे लग जाता है।
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इसके बाद कहानी एक फॉर्मूले की तरह चलती है – रश्मिका का किरदार मर जाता है, उनके अंगदान से तीन लोगों की जान बचती है और फिर सिकंदर को उन तीनों को बचाना पड़ता है। इस चक्कर में गुंडे पिटते हैं, गाड़ियां उड़ती हैं और सलमान भाई हर सीन में सुपरहीरो वाले लुक में नजर आते हैं। लेकिन असली सवाल यह है – क्या फिल्म देख कर मजा आया? जवाब है – बिल्कुल नहीं!
कैसी है फिल्म?
अगर आप साउथ इंडियन फिल्मों के मसालेदार रीमेक्स के आदी हैं, तो ‘सिकंदर’ कुछ अलग नहीं लगेगी। फिल्म पुराने ढर्रे पर बनी है –
- बड़ा स्टार, बड़े डायलॉग, बड़ी लड़ाई लेकिन कोई लॉजिक नहीं।
- सलमान खान का रोल एक राजा का है लेकिन उनके पास इंटेलिजेंस नहीं है, पुलिसवाले ही उन्हें बता रहे हैं कि उनपर खतरा है!
- शरमन जोशी का किरदार फिल्म में है लेकिन क्यों है, ये डायरेक्टर को भी नहीं पता।
अब ये तो मानना पड़ेगा कि आज के दर्शक ओटीटी पर बेहतरीन कंटेंट देख रहे हैं। ऐसे में इस तरह की घिसी-पिटी फिल्में किसी को भी बोर कर सकती हैं। अगर यह फिल्म 10 साल पहले आती, तो शायद हिट हो जाती, लेकिन अब नहीं!
सलमान खान की आलसी परफॉर्मेंस
फिल्म में सलमान खान का परफॉर्मेंस ऐसा लगता है जैसे वो एक्टिंग पर एहसान कर रहे हों। एक राजा के रोल में न तो उनमें रॉयल्टी नजर आती है, न ही कोई खास एटीट्यूड। कई जगह तो वो इतने सुस्त लगते हैं कि ऐसा लगता है जैसे वो जबरदस्ती कैमरे के सामने खड़े किए गए हों।
- रश्मिका मंदाना – हर बड़ी फिल्म में बस फिट कर दी जाती हैं। उनके किरदार में गहराई नहीं है।
- काजल अग्रवाल – ठीक-ठाक रोल लेकिन कुछ खास नहीं।
- सत्यराज – विलेन के रोल में कोई नया पैनापन नहीं।
- शरमन जोशी – फिल्म में क्यों हैं, ये एक मिस्ट्री है!
- प्रतीक बब्बर – उनका किरदार भी ऐसा ही है, बस स्क्रीन टाइम बढ़ाने के लिए डाला गया है।
- जतिन सरना (टैक्सी ड्राइवर के रोल में) – फिल्म में सबसे शानदार काम किया।
- अंजिनी धवन – कुछ खास नहीं कर पाईं।
- संजय कपूर – ठीक-ठाक पर उनकी जगह कोई और भी होता तो फर्क नहीं पड़ता।
ए.आर. मुरुगदॉस का फ्लॉप शो
गजनी जैसी फिल्म देने वाले ए.आर. मुरुगदॉस ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है और उनका दावा था कि यह गजनी से बेहतर होगी। लेकिन फिल्म देखकर हंसी आती है कि उन्होंने ऐसा कैसे कह दिया?
डायरेक्टर ने बस सलमान खान को एक्शन और रोमांस करवाने पर फोकस किया, लेकिन एक ठोस कहानी, सही स्क्रीनप्ले और अच्छे इमोशन्स को पूरी तरह से इग्नोर कर दिया। फिल्म में कई जगह लॉजिक की इतनी धज्जियां उड़ती हैं कि दर्शकों को हंसी आ जाती है।
प्रीतम का सबसे कमजोर काम?
फिल्म का म्यूजिक प्रीतम ने दिया है, लेकिन इसे सुनकर यकीन नहीं होता। प्रीतम के गाने आमतौर पर दिल को छू जाते हैं, लेकिन इस फिल्म में एक भी गाना ऐसा नहीं है जो यादगार हो। बैकग्राउंड स्कोर संतोष नारायणन ने दिया है, लेकिन वो भी फिल्म के मूड से मेल नहीं खाता।
कुल मिलाकर ये फिल्म टाइम और पैसे की बर्बादी है!
अगर आप सलमान खान के डाई-हार्ड फैन हैं और सिर्फ उन्हें स्क्रीन पर देखने के लिए थिएटर जाने को तैयार हैं, तो ठीक है। लेकिन अगर आप एक अच्छी फिल्म देखने की सोच रहे हैं, तो यह फिल्म पूरी तरह से निराश करेगी।
भाईजान की फिल्में हमेशा स्टारडम के दम पर चलती हैं, लेकिन अब जमाना बदल चुका है। कहानी, स्क्रीनप्ले और परफॉर्मेंस भी उतने ही जरूरी हैं। अगर सलमान खान और उनके डायरेक्टर्स इसे नहीं समझते, तो आने वाले समय में उनकी फिल्मों का यही हाल होगा।