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International Women’s Day: जानें कौन थीं पंचकन्याएं, जिन्होंने कभी नहीं छोड़ा धर्म का साथ, नाम लेने से ही कट जाते हैं पाप!

हिंदू धर्म की कथाओं में पंचकन्याओं का भी जिक्र मिलता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनका नाम लेने से ही सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।
03:57 PM Mar 08, 2025 IST | Pooja

Panchakanya Ki Kahani: महिलाओं को हिंदू धर्म में देवियों की तरह पूजा जाता है। आपने सुना भी होगा कि 'जहां नारियों को पूजा जाता है, वहीं देवताओं का वास होता है।' हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि अगर देवी-देवताओं को पूजा जाए, तो आपके जीवन के सारे दुख-दर्द और संकट व पाप दूर हो जाते हैं। ऐसे में लोग खूब पूजा-पाठ करते हैं। वैसे, तो हिंदु धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता माने गए हैं, जिनमें से हर एक का नाम शायद ही किसी को पता हो, ऐसे में उन सभी की पूजा करना भी संभव नहीं है।

ऐसे में हम यहां आपको ऐसी पंचकन्याओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका वर्णन हिन्दू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं में मिलता है। इनके बारे में कहा जाता है कि मनुष्य द्वारा पंचकन्या का नाम लेने मात्र से उनके जीवन के सारे पाप दूर हो जाते हैं। तो चलिए आपको पंचकन्या के बारे में बताते हैं।

कौन हैं पचंकन्याएं?

बता दें कि ये पंचकन्याएं कोई और नहीं बल्कि अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी हैं। ये सभी वे महिलाएं हैं, जिनका पूरा जीवन एक तपस्या में बीत गया। इन सभी ने अपने जीवन में काफी यातनाएं सहीं, लेकिन फिर भी कर्तव्य और धर्म के मार्ग पर चलते हुए मिसाल कायम की। उनके जीवन की कहानी काफी प्रेरणादायक भी है। तो चलिए आपको इनके बारे में बताते हैं।

अहिल्या

सबसे पहले बात करते हैं अहिल्या माता की, जो गौतम ऋषि की पत्नी थीं। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें स्वयं ब्रह्मा जी ने बनाया था। वह बेहद सुंदर थीं। उनकी सुंदरता देख इंद्रदेव भी उनपर मोहित हो गए थे। कथा में ऐसा कहा गया है कि एक बार जब गौतम ऋषि अपनी कुटिया में नहीं थे, तब देवराज इंद्र ने उनका रूप धारण कर अहिल्या के साथ संबंध बनाए थे। इसके बाद जब वह कुटिया से निकलते हैं, तो उन्हें गौतम ऋषि उन्हें अपने वेश में देख लेते हैं। वह सब कुछ समझ जाते हैं और फिर अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप देते हैं। हालांकि, जब अहिल्या सारी बात बताती हैं, तो गौतम ऋषि कहते हैं कि श्राप तो वापस नहीं हो सकता, लेकिन इसका एक उपाय यही है कि अगर भगवान राम उन्हें अपने पैरों से छुएंगे, तो अहिल्या वापस अपने पहले रूप में आ जाएंगी। आगे की कहानी तो सब जानते ही होंगे।

देवी तारा

देवी तारा किष्किंधा के राजा बालि की पत्नी थीं, जिनका पंच कन्याओं में दूसरा स्थान है। तारा समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुई थीं। तारा का विवाह बालि संग हुआ था। बालि और सुग्रीव की कहानी हमें 'रामायण' में तब देखने को मिलती है, जब भगवान राम माता सीता के हरण के बाद उनकी खोज में निकलते हैं। तो उनकी मुलाकात सुग्रीव से होती है, जिन्हें उनके भाई व वानर राज बालि ने राज्य से निकाल दिया था। तब सुग्रीव ने राम की मदद से बालि का वध किया था। तब मृत्यु शैय्या पर लेटे बालि ने सुग्रीव को हर फैसला तारा से लेने को कहा था। दरअसल, सुग्रीव से युद्ध करने से पहले तारा ने बालि को रोका था, तो बालि को लगा था कि वह उनके भाई सुग्रीव का पक्ष ले रही हैं और तारा का त्याग कर सुग्रीव संग युद्ध करने चले गए थे, जिसके बाद उन्हें राम के हाथों सद्गति प्राप्त हुई।

रावण की पत्नी मंदोदरी

रावण की पत्नी मंदोदरी स्वर्ग की अप्सरा हेमा की बेटी थीं, जो काफी समझदार थीं। उन्होंने कई बार अपने पति रावण को समझाया कि वह सीता को लौटा दें और भगवान राम से क्षमा मांग लें। हालांकि, रावण ने मंदोदरी का कहा नहीं माना था और युद्ध में राम के हाथों सद्गति प्राप्त की थी।

पांडवों की माता कुंती

पांडवों की माता कुंती भी पंचकन्याओं में से एक हैं, जिनका विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार पांडु से हुआ था। पांडु का स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता था, जिसकी वजह से उनकी कोई संतान नहीं थी। ऐसे में माता कुंती ने ऋषि दुर्वासा से मिले एक आशीर्वाद से पांच बेटों को पाया था। उन्हें यह आशीर्वाद मिला था कि वह जिस देवता का स्मरण करेंगी, उन्हें उन्हीं के अंश से एक बेटा प्राप्त होगा। ऐसे में कुंती को देवताओं की कृपा से 6 पुत्र प्राप्त हुए, जिनमें से कर्ण सबसे बड़े थे, जो कुंती को विवाह से पहले ही प्राप्त हुए थे। ऐसे में उन्होंने कर्ण का त्याग कर दिया था। जबकि विवाह के बाद प्राप्त हुए उनके सभी पांचों पुत्र पांडव के नाम से जाने गए।

द्रौपदी

पांडवों की पत्नी द्रौपदी भी पंचकन्याओं में से एक हैं, जो भले ही पांच पतियों की पत्नी बनकर रहीं, फिर भी उनका चरित्र और व्यक्तित्व बहुत मजबूत था। ऐसा कहा जाता है कि द्रौपदी को वेदव्यास से वरदान प्राप्त था कि पांच पतियों की पत्नी होने के बाद भी उनका कौमार्य सदैव कायम रहेगा। महाभारत काल में द्रौपदी का दुशासन द्वारा चीर हरण किया गया था, जिसके बाद भगवान कृष्ण ने उनकी सहायता की थी।

दरअसल, द्रौपदी को उनके पति युधिष्ठिर कौरवों संग जुआ खेलते हुए हार गए थे, जिसके बाद चीर हरण हुआ। हालांकि, इतना अपमान होने के बाद भी उन्होंने हमेशा अपने पतियों का साथ दिया।

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