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Vat Savitri Vrat 2025: मई में इस दिन रखा जाएगा वट सावित्री व्रत, जानें तिथि और पूजा विधि

सावित्री की निष्ठा, धैर्य और पतिव्रता धर्म के कारण सत्यवान को नया जीवन मिला। तब से यह व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है।
12:18 PM Apr 11, 2025 IST | Preeti Mishra

Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत एक पवित्र व्रत है जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और खुशहाली के लिए रखती हैं। ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाने वाले इस व्रत में महिलाएं पवित्र बरगद के पेड़ (वट वृक्ष) की पूजा करती हैं। इस दिन (Vat Savitri Vrat 2025) महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों ओर धागे बांधती हैं, फल, फूल और जल चढाती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। यह व्रत प्रेम, निष्ठा और विश्वास की शक्ति का प्रतीक है और इसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में मनाया जाता है।

कब है इस वर्ष वट सावित्री पूजा?

वट सावित्री व्रत सोमवार, 26 मई को रखा जाएगा।

अमावस्या तिथि आरंभ - 26 मई 2025 को 12:11 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त - 27 मई 2025 को 08:31 बजे

वट सावित्री व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है, राजा अश्वपत नामक एक राजा था। उसकी पत्नी का नाम मालवती था। दोनों संतान प्राप्ति के लिए वर्षों तक व्रत और तप करते रहे। अंततः उन्हें सावित्री नाम की एक तेजस्वी और सुंदर कन्या प्राप्त हुई। सावित्री बहुत ही बुद्धिमान और धर्मपरायण थी।

जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो उसने स्वयं सत्यवान नामक एक वनवासी राजकुमार को पति रूप में चुना। सत्यवान एक धर्मात्मा और सत्यप्रिय युवक था, लेकिन उसे एक शाप प्राप्त था कि वह विवाह के एक वर्ष बाद ही मृत्यु को प्राप्त होगा।

सावित्री को यह बात ज्ञात होने पर भी उसने सत्यवान से विवाह किया और अपने पतिव्रता धर्म पर अडिग रहने का संकल्प लिया।

सत्यवान की मृत्यु और यमराज का आगमन

एक दिन सत्यवान वन में लकड़ी काटने गया। सावित्री भी उसके साथ गई। अचानक सत्यवान के सिर में दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में गिर पड़ा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई। तभी यमराज वहां प्रकट हुए और सत्यवान का प्राण ले जाने लगे। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपनी बुद्धिमानी और धर्म से उन्हें प्रभावित किया। यमराज ने सावित्री को तीन वरदान मांगने को कहा—लेकिन सत्यवान का जीवन छोड़कर।

सावित्री ने पहला वर मांगा कि उसके ससुर का राज्य उन्हें वापस मिले। दूसरा वर मांगा कि उसकी सास-ससुर नेत्रहीन हैं, उन्हें दृष्टि प्राप्त हो। तीसरे वर में उसने संतान प्राप्ति का वर मांगा। यमराज ने तीनों वरदान दे दिए, लेकिन तीसरे वरदान ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया—क्योंकि संतान की प्राप्ति तभी संभव है जब उसका पति जीवित हो। अपनी प्रतिज्ञा निभाते हुए, यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।

व्रत की महिमा

सावित्री की निष्ठा, धैर्य और पतिव्रता धर्म के कारण सत्यवान को नया जीवन मिला। तब से यह व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन मनाया जाता है। महिलाएं बरगद (वट वृक्ष) की पूजा करती हैं, उसकी परिक्रमा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं।

वट सावित्री पूजा विधि

आमतौर पर सूर्यास्त के बाद या स्थानीय रीति-रिवाजों के आधार पर पूजा अनुष्ठान पूरा करने के बाद व्रत तोड़ा जाता है, अक्सर हल्के सात्विक भोजन के साथ।

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