नेशनलराजनीतिमनोरंजनखेलहेल्थ & लाइफ स्टाइलधर्म भक्तिटेक्नोलॉजीइंटरनेशनलबिजनेसचुनाव

इस शहर में होलिका को दहन को लेकर है अनूठी परंपरा, बरसों से नहीं हुआ होलिका दहन

पूरे भारतवर्ष में होली काफी धूमधाम से मनाई जाती है। होली से एक दिन पहले होलिका वाहन भी किया जाता है।
02:10 PM Mar 11, 2025 IST | Jyoti Patel
Holika Dahan 2025

Holika Dahan 2025: पूरे भारतवर्ष में होली काफी धूमधाम से मनाई जाती है। होली से एक दिन पहले होलिका वाहन भी किया जाता है। भारत विवधताओं का देश है, इसलिए हर जगह अलग -अलग रीति-रिवाज के साथ त्योहार मनाए जातें हैं। हर राज्य और शहर की अपनी परंपरा होती है। आज हम आपको एक ऐसे ही शहर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहाँ आज तक होलिका दहन नहीं हुआ है। हम बात कर रहें हैं, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के बरसी गांव की, जहाँ पिछले 6000 सालों से होलिका दहन नहीं किया गया है। गांव में स्थित बाबा भोलेनाथ के प्राचीन मंदिर में भगवान शिव के निवास होने के कारण यह परंपरा चलती आ रही है। आइये जानतें हैं, क्या है इससे जुडी पूरी कहानी।

 

क्या है इसके पीछे की मान्यता ?

आपको जानकर हैरानी होगी की, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित बरसी गांव में, 6000 सालों से गांव के लोगों ने आजतक होलिका दहन नहीं किया। जिसके कारण उन्हें होली पूजने दूसरे गांव जाना पड़ता है। यहां के लोगों का कहना है कि गांव में स्थित महाभारत (Holika Dahan 2025) कालीन बाबा भोलेनाथ के मंदिर में देवो के देव महादेव साक्षात विराजमान हैं और वो विचरण करते रहते हैं। होलिका दहन करने जमीन गरम हो जाती है जिसके कारण महादेव के पांव जल सकतें हैं, इसलिए गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता।

कहा है भोलेबाबा का मंदिर

महाभारत काल से स्थापित बाबा भोलेनाथ का ये मंदिर सहारनपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर बरसी गांव में स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान इस मंदिर को दुर्योधन ने रातों रात बनाया था। सुबह जब इस मंदिर को पांडु पुत्र भीम ने देखा तो उन्होंने अपने गदा से इस मंदिर का मुख्य दरवाजा घुमा दिया था। इस वजह से पूरे देश में यह एकमात्र मंदिर है, जिसको जब भीम ने अपने गदा से घुमाया तो ये पश्चिम मुखी हो गया था।

कैसे पड़ा गांव का नाम?

इस गांव के नाम के साथ भी एक दिलचस्प कहानी जुडी है। इस मंदिर के अंदर स्वयंभू शिवलिंग है, जिसके दर्शनों के लिए पूरे भारत से लोग शिवरात्रि और अन्य आयोजनों पर पहुंचते हैं। महाभारत के दौरान जब भगवान श्री कृष्ण इस जगह आए तो यहां की सुंदरता देखकर उन्होंने इस गांव की तुलना बृज से भी की थी, जिसके बाद इस तरह इस गांव का नाम बरसी पड़ा था।

6 हजार सालों चली आ रही है परंपरा

गांव के निवासी अनिल गिरी और रवि सैनी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि करीब 5 या 6 हजार सालों से इस गांव में होलिका दहन नहीं हुआ। इस गांव के लोगों को होलिका पूजन और होलिका दहन के लिए नजदीक के ही दूसरे गांव जाना पड़ता है। गांव के लोगों का कहना है कि हमारे गांव के इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ साक्षात निवास करते हैं और वो विचरण भी करते हैं। जिसके चलते भगवान के पाँव जल जाने के डर से आजतक गांव में होलिका दहन नहीं किया गया है। गांव के लोगों का कहना है कि ये परंपरा आगे भी ठीक इसी तरह जारी रहेगी.

यह भी पढ़ें:  Kab Hai Holi: 13 या 14 मार्च, कब है होली? जानिए सही तिथि

 

Tags :
Ancient traditionBaba Bholenath TempleHoli traditionHolika Dahanlord shivaSaharanpur villageप्राचीन परंपराबाबा भोलेनाथ मंदिभगवान शिवसहारनपुर गांवहोलिका दहनहोली परंपरा

ट्रेंडिंग खबरें

Next Article