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Shattila Ekadashi 2024: 6 फरवरी मनाई जाएगी षटतिला एकादशी, जानिए एकादशी व्रत कथा

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Shattila Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी (Shattila Ekadashi 2024) को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस माह 6 फरवरी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा।पंचांग के अनुसार...
07:43 PM Feb 03, 2024 IST | Juhi Jha

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Shattila Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी (Shattila Ekadashi 2024) को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस माह 6 फरवरी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा।पंचांग के अनुसार षटतिला की तिथि 5 फरवरी को शाम 05 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर 6 फरवरी को शाम 04 बजकर 07 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार एकादशी का व्रत 6 फरवरी को रखा जाएगा। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की विधिवत रूप से पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म में षटतिला एकादशी का खास महत्व बताया गया है। यह साल का वह खास दिन जिसमें तिल का खास उपयोग किया जाता है। इस एकादशी को 6 तिल वाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तिल दान करने से मनुष्य को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

श्रीकृष्ण ने बताया था षटतिला एकादशी का महत्व (Shattila Ekadashi 2024) :- 

 

 

हिंदू ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2024)  का महत्व बताया था। उन्होंने युधिष्ठिर को इसका महत्व बताते हुए कहा कि माघ मास आने वाली एकादशी 'षटतिला' या 'पापहारिणी' के नाम से विख्यात है। यह एकादशी सभी पापों को नष्ट करती है। इस दिन तिल से बने व्यंजनों और तिल का दान करना स्वर्ण दान करने के समान माना जाता है। पदमपुराण में भी वर्णन किया गया है कि षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से मनुष्यों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। जितना पुण्य कन्यादान,तपस्या और दान करने से मिलता है उससे ​अधिक फल षटतिला एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है।

षटतिला एकादशी व्रत कथा

 

 

एक बार भगवान विष्णु से नारद जी ने षटतिला एकादशी की व्रत विधि और महत्व के बारे में पूछा । तब भगवान विष्णु ने षटतिला एकादशी के महत्व समझाने के लिए एकादशी की कथा नारद जी को सुनाई। हिंदू ग्रंथों में षटतिला एकादशी से जुड़े कई कथाओं का वर्णन किया गया है। लेकिन इस कथा का खास महत्व है। इस कथा के अनुसार एक नगर में ब्राह्मण दंपत्ति रहा करते ​थे। एक दिन ब्राह्मण की मृत्यु हो गई और पति के मृत्यु के बाद विधवा ब्राह्मणी भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति में अपना सारा समय व्यतीत करने लगी। ब्राह्मणी हर मास में एकादशी का व्रत किया करती थी। ले​किन वह पूजन के दौरान किसी भी प्रकार का दान नहीं करती थी।

ब्राह्मणी की भक्ति और कठोर तपस्या से विष्णु भगवान प्रसन्न हो गए। एक दिन विष्णु भगवान साधु के रूप में उस विधवा ब्राह्मणी के घर पर भिक्षा मांगने के लिए आए। ब्राह्मणी ने साधु को अन्न ना देकर पिंड दान कर दिया और साधु के रूप में ​भगवान विष्णु उस पिंड के साथ अपने बैकुंठ धाम लौट आए। इसके बाद समय गुजरता गया और एक दिन उस ब्राह्मणी की भी मृत्यु हो गई। एकादशी के व्रत की वजह से उस ब्राह्मणी को बैकुंठ धाम प्राप्त हुआ।

 

 

वहां पर उसे एक झोपड़ी मिली जहां पर आम का पेड़ लगा हुआ था। लेकिन वह झोपड़ी खाली थी। तब ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से पूछा कि पूरे जीवन व्रत और पूजा करने के बाद मुझे बैकुंठ में स्थान तो मिल गया लेकिन मेरी झोपड़ी खाली क्यों है? इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने अन्न दान नहीं किया। अपने पुण्यों की वजह से तुम्हें बैकुंठ में स्थान तो मिल गया लेकिन अ​न्न से वंचित रह गई। तब ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से इसका उपाय पूछा।

तब उन्होंने कहा कि जब तुम्हारे पास देव कन्याएं आए तो उनसे षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi 2024) और विधि के बारे में पूछना जब एक दिन देव कन्याएं आई तो ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी व्रत और उसकी विधि के बारे में पूछा। फिर जब माघ माह में षटतिला एकादशी का व्रत आया तो ब्राह्मणी ने विधि विधान से व्रत रखा और पूजा की। इसके बाद पूरी रात जागरण किया। इस व्रत को करने से उनकी झोपड़ी अन्न और धन दोनों से भर गई। इस वजह से षटतिला एकादशी के दिन दान का विशेष महत्व माना जाता है।

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