शनिदेव महादशा: 5 साल की उम्र तक नहीं होता शनि का प्रभाव, यह है शनैचर कहलाने की वजह
Shani Mahadasha: महर्षि दधीचि के बलिदान का यह प्रसंग काफी मार्मिक है। जब उनका मांसपिंड श्मशान में जलाया जा रहा था, उनकी पत्नी अपने पति के वियोग को सहन नहीं कर पाईं और पास में स्थित विशाल पीपल के पेड़ के कोटर में अपने तीन साल (Shani Mahadasha) के बेटे को छोड़ स्वयं चिता में बैठकर सती हो गई।
इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी दोनों ने बलिदान दे दिया, लेकिन उनका पुत्र भूख और प्यास से तड़पने लगा। उसकी रक्षा केवल पीपल के कोटर में गिरे फलों और पत्तों से हो रही थी। समय बीतने के साथ बालक ने पीपल के पत्तों और फलों को खाकर खुद को जीवित रखा। एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजर रहे थे। उनकी नजर उस बालक पर पड़ी और उसका परिचय जानने के लिए उससे बात की।
नारद को हुआ आभास
आचार्य पं. प्रमोद पांडेय बताते हैं कि नारद के प्रश्नों के उत्तर में बालक ने अपने माता-पिता के बारे में अनभिज्ञता जताई। तब नारद ने ध्यान करके उसे बताया कि वह महान दानी महर्षि दधीचि का पुत्र है, जिनकी अस्थियों से वज्र बनाकर देवताओं ने असुरों को पराजित किया था। बालक ने अपने पिता की अकाल मौत की वजह पूछी। तब नारद मुनि ने बताया कि महर्षि दधीचि की मृत्यु शनिदेव की महादशा (Shani Mahadasha) की वजह से हुई थी। इसी वजह से बालक की विपत्तियां भी शनिदेव की महादशा के परिणामस्वरूप थीं।
आचार्य पं. प्रमोद पांडेय के अनुसार, नारद ने उसे दीक्षा देकर उनका नाम पिप्पलाद रखा, क्योंकि वह पीपल के पेड़ के पत्तों और फलों पर जीवित रहा था। नारद के जाने के बाद, पिप्पलाद ने ब्रम्ह्रा जी की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे अद्वितीय शक्तियां हासिल कीं।
ब्रम्ह्रा जी से मिला आशीर्वाद
आचार्य पं. प्रमोद पांडेय ने बताया कि जब ब्रह्रा जी ने वरदान मांगने को कहा, तो पिप्पलाद ने किसी भी वस्तु को अपनी दृष्टि मात्र से जलाने की शक्ति मांगी। इस शक्ति का प्रयोग करते हुए पिप्पलाद ने शनिदेव को अपने सामने बुलाया और उन्हें जलाने का प्रयास किया। शनिदेव जलने लगे तो देवताओं की कोशिशों के बावजूद भी कोई उन्हें नहीं बचा सका। इसके बाद सूर्यदेव की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने बीच-बचाव किया और पिप्पलाद से शनिदेव को छोड़ने की विनती की। इसके बदले पिप्पलाद ने दो वरदान मांगे। पहला वरदान यह कि पांच साल की उम्र तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा। इससे कोई और बालक पिप्पलाद की तरह अनाथ न हो।
यह था दूसरा वरदान
आचार्य पं. प्रमोद पांडेय ने बताया कि दूसरा वरदान यह था कि जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा, उस पर शनि की महादशा का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। ब्रम्ह्रा जी ने तथास्तु कहकर वरदान दिया। इसके बाद पिप्पलाद ने शनिदेव को मुक्त किया। लेकिन, उन्होंने शनिदेव के पैरों पर आघात किया, जिससे शनिदेव धीरे चलने लगे और तभी से शनैश्चर कहलाने लगे। इस घटना के बाद से ही शनिदेव की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का धार्मिक महत्व बन गया। पिप्पलाद ने आगे चलकर प्रश्न उपनिषद की रचना की, जो आज भी ज्ञान का एक अद्वितीय स्त्रोत है।
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