आज है परशुराम जयंती, प्रदोष काल में होगी पूजा
Parshuram Jyanti 2025: आज परशुराम जयंती है। बता दें कि परशुराम जयंती भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। यह दिन भक्तों के लिए अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखती है। हिंदू परंपराओं के अनुसार, प्रदोष काल (रात ढलने से पहले का गोधूलि समय) के दौरान भगवान परशुराम की पूजा करना विशेष रूप से शुभ होता है। यह दिन सुरक्षा, शक्ति, ज्ञान और धार्मिक जीवन के लिए आशीर्वाद पाने के लिए अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
भगवान परशुराम कौन हैं?
भगवान परशुराम को विष्णु के दशावतारों (दस अवतारों) में योद्धा-संत के रूप में सम्मानित किया जाता है।
वे अपनी अद्वितीय शक्ति, कर्तव्य के प्रति अटूट समर्पण और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
ऋषि जमदग्नि और देवी रेणुका के घर जन्मे भगवान परशुराम को दिव्य शक्तियों और बेजोड़ युद्ध कौशल का आशीर्वाद प्राप्त था।
उन्हें शाश्वत चिरंजीवी के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे अमर हैं और पृथ्वी पर रहते हैं।
परशुराम को अक्सर एक परशु धारण किये हुए दिखाया जाता है, जो उन्हें स्वयं भगवान शिव ने दिया था, और जो बुराई के विनाश और ब्रह्मांडीय संतुलन की बहाली का प्रतीक है।
प्रदोष काल में पूजा करने का महत्व
प्रदोष काल सूर्यास्त से लगभग 1.5 घंटे पहले और बाद का समय होता है, जिसे हिंदू धर्म में धार्मिक गतिविधियों को करने के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय पूजा करने से कई गुना फल मिलता है और यह सुनिश्चित होता है कि भक्त की प्रार्थना अधिक प्रभावी ढंग से सुनी जाए।
पूजन विधि:
आज प्रदोष काल के दौरान विशेष पूजा करें।
भगवान परशुराम की मूर्ति या तस्वीर पर फूल, फल, धूप और चंदन का लेप चढ़ाएं।
आध्यात्मिक शक्ति और सुरक्षा के लिए "ओम परशुरामाय नमः" जैसे मंत्रों का जाप करें।
परशुराम के जीवन से जुड़ी कहानियाँ पढ़ें या सुनें, खासकर धर्म को बनाए रखने में उनकी भूमिका।
प्रदोष के दौरान पूजा करने से न केवल भगवान परशुराम प्रसन्न होते हैं, बल्कि भक्तों को साहस, सफलता और जीवन में बाधाओं को दूर करने की क्षमता भी मिलती है।
परशुराम जयंती पर किए जाने वाले अनुष्ठान
भक्तों को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए, पवित्र स्नान करना चाहिए और स्वच्छ या नए कपड़े पहनने चाहिए।
भगवान परशुराम की मूर्ति या छवि को एक साफ वेदी पर रखा जाता है और फूलों और चंदन से सजाया जाता है।
देवता को फल, मिठाई, नारियल, तुलसी के पत्ते और घी के दीपक चढ़ाए जाते हैं।
भगवान परशुराम का नाम जपना, भक्ति गीत गाना और उनके गुणों का ध्यान करना पूजा का अनिवार्य हिस्सा है।
कई भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम की प्रार्थना के बाद ही इसे तोड़ते हैं। जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और दान वितरित करना भी अत्यधिक पुण्य माना जाता है।
परशुराम जयंती का आध्यात्मिक महत्व
भगवान परशुराम की पूजा करने से भक्तों को बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है और आंतरिक शक्ति मिलती है। परशुराम का जीवन सिखाता है कि न्याय और धर्म के लिए खड़ा होना सर्वोच्च गुण है। भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं के गुरु के रूप में, भगवान परशुराम दिव्य ज्ञान और युद्ध कौशल के स्रोत हैं। उनकी प्रार्थना पेशेवर, व्यक्तिगत और आध्यात्मिक पथ पर आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में मदद करती है। इस दिन भक्ति के माध्यम से, भक्त भगवान परशुराम की तरह साहस, धैर्य, भक्ति और धार्मिकता को अपनाने की आकांक्षा रखते हैं।
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