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पापमोचनी एकादशी 2025: किस दिन मनाई जा रही है पापमोचनी एकादशी? जानें व्रत पारण का मुहूर्त

हिंदू धर्म में, एकादशी को सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है
08:20 AM Mar 23, 2025 IST | Jyoti Patel
पापमोचनी एकादशी 2025

पापमोचनी एकादशी 2025: हिंदू धर्म में, एकादशी को सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों को उनके सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इस बार पापमोचनी एकादशी को लेकर लोग कंफ्यूज है आखिर किस दिन यह मनाई जायेगी। ऐसे में आज हम आपको बताएँगे व्रत का शुभ महूर्त और पारण के समय के बारे में...

किस दिन मनाई जाएगी एकादशी

पापमोचनी एकादशी 2025 की तारीख को लेकर कुछ लोगों में भ्रम है, क्योंकि पंचांग के अनुसार यह तिथि 25 और 26 मार्च दोनों दिन पड़ रही है। यहाँ स्पष्ट किया गया है। आपको बता दें, एकादशी तिथि 25 मार्च को सुबह 5:05 बजे शुरू होगी। यह तिथि 26 मार्च को सुबह 3:45 बजे समाप्त होगी। हिंदू पंचांग में उदया तिथि का विशेष महत्व होता है। इसलिए, अधिकांश लोग 25 मार्च, मंगलवार को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखेंगे।

व्रत पारण का समय

जो भक्त 25 मार्च को एकादशी का व्रत रखेंगे, वे 26 मार्च को व्रत का पारण करेंगे। पारण का समय 26 मार्च को दोपहर 01 बजकर 56 मिनट से शाम 04 बजकर 23 मिनट तक रहेगा। वहीं 26 मार्च को व्रत रखने वाले भक्त इसका पारण 27 मार्च को करेंगे।पारण का समय सुबह 6 बजकर 17 मिनट से लेकर 8 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।

पापमोचनी एकादशी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत से नेगेटिव एनर्जी दूर होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, पापमोचनी एकादशी का व्रत मोक्ष प्राप्ति का रास्ता है। इस व्रत को करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं।इसके साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी मिलता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

पापमोचनी एकादशी पूजन मंत्र

ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।

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