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Masik Shivratri Vrat Katha: कल रखा जाएगा मासिक शिवरात्रि का व्रत, जानिए व्रत कथा

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Masik Shivratri Vrat Katha: कल यानी 8 फरवरी को मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri Vrat Katha) का व्रत रखा जाएगा। यह इस साल की दूसरी मासिक शिवरात्रि है। यह दिन भगवान शिव के लिए बेहद खास माना जाता...
05:09 PM Feb 07, 2024 IST | Juhi Jha

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Masik Shivratri Vrat Katha: कल यानी 8 फरवरी को मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri Vrat Katha) का व्रत रखा जाएगा। यह इस साल की दूसरी मासिक शिवरात्रि है। यह दिन भगवान शिव के लिए बेहद खास माना जाता हैं। इस दिन भक्त भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा करते है और शिवलिंग की विधिवत रूप से पूजा करते है। मासिक शिवरात्रि हर माह चतुर्दशी तिथि के दिन मनाई जाती हैं।

मान्यताओं के अनुसार मासिक शिवरात्रि भगवान शिव को भी अत्यंत प्रिय है। क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार इस महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव आधी रात को शिवलिंग के रूप में उत्पन्न हुए थे। ऐसे में जो भी साधक इस दिन भगवान शिव की पूजा करता है और व्रत करता है उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा बनी रहती है। ऐसे में अगर आप भी मासिक शिवरात्रि का व्रत करते है तो इस आर्टिकल में दी गई कथा और पूजा नियमों के द्वारा अपना व्रत पूर्ण कर सकते है।

मासिक शिवरात्रि व्रत कथा (Masik Shivratri Vrat Katha) :-

 

पौराणिक ग्रंथों में मासिक शिवरात्रि की कई कथाओं का वर्णन किया गया है लेकिन आज हम आपको उन्हीं में से एक कथा के बारे में बताने जा रहे है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक शिकारी था जो पशुओं का शिकार कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था। शिकारी ने जरूरत के समय एक साहूकार से कुछ कर्ज लिया था लेकिन समय पर कर्ज चुका ना पाने की वजह से साहूकार ने शिव मठ में उसे बंदी बना दिया। उस दिन शिवरात्रि थी और उसी दौरान शिकारी ने शिव कथा सुनी। शाम को शिकारी ने साहूकार से कहा कि वह उसका कर्ज कल तक चुका देगा और यह उसका वादा है। बंधन से छूटकर शिकारी अपने काम पर चला गया।

रोज की तरह वह जंगल शिकार करने गया लेकिन भूख की वजह से उसका मन व्याकुल था।​ शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे पहुंचा और वहां पर बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लग गया। उस बेल पेड़ के नीचे एक शिवलिंग (Masik Shivratri Vrat Katha)  था जो बेलपत्र से ढका हुआ था। इस बात से अनजान शिकारी अपने काम में लगा रहा। पड़ाव बनाते हुए उसने जो टहनियां तोड़ी वह शि​वलिंग पर जाकर गिर गई। इस प्रकार पूरे दिन भूखे प्यासे रहने से उसका व्रत भी हो गया और भगवान शिव पर बेलपत्र भी चढ़ गया।

गर्भिणी मृगी ने शिकारी ने कही ये बात:-

 

 

रात का एक पहर बीतने के बाद शिकारी ने देखा कि एक मृगी तालाब के ​पास आई है। उसे देखते ही शिकारी ने तीर निकाल कर प्रत्यंचा खींचा तो उसी समय मृगी शिकारी से बोली की मैं गर्भवती हॅू और मैं जल्दी हीएक मृग को जन्म देने वाली हॅू। ऐसे में तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोंगे यह बात ठीक नहीं है। मृगी ने आगे कहा कि मैं अपने बच्चे को जन्म देते ही तुम्हारे पास आ जाउंगी तब तुम मुझे मार देना। यह सुन शिकारी ने अपना प्रत्यंचा हटा दिया और मृगी वहां से झाड़ियों में चली गई। प्रत्यंचा ढीली करते हुए शिकारी से अनायास ही बेलपत्र टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। ऐसे में शिकारी से अनजाने में ही पहले पहर का पूजन हो गया।

कुछ देर बाद शिकारी को एक और मृगी दिखी। तब मृगी ने विनम्र होकर शिकारी से कहा कि मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं मैं बस अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आती हूं। मृगी की बाते सुन शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस समय रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था और शिकारी के धनुष से लग कर बेलपत्र फिर से शिवलिंग पर ​जा गिरे। कुछ देर बाद वहां पर बच्चों के साथ एक और हिरणी नजर आई। शिकारी ने इस मौके का फायदा उठाया और उन पर निशाना साधने लगा।

तभी वह हिरणी ने कहा कि मैं अपने बच्चों को अपने पति के पास लौटा कर ​तुरंत तुम्हारे पास आती हॅू। हिरणी की बाते सुन शिकारी हंसा और कहा इससे पहले मैं दो बार अवसर खो चुका हॅू लेकिन अब नहीं। मेरे बच्चे घर पर भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। इस पर हिरणी ने कहा कि जैसे तुम्हे अपने बच्चों की ममता सता रही है वैसे मुझे भी यह बात सता रही है। मेरा विश्वास करो मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़ कर तुरंत तुम्हारे पास लौट आउंगी। उसकी बाते सुन उसने हिरणी को जाने दिया। ऐसे में शिकारी की आखिरी पहर की भी पूजा हो गई।

जब शिकारी को समझ आया पूरा घटनाक्रम

 

कुछ ही देर बाद वहां पर एक मृग आया और उसे देश शिकारी ने अपना धनुष उठाया और शिकार के लिए आगे बढ़ा। तभी मृग ने विनम्रता के साथ उसे कहा कि यदि तुमने मेरे तीनों पत्नियों और बच्चों को मार दियार है तो फिर मुझे भी मार दो। क्योंकि उनके बिना मेरा कोई नहीं है। लेकिन तुमने उन्हें नहीं मारा है तो मुझे जाने दो क्योंकि वह मेरा ही इंतजार कर रही होगी। यदि मैं उन्हें नहीं मिला तो वह सभी मर जाएंगे। उन सब से मिलने के बाद मैं तुम्हारे पास आ जाउंगा।

उस मृग की बात सुनते ही शिकारी को सारा घटनाक्रम समझ में आ गया और उसने मृग को सारी घटना बताई। तब मृग ने कहा कि मेरी ​तीनो पत्निया जिस प्रकार प्रण करके गई है वह अवश्य लौट आएंगी । वह सभी अपने वचनों की पक्की है। लेकिन यदि मेरी मृत्यु हो गई तो वह अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएगी। मैं मेरे पूरे परिवार के साथ शीघ्र ही वापिस आता हॅू लेकिन अभी मुझे जाने दो। शिकारी ने उस मृग को भी जाने दिया और अनजाने में ही उसकी शिव भगवान की पूजा पूरी हो गई।

 

 

शिकारी द्वारा भगवान शिव का उपवास, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने की वजह से उसका मन हिंसक से निर्मल और करूणा हृदय में बदल गया। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद मृग अपने पूरे परिवार के साथ​ शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। लेकिन जिस तरह से पशुओं ने प्रेमभाव, सत्यता दिखाई उसे देख शिकारी का मन ग्लानि से भर गया और उसने मृग के परिवार छोड़ दिया। इसके बाद वह शिकारी से हट कर सदा के लिए कोमल एवं दयालु व्यक्ति बन गया। दूसरे दिन प्रात: उसने किसी ओर से पैसे लेकर साहूकार के कर्ज उतारा और खुद मेहनत से काम करने लगा। शिकारी के मृत्यु के बाद शिवलोक और मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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