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Jwala Devi Temple: इस शक्ति पीठ में जलती रहती है अखंड ज्योत, यहां गिरी थी माता सती की जीभ

मुगल सम्राट अकबर ने एक बार ज्वालाओं को बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहे।
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Jwala Devi Temple

Jwala Devi Temple: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर भारत के सबसे प्रतिष्ठित शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर अनोखा है क्योंकि इसमें कोई मूर्ति नहीं है; इसके बजाय, इसकी पूजा ज़मीन से प्राकृतिक रूप से निकलने वाली अनन्त ज्वालाओं (Jwala Devi Temple) के लिए की जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र स्थल पर मां सती की जीभ गिरी थी, जो इसे शक्ति पूजा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाती है।

ज्वाला देवी मंदिर सिर्फ़ पूजा का स्थान नहीं है, बल्कि दिव्य ऊर्जा और आस्था का प्रतीक है। अखंड ज्योति देवी शक्ति की शाश्वत उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करती है, और मंदिर उन भक्तों को आकर्षित करता रहता है जो उनकी कृपा और सुरक्षा चाहते हैं। इस मंदिर (Jwala Devi Temple) की यात्रा को अत्यधिक शुभ माना जाता है, जो आध्यात्मिक ज्ञान, इच्छाओं की पूर्ति और दिव्य आशीर्वाद प्रदान करता है।

Jwala Devi Temple: इस शक्ति पीठ में जलती रहती है अखंड ज्योत, यहां गिरी थी माता सती की जीभ

ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास

ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास (Jwala Devi Temple History) प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण देवी दुर्गा के भक्त राजा भूमि चंद के आदेश पर किया गया था, जब उन्हें दिव्य ज्वालाओं के दर्शन हुए थे। इस मंदिर में कई ऐतिहासिक हस्तियों ने दर्शन किए और इसकी रक्षा की, जिनमें मुगल सम्राट अकबर भी शामिल हैं, जिन्होंने एक बार ज्वालाओं को बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहे। देवी की शक्ति को देखकर, उन्होंने एक स्वर्ण छत्र चढ़ाया, जो कि किंवदंती के अनुसार, एक घटिया धातु में बदल गया क्योंकि देवी ने उनकी भेंट स्वीकार नहीं की। इस मंदिर का उल्लेख महाभारत और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में भी मां ज्वाला देवी से आशीर्वाद लेने वाले भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा स्थल के रूप में किया गया है।

ज्वाला देवी मंदिर की परंपरा और मान्यताएं

अखंड ज्योति- ज्वाला देवी मंदिर की सबसे खास विशेषता है अखण्ड ज्योति, जो बिना किसी बाहरी ईंधन स्रोत के सदियों से जल रही है। इसे देवी ज्वाला देवी का दिव्य स्वरूप माना जाता है।
नवदुर्गा पूजा - यह मंदिर नवदुर्गा की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, और भक्तों का मानना ​​है कि इस मंदिर में आने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व - माना जाता है कि ज्वालाएं मंदिर के नीचे से निकलती हैं और उनके निरंतर जलने को एक दिव्य चमत्कार के रूप में देखा जाता है।
इच्छा पूर्ति- भक्त यहां इच्छा पूर्ति के लिए लाल चुनरी, नारियल, सिंदूर और घी चढ़ाते हैं।

Jwala Devi Temple: इस शक्ति पीठ में जलती रहती है अखंड ज्योत, यहां गिरी थी माता सती की जीभ

ज्वाला देवी मंदिर में विशेष पूजा और अनुष्ठान

मंगल आरती - सुबह की आरती जल्दी की जाती है, जो देवी को जगाने और दिन के लिए उनका आशीर्वाद लेने के लिए समर्पित है।
भोग आरती - यह आरती देवी को भोजन चढ़ाने से पहले की जाती है, जहां विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है और भक्तों में वितरित किया जाता है।
संध्या आरती - शाम की आरती बहुत भक्ति के साथ की जाती है, जहां अखंड ज्योति के सामने दीपक और कपूर जलाए जाते हैं।
शयन आरती - रात के लिए मंदिर के दरवाजे बंद करने से पहले दिन की अंतिम आरती की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस अनुष्ठान के बाद देवी आराम करती हैं।
लंगर- मंदिर में भूखे लोगों को भोजन कराने और सेवा के माध्यम से आशीर्वाद लेने की परंपरा का पालन करते हुए भक्तों को मुफ्त लंगर परोसा जाता है।

Jwala Devi Temple: इस शक्ति पीठ में जलती रहती है अखंड ज्योत, यहां गिरी थी माता सती की जीभ

नवरात्रि के दौरान होती है यहां भारी भीड़

नवरात्रि के दौरान ज्वाला देवी मंदिर (Jwala Devi Temple in Navratri) में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। लोग यहां ज्वाला देवी का आशीर्वाद लेने के लिए इकट्ठा होते हैं। नवरात्रि में यहां विशेष हवन और अखंड ज्योति पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ की जाती है। इस दौरान मंदिर को फूलों, रोशनी और झंडियों से खूबसूरती से सजाया जाता है। भक्त पवित्र ज्वालाओं को लाल चुनरी, नारियल, सिंदूर और घी चढ़ाते हैं, यह विश्वास करते हुए कि उनकी प्रार्थना पूरी होगी। नवदुर्गा पथ का पाठ किया जाता है, और भक्तों के लिए एक भव्य लंगर का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर का दौरा करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

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