Janasthan Shakti Peetha: देवी भ्रामरी को समर्पित है जनस्थान शक्ति पीठ, यहां गिरी थी मां सती की ठोड़ी
Janasthan Shakti Peetha: हिन्दू धर्म में शक्ति पीठों का बहुत महत्व है। भारतीय उपमहाद्वीप में 51 शक्ति पीठ हैं जिन्हे बहुत ही ज्यादा पूज्यनीय माना जाता है। नवरात्रि के दिनों में तो इन शक्ति पीठों (Janasthan Shakti Peetha) पर भक्तों का तांता लगा रहता है। हिंदू परंपरा के अनुसार, यह शक्तिपीठ उन 51 स्थानों में से एक है जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे, जब उनके पति शिव ने दुःख के कारण सती के शरीर को गोद में उठाकर तांडव किया था।
इन्ही 51 शक्ति पीठों में से एक पीठ है जनस्थान शक्ति पीठ। देवी भ्रामरी को समर्पित जनस्थान शक्ति पीठ, 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो महाराष्ट्र में नासिक के पास पंचवटी में स्थित है। माना जाता है कि यहां मां सती की "ठोड़ी" (Janasthan Shakti Peetha) गिरी थी।
जनस्थान शक्तिपीठ का महत्व
भ्रामरी मंदिर पंचवटी नामक स्थान पर स्थित है, जहां देवी सती की ठोड़ी के दोनों भाग गिरे थे। यहां की शक्ति 'भ्रामरी' है, और शिव 'विकृताक्ष' हैं। 'चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले'- जिसका अर्थ है कि यहां चिबुक शक्ति रूप में प्रकट हुई थी। इस मंदिर में शिखर नहीं है। सिंहासन पर नव-दुर्गा की मूर्तियां हैं, जिनमें से एक भद्रकाली की विशाल मूर्ति है। संस्कृत में मधुमक्खियों के लिए व्युत्पन्न ब्रह्मारी: काली मधुमक्खियों की देवी और माँ कालिका का प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं। मधुमक्खियों की "हृंग" ध्वनि देवी का बीज मंत्र या बीजाक्षर मंत्र है।
यहां भगवती देवी को भ्रामरी के रूप में तथा भगवान भोलेनाथ को विकृताक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। यहां नौ पहाड़ियों के चिह्न के रूप में नवदुर्गा की प्रतिमाएं हैं तथा उनके मध्य में भ्रामरी की ऊंची प्रतिमा स्थापित है।
कैसे पड़ा इसका नाम?
नौ छोटी पहाड़ियों के कारण इस स्थान को नव+शिख अर्थात नासिक कहा जाता है। नासिक की इन सभी नौ पहाड़ियों पर मां दुर्गा विराजमान हैं। उन नौ स्थानों में से एक स्थान पर मां भद्रकाली की पूर्व-परंपरागत प्रतिमा है। यह मूर्ति स्वयंभू है। भक्तों की अपील पर इस मंदिर का निर्माण सरदार गणपतराव पटवर्धन दीक्षित ने 1790 में करवाया था।
यवनों के विनाश के भय से मंदिर पर कलश स्थापित नहीं किया गया था। इसीलिए मंदिर में कोई शिखर नहीं है। पंच धातु से बनी मां भ्रामरी की सुंदर मूर्ति लगभग 38 सेंटीमीटर (15 इंच) ऊंची है और इसकी 18 भुजाओं में विभिन्न प्रकार के आयुध हैं।
मंदिर के पूजा एवं अनुष्ठान
देवी ब्रह्मारी की पूजा एवं आराधना यहां सप्तश्रृंगी के रूप में की जाती है, क्योंकि देवी के चारों ओर सात शिखर हैं। यहां कई वर्षों से अभिषेक की परंपरा चली आ रही है, जिसमें देवी को प्रतिदिन स्नान कराकर नए वस्त्र एवं बहुमूल्य श्रृंगार पहनाए जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि मंदिर के समीप ही 'प्राच्य विद्यापीठ' की स्थापना की गई है, जहां प्राचीन गुरु परंपरा आधारित वेद-वेदांग का अध्ययन होता है। मंदिर के आसपास स्थित 350 ब्राह्मणों के घरों से विद्यार्थी 'मधुकरी' लाते हैं। विद्यार्थी देवी की त्रि-पूजा की व्यवस्था भी करते हैं। पूजा-अर्चना, नैवेद्य, देवी पाठ, नंदादीप के लिए सामग्री-संग्रह का कार्य निकटतम प्रवासी ब्राह्मण परिवारों के घर से क्रमवार किया जा रहा है। नवरात्रि का पर्व शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक धूमधाम से मनाया जाता है।
यहां के त्योहार, मेले और धार्मिक आयोजन
नवरात्रि और दुर्गा पूजा यहां हर साल धूमधाम से मनाया जाने वाला पवित्र त्योहार। चैत्र त्योहार को सबसे पवित्र पर्वों में से एक माना जाता है जिसे यहां बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। चैत्र त्योहार, चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी (राम नवमी) से शुरू होता है और चैत्र पूर्णिमा पर समाप्त होता है। यहां नासिक में गोदावरी नदी के तट पर बारह साल में एक बार कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
कैसे पहुंचें इस शक्ति पीठ पर?
नासिक का ओजर हवाई अड्डा भारत के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे से भ्रामरी मंदिर तक सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध है। यह प्रसिद्ध शक्ति पीठ महाराष्ट्र में मध्य रेलवे के मुंबई-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है, जो नासिक रोड स्टेशन से लगभग 8 किमी दूर है। सड़क मार्ग से भी यहां आसानी से पह्नुचा जा सकता है। त्र्यंबकेश्वर बस स्टेशन भ्रामरी मंदिर से लगभग 3 किमी दूर है।
इस शक्ति पीठ की यात्रा यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय सर्दियों में होता है, यानी अक्टूबर से मार्च तक। आप शहर में एक सुखद वातावरण का आनंद ले सकते हैं। आकर्षक शहर में कई तरह की बाहरी गतिविधियां और मनमोहक दर्शनीय स्थल हैं।
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