Alvida ki Namaz: आज अदा होगी अलविदा की नमाज, रमजान का आखिरी जुम्मा होता है खास
Alvida ki Namaz: अलविदा जुम्मा या रमज़ान का आखिरी शुक्रवार इस्लाम में बहुत महत्व रखता है। इसे अपार आशीर्वाद और क्षमा का दिन माना जाता है, जो पाक महीने रमजान के अंतिम जुम्मा की प्रार्थना को चिह्नित करता है। मुसलमानों का मानना है कि अलविदा जुम्मा की नमाज़ (Alvida ki Namaz) अदा करने से सभी बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं और वे अल्लाह के करीब पहुंच जाते हैं।
यह गहन प्रार्थना, कुरान का पाठ और दया और मार्गदर्शन करने का समय है। इस दिन कई लोग दान (सदक़ा) भी करते हैं, उनका मानना है कि इस दिन अच्छे कामों का बहुत सवाब मिलता है। यह दिन ईद-उल-फ़ित्र (Alvida ki Namaz) के लिए तैयारी के रूप में कार्य करता है।
अलविदा की नमाज़ का इतिहास
अलविदा की नमाज़, या रमज़ान के आखिरी जुम्मा की नमाज़, सदियों से इस्लाम में अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व के दिन के रूप में मनाई जाती रही है। पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं में निहित, इसे पवित्र महीने के समाप्त होने से पहले क्षमा, दया और आशीर्वाद मांगने का क्षण माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से, मुसलमान मस्जिदों में बड़ी सभाओं में इकट्ठा होते हैं, दिल से प्रार्थना करते हैं, कुरान पढ़ते हैं और दान-पुण्य करते हैं। यह विशेष शुक्रवार की प्रार्थना ईद-उल-फ़ित्र की तैयारी करते हुए उपवास और भक्ति के महीने के लिए आभार का प्रतीक है। समय के साथ, यह दुनिया भर में इस्लामी संस्कृति में एक परंपरा बन गई है।
क्यों होती है अलविदा जुमे की नमाज़ खास?
इस्लाम में अलविदा जुमे की नमाज (Alvida ki Namaz) का बहुत महत्व होता है। ऐसी माना जाता है कि जो लोग हज की यात्रा के लिए नहीं जा पाते अगर वे इस जुमे के दिन पूरी शिद्दत के साथ नमाज अदा करें तो उन्हें हज यात्रा करने के बराबर सवाब मिलता है। अलविदा जुमे को अरबी में जमात-उल-विदा के नाम से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि अलविदा की नमाज़ अल्लाह से अपार आशीर्वाद, क्षमा और दया लाती है। मुसलमान विशेष प्रार्थना करते हैं, पश्चाताप करते हैं और दान करते हैं, इसे ईद-उल-फ़ित्र से पहले आत्मा को शुद्ध करने और अपने विश्वास को मजबूत करने का एक पवित्र अवसर मानते हैं।
रमजान का अलविदा जुमा बंदों को याद दिलाता है कि पूरे रमजान जिस तरह से हमने रोजा रखकर अल्लाह की इबादत की, नेक काम किए, आत्मसंयम का पालन किया उसी रास्ते पर हमें अगले रमजान तक चलता है।
अलविदा की नमाज के बाद आती है ईद
ईद-उल-फ़ितर अलविदा की नमाज़ के बाद आती है, जो रोजा और अकीदत के महीने रमज़ान के सुखद अंत का प्रतीक है। आखिरी जुम्मा की नमाज़ अदा करने के बाद, मुसलमान ईद की तैयारी करते हैं, जो कृतज्ञता, दान और उत्सव का त्योहार है। ईद इस्लामी कैलेंडर में रमज़ान के बाद आने वाले महीने शव्वाल के पहले दिन मनाई जाती है। इसकी शुरुआत एक विशेष ईद की नमाज़ से होती है, जिसके बाद "ईद मुबारक" की बधाई दी जाती है और ज़कात अल-फ़ितर (ज़रूरतमंदों के लिए दान) जैसे दयालुता के कार्य किए जाते हैं। इस साल ईद 31 मार्च या 1 अप्रैल को मनाई जाएगी। सरकारी गैज़ेट में ईद की छुट्टी 31 मार्च को दी गयी है। हालांकि ईद का त्योहार (Eid 2025) चांद के दिखने पर निर्भर करता है।
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