Caste Census: कैसे बना देश का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा? सभी पार्टियां क्यों हैं एक मंच पर
देश की राजनीति में एक ऐतिहासिक फैसले ने सभी राजनीतिक दलों को एक साथ ला खड़ा किया है। केंद्र सरकार ने 1931 के बाद पहली बार जाति आधारित जनगणना कराने का फैसला लिया है, जिसे विपक्षी दलों की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस, सपा, आरजेडी और अन्य विपक्षी दल लगातार इसकी मांग कर रहे थे। लेकिन सवाल यह है कि आखिर जाति जनगणना इतना बड़ा राजनीतिक मुद्दा क्यों बन गया? और कैसे यह मुद्दा सभी पार्टियों को एक मंच पर ले आया?
नेहरू से मोदी तक..जाति जनगणना का सियासी सफर
आजाद भारत में पहली बार जाति जनगणना को लेकर इतना बड़ा फैसला लिया गया है। 1951 में जवाहरलाल नेहरू ने जाति जनगणना को रोक दिया था, ताकि देश में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिल सके। उसके बाद 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कराई थी, लेकिन उसके आंकड़े कभी पूरी तरह जारी नहीं किए गए। अब मोदी सरकार ने इस पर मुहर लगाकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। क्या यह बिहार चुनाव से पहले OBC वोट बैंक को लुभाने की रणनीति है? या फिर सरकार विपक्ष के दबाव में झुक गई?
राहुल से लेकर नीतीश सभी ने क्यों उठाई थी मांग?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले कई सालों से "देश का X-RAY" करने की बात कहकर जाति जनगणना की मांग कर रहे थे। उन्होंने एक्स (ट्विटर) पर लिखा - "हमने कहा था ना, मोदी जी को जाति जनगणना करवानी ही पड़ेगी!" वहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने राज्य में जाति सर्वे कराकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाया था।
सपा और आरजेडी जैसी पार्टियां लंबे समय से इसकी मांग कर रही थीं। अब जब सरकार ने यह फैसला लिया है, तो सभी पार्टियां एक साथ इसका श्रेय लेने में जुट गई हैं। क्या यह सच में सामाजिक न्याय का मुद्दा है या फिर सिर्फ वोट बैंक की राजनीति?
जाति जनगणना का असली मकसद क्या?
जाति जनगणना की मांग का सबसे बड़ा कारण आरक्षण का मुद्दा रहा है। 1980 में मंडल आयोग ने OBC को 27% आरक्षण देने की सिफारिश की थी, लेकिन तब से ही जाति के आधार पर सही आंकड़ों की कमी रही है। अब जब बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों ने अपने स्तर पर जाति सर्वे कराए हैं, तो केंद्र सरकार के सामने दबाव बन गया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले OBC और दलित वोट बैंक को संभालने की रणनीति हो सकती है।
2026 तक आएंगे नतीजे: किसे मिलेगा फायदा?
सरकार ने स्पष्ट किया है कि जाति जनगणना के आंकड़े 2026 तक आने की उम्मीद है। यानी अगले लोकसभा चुनाव तक इसका कोई सीधा राजनीतिक लाभ किसी को नहीं मिल पाएगा। फिर भी, यह फैसला ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि इससे देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना का पता चलेगा। विपक्ष का दावा है कि इससे पता चलेगा कि सत्ता और संसाधनों पर किस जाति का कितना कब्जा है। वहीं, सरकार इसे "सबका साथ, सबका विकास" के तहत एक कदम बता रही है। अब देखना यह है कि क्या यह जनगणना सच में सामाजिक न्याय लाएगी या फिर राजनीतिक दलों के लिए नया हथियार बन जाएगी?
यह भी पढ़ें:
.