खादी का कमाल: टर्नओवर ₹1.70 लाख करोड़ के पार, देश में बढ़ी 'लोकल' की चमक
देश में आत्मनिर्भर भारत की गूंज अब केवल नारा नहीं, बल्कि ज़मीन पर असर भी दिखा रही है। खादी और ग्रामोद्योग ने बीते वर्षों में ऐसा प्रदर्शन किया है जिसने हर किसी को चौंका दिया है। वित्त वर्ष 2024-25 में खादी और ग्रामोद्योग की कुल बिक्री ₹1,70,551.37 करोड़ के पार पहुंच गई है, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।
बीते 11 सालों में 5 गुना से ज़्यादा ग्रोथ
2013-14 में जहां खादी और ग्रामोद्योग की कुल बिक्री ₹31,154.19 करोड़ थी, वहीं 2024 में यह आंकड़ा 5 गुना से भी ज़्यादा बढ़कर ₹1.70 लाख करोड़ को पार कर गया। इस रिकॉर्ड को देखकर साफ है कि देशवासियों का रुझान अब देसी उत्पादों की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
खादी फैब्रिक की बिक्री में 561% की धमाकेदार बढ़ोतरी
खादी के कपड़ों की बात करें तो 2013-14 में इनकी बिक्री ₹1,081.04 करोड़ थी, जो अब 561% की उछाल के साथ ₹7,145.61 करोड़ तक पहुंच गई है। उत्पादन में भी जबरदस्त ग्रोथ देखने को मिली है — ₹811.08 करोड़ से बढ़कर ₹3,783.36 करोड़ तक, यानी करीब 366% की छलांग।
रोजगार में भी आया जबरदस्त उछाल
मंत्रालय के अनुसार, खादी और ग्रामोद्योग के ज़रिए रोजगार देने के मामले में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। 2013-14 में जहां यह सेक्टर 1.30 करोड़ लोगों को रोजगार दे रहा था, वहीं 2024-25 में यह आंकड़ा बढ़कर 1.94 करोड़ तक पहुंच चुका है — यानी करीब 49.23% की ग्रोथ।
दिल्ली के खादी भवन ने भी मारी बाज़ी
खादी का क्रेज सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक सीमित नहीं है। राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित खादी ग्रामोद्योग भवन ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 2024-25 में ₹110.01 करोड़ का कारोबार किया। ये आंकड़ा 2013-14 के ₹51.02 करोड़ से दोगुना से भी ज्यादा है।
क्यों हो रही है खादी की वापसी?
देश में खादी की बढ़ती डिमांड के पीछे कई कारण हैं जो निम्न प्रकार हैं-
- प्रधानमंत्री मोदी का जोर: ‘वोकल फॉर लोकल’ मुहिम ने देश में देसी ब्रांड्स को नई पहचान दी है।
- सस्टेनेबिलिटी की बढ़ती मांग: इको-फ्रेंडली और नैचुरल फैब्रिक की ओर लोगों का झुकाव बढ़ रहा है।
- ग्लोबल लेवल पर प्रमोशन: खादी अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं, बल्कि इंटरनेशनल मार्केट में भी अपनी जगह बना रही है।
खादी बनी देश की पहचान
युवाओं में बढ़ता खादी का क्रेज बताता है कि खादी और ग्रामोद्योग सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि देश की आत्मा है। इसके बढ़ते आंकड़े दिखाते हैं कि भारत अब 'मेड इन इंडिया' को न सिर्फ पसंद कर रहा है, बल्कि गर्व से अपनाकर नई अर्थव्यवस्था को भी दिशा दे रहा है।
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