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क्या भारत में गरीबी घट रही है? जानिए असलियत और आंकड़ों के बीच की सच्चाई

क्या सच में भारत में गरीबी घट रही है या ये बस आंकड़ों का खेल है? जानिए एसबीआई की रिपोर्ट, सरकारी योजनाओं और महंगाई के असर को लेकर असलियत।
03:10 PM Jan 05, 2025 IST | Vibhav Shukla

भारत में गरीबी को लेकर अक्सर बड़े-बड़े आंकड़े सामने आते रहते हैं। हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें दावा किया गया है कि भारत में गरीबी काफी कम हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2011-12 में जहां ग्रामीण भारत में 25.7% लोग गरीबी रेखा के नीचे थे, वहीं 2024 तक यह आंकड़ा घटकर 4.86% हो गया है। शहरी इलाकों में भी 13.7% से घटकर 4.09% हो गया है। अब सवाल ये है कि क्या वाकई भारत में इतनी तेजी से गरीबी घट रही है या फिर ये आंकड़ों का खेल है?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें एसबीआई की रिपोर्ट को गहराई से समझना होगा। क्या वाकई सरकारी योजनाओं के चलते गरीबी घट रही है, या फिर गरीबी रेखा को बदलकर गरीबों की संख्या कम दिखाने की कोशिश की जा रही है?

SBI की रिपोर्ट में क्या दिख रहा है ?

SBI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023-24 में गांवों में गरीबी दर 4.86% और शहरों में 4.09% हो गई है। ये आंकड़े 2023 के अनुमानों से कम हैं। यानी पिछले एक साल में गरीबी में और कमी आई है। उदाहरण के लिए, 2023 में ग्रामीण गरीबी का आंकड़ा 7.2% था, जो अब घटकर 4.86% हो गया है। वहीं, 2011-12 में शहरी गरीबी 13.7% थी, जो अब घटकर 4.09% हो गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अब गांवों में और शहरों के बीच खर्च में फर्क कम हो गया है। पहले शहरों में लोग गांववालों से 88.2% ज्यादा खर्च करते थे, लेकिन अब यह अंतर घटकर 69.7% रह गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार ने ग्रामीण इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने की कोशिश की है – जैसे कि गांवों में सड़कें, पुल और यातायात की सुविधाएं।

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार की योजनाओं ने ग्रामीण लोगों की आमदनी बढ़ाने में मदद की है। योजनाओं के तहत सीधे बैंक खातों में पैसे भेजने और किसानों की आमदनी बढ़ाने जैसे कदम उठाए गए हैं, जो ग्रामीण इलाकों में राहत दे रहे हैं।

गरीबी दर में बदलाव (ग्रामीण और शहरी)

 

विवरण2011-122023-24बदलाव
ग्रामीण गरीबी (%)25.7%4.86%भारी गिरावट
शहरी गरीबी (%)13.7%4.09%शहरी गरीबी में भी कमी
गरीबी रेखा (गांव)₹816 प्रति माह₹1632 प्रति माहमहंगाई के आधार पर वृद्धि
गरीबी रेखा (शहर)₹1000 प्रति माह₹1944 प्रति माहशहरी गरीबी रेखा में वृद्धि

क्या महंगाई से गरीबी कम हो सकती है?

महंगाई की दर को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। देश में महंगाई आसमान छू रही है, और रोजमर्रा की चीजें जैसे कि दाल, सब्जियां, तेल, घी आदि की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महंगाई में इतनी बढ़ोतरी के बावजूद गरीबी घट सकती है?

एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, महंगाई का असर उन राज्यों में ज्यादा दिख रहा है जहां लोगों की आमदनी कम है। ऐसे राज्यों में, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार, लोग अपनी खर्च करने की आदतों में बदलाव ला रहे हैं और ज्यादा सतर्क हो गए हैं। रिपोर्ट कहती है कि महंगाई के बावजूद गरीबी कम हो रही है, लेकिन इसका असर किस तरह से हुआ है, यह और गहराई से देखने की बात है।

सरकारी योजनाओं का असल असर क्या है?

जब हम बात करते हैं सरकार की योजनाओं की, तो कई लोग मानते हैं कि इन योजनाओं का असर दिख रहा है। एसबीआई की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में ग्रामीण इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी सुधार हुआ है। घर-घर बिजली पहुंचाई गई है और गांवों में सड़कें बनी हैं। लेकिन क्या इन योजनाओं का असर पूरी तरह से लोगों की जिंदगी पर पड़ा है?

ABP की एक खबर के मुताबिक अर्थशास्त्र के जानकार मोहम्मद शोएब अहमद का कहना है, “सरकारी योजनाओं का लाभ अब पहले से कुछ ज्यादा लोग तक पहुंच रहा है, लेकिन फिर भी इसमें सुधार की जरूरत है। कई बार लाभार्थियों को यह पता होता है कि उन्हें कुछ रकम संबंधित विभाग को देनी होगी, तभी उन्हें योजनाओं का लाभ मिलेगा। जैसे कि बिहार में मनरेगा में 40% का कट होता है।”

इससे यह साफ होता है कि भले ही इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है, लेकिन योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर पर पूरी तरह से नहीं पहुंच पा रहा है।

 

राज्य2011-12 (%)2022-23 (%)2023-24 (%)
बिहार344138
उत्तर प्रदेश775855
झारखंड1017883
असम807979
मध्य प्रदेश796061
ओडिशा947674
छत्तीसगढ़828280


गरीबी रेखा में बदलाव: क्या असल में गरीबी घट रही है?

भारत में गरीबी मापने का तरीका कई बार बदल चुका है। 2011-12 में गांवों के लिए गरीबी रेखा 816 रुपये प्रति माह थी, जबकि शहरों में यह 1000 रुपये थी। अब 2023-24 में यह सीमा बढ़ाकर 1632 रुपये और शहरों के लिए 1944 रुपये कर दी गई है। सरकार का कहना है कि महंगाई और अन्य आर्थिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए यह बदलाव किया गया है, ताकि गरीबी और असमानता को सटीक तरीके से मापा जा सके।

लेकिन क्या इससे गरीबों की असल स्थिति पर असर पड़ा है?

अर्थशास्त्री मोहम्मद शोएब अहमद के अनुसार, “अगर आप गरीबी रेखा को कम कर देंगे तो गरीबों की संख्या अपने आप घट जाएगी। असल में गरीबी रेखा बदलने से गरीबी कम नहीं होती, बल्कि यह बस एक आंकड़ा बदलता है।”

ग्रामीण इलाकों में आमदनी का फर्क क्यों कम हो रहा है?

एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में सबसे गरीब लोगों की आमदनी में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इसके चलते गरीबी रेखा भी ऊपर उठ गई है। पहले जो लोग गरीब माने जाते थे, अब उनकी आमदनी इतनी बढ़ गई है कि वे गरीब नहीं माने जा रहे। इसका सीधा असर यह हुआ कि गांवों में रहने वाले लोग अब उतना ही खर्च कर रहे हैं जितना शहरों में रहने वाले लोग करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल में ग्रामीण लोगों की औसत आमदनी में 349 रुपये का इजाफा हुआ है, जबकि शहरी लोगों की आमदनी में 537 रुपये का इजाफा हुआ है।

क्या अमीर-गरीब के बीच की खाई कम हो रही है?

एक और अहम बदलाव यह दिखा है कि अमीर और गरीब के बीच आमदनी का अंतर घट रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011-12 में गांवों में आमदनी की असमानता 0.365 थी, जो अब घटकर 0.306 हो गई है। वहीं, शहरों में यह अंतर 0.457 से घटकर 0.365 हो गया है।

यह संकेत देता है कि गरीब और अमीर के बीच की खाई कुछ कम हो रही है, हालांकि इसमें काफी सुधार की गुंजाइश बाकी है।

अब महंगाई की माप के तरीके में बदलाव किया जा रहा है। पहले खाने-पीने की चीजों की महंगाई को ज्यादा महत्व दिया जाता था, लेकिन अब इसे कम किया जा रहा है। इसका मतलब यह है कि अब महंगाई का आंकड़ा थोड़ा कम दिख सकता है। हालांकि, इस बदलाव का असर केवल तब समझा जाएगा जब हम यह देखेंगे कि खाने-पीने की चीजों की महंगाई के मुकाबले बाकी चीजों की महंगाई कितनी बढ़ती है।

आखिरकार, क्या गरीबी घट रही है?

एसबीआई की रिपोर्ट में दिखाए गए आंकड़े अपनी जगह हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और हो सकती है। आंकड़ों में बदलाव और गरीबी रेखा के फेरबदल से गरीबी घटती हुई नजर आ सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गरीबी की असली समस्या सुलझ गई है। सरकारी योजनाओं का असर जरूर दिख रहा है, लेकिन सुधार की दर बहुत धीमी है।

अर्थशास्त्री मोहम्मद शोएब अहमद का कहना है, “अगर आंकड़ों को तोड़ा-मरोड़ा जाए तो वे वही दिखाएंगे, जो आप चाहते हैं। इसलिए हमें इन आंकड़ों को सही तरीके से पेश करना चाहिए और जमीनी स्तर पर उनका मूल्यांकन करना चाहिए।”

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