सरकारी खजाने की चाबी अब बाजार के हाथ! LIC, कोल इंडिया समेत 4 कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी
भारत सरकार ने एक बार फिर सरकारी खजाने को मजबूत करने के लिए बाजार की राह पकड़ी है। इस बार सरकार LIC, कोल इंडिया, RVNL और GRSE जैसी नामी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है। ये बिक्री "ऑफर फॉर सेल (OFS)" मॉडल के तहत की जाएगी और इसकी शुरुआत वित्तीय वर्ष 2025-26 से होगी।
विनिवेश के जरिए खजाना भरने की रणनीति
सरकार का मकसद साफ है—बाजार में हिस्सेदारी बेचकर फंड जुटाना और फाइनेंशियल डेफिसिट को कंट्रोल में रखना। OFS मॉडल के तहत ये हिस्सेदारी एक साथ नहीं, बल्कि चरणबद्ध तरीके से बेची जाएगी, ताकि बाजार की चाल और कंपनियों के प्रदर्शन का पूरा फायदा उठाया जा सके।
शेयर बाजार की ओर बढ़ता फोकस
OFS मॉडल अपनाकर सरकार इस बार रणनीतिक बिक्री की जगह शेयर बाजार के जरिए पैसा जुटाने पर ज्यादा भरोसा जता रही है। इसका सीधा फायदा यह होगा कि बाजार में सरकारी कंपनियों की वैल्यू और पारदर्शिता बनी रहेगी, और सरकार को बिना कोई बड़ा नियंत्रण छोड़े अच्छा खासा पैसा मिल सकता है।
कब, किसमें और कैसे बेची जाएगी हिस्सेदारी?
- RVNL (रेल विकास निगम लिमिटेड): इस कंपनी में हिस्सेदारी की बिक्री की संभावना पहली तिमाही के बाद जताई जा रही है। इसके लिए सलाहकार नियुक्त हो चुके हैं और बिक्री से पहले निवेशकों के लिए रोडशो भी होंगे।
- LIC (भारतीय जीवन बीमा निगम): सबसे बड़ा नाम और सबसे बड़ी हिस्सेदारी। सरकार के पास LIC में अभी भी 96.5% हिस्सेदारी है, जिसे धीरे-धीरे कम करने की योजना है—संभावना है कि चौथी तिमाही में यह OFS लॉन्च हो सकता है।
- GRSE (गार्डन रीच शिपबिल्डर्स): कोलकाता की यह सरकारी शिपबिल्डिंग कंपनी भी इस योजना में शामिल है और इसमें भी हिस्सेदारी बेचने की योजना बनाई जा रही है।
- Coal India: यह PSU सरकार के लिए डिविडेंड मशीन रही है। पिछले साल कोल इंडिया ने अकेले सरकार को 10,252 करोड़ रुपये का लाभांश दिया। हालांकि इसमें हिस्सेदारी घटाना थोड़ा संवेदनशील मामला है क्योंकि सरकार की हिस्सेदारी पहले से ही करीब 51% है।
IDBI के बाद LIC की बारी, अब तक क्या मिला?
गौरतलब है कि सरकार अभी IDBI बैंक की रणनीतिक बिक्री को प्राथमिकता दे रही है। उसी के बाद LIC में हिस्सेदारी घटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। यह एक सोची-समझी रणनीति है जिससे बाजार पर दबाव न पड़े और सरकार को ज्यादा से ज्यादा रिटर्न मिले। सरकार को इस साल PSU कंपनियों से 74,000 करोड़ रुपये से अधिक का डिविडेंड मिला है। कोल इंडिया इस लिस्ट में टॉप पर रही है। और अब OFS के जरिए सरकार को उम्मीद है कि इस फाइनेंशियल ईयर में भी राजस्व की बारिश होती रहेगी।
निवेशकों के हाथ होगी सरकारी खजाने की चाबी
विनिवेश की यह चाल सरकार के लिए एक आर्थिक ब्रह्मास्त्र साबित हो सकती है। बाजार की मांग, निवेशकों का रुझान और कंपनियों की वित्तीय स्थिति इस योजना की सफलता की कुंजी होंगी। अब देखना यह है कि ये दांव सरकार को राजस्व के लिहाज़ से कितनी ऊंचाई तक ले जाता है और क्या वह अपने सालाना विनिवेश लक्ष्यों को हासिल कर पाती है या नहीं।
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